जय जय देवी खिचडी रानी!

जय जय देवी खिचड़ीअन्नपूर्णा की!

जय जय जय त्रिभुवन देवी खिचड़ी अन्नपूर्णा की!

अकाट्य महिमा इनकी,धरा-नभ-विस्तृत बहुत बड़ी।

संतोषी सदाचरण रखतीं,कहने को हैं सीधी सादी,

आग तपाआलू-बैंगन-भरता,चमकाआखें,हैंपरोसती !

घृत बघार,घृत-सुगन्ध, घृत -श्रृंगार का जादू लहराती!

डोल जाते,सप्त ऋषी ,पाते इनकी महिमा लक्ष्मी सी!

सखा सहेली इनकेअनगिनत ,कर न पाता कोई

गिनती,

अचार ,दही,तिलौरी ...अरे छोड़ न देना टमाटर चटनी!

गर्मी में सजता हरा पुदीना,जाड़ेमेंधनिया पिसे सिलबट्टी !

कच्ची पिसी दाल मिलायें,संग गोभी-प्याज-मिरचा हरा!

गर्म सुर्ख कुरकुरे नन्हे पकोड़े ,स्वाद सागर अपार दें बढ़ा !

खिचड़ी रानी स्वप्न-नृत्यांगना, ओढ़े चुनरी पीली हरी नगीने जड़ी!

इनकी छवि, सोये मन को भरमाती, बढाती पेट की बेचैनी बड़ी!

ऐसे भोग का क्या कहना ! लेलो अगर “जबान-कोड़े” की चटकार!

सजी थाल की रौनक होती दुगनी,जब पड़ती पापड़ की टंकार!

खिचड़ी महारानी का हिंडोला,रसोइये की है कला-कृति मनोरम!

एक थाल मे कुनबा जब खाता,”प्रभू प्रसाद” बनता यह अनुपम!

शमा सिन्हा
11-1-2022

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