हे अशोक, मैने खड़ा कर दिया है तुझे बना प्रहरी
उसी उम्मीद से जिससे राम की जानकी थी जुड़ी।
जब था न सुरक्षा में उसके कोई देव- मानव अपना
सजे थे तब तुम्ही बनकर उसके लिए कवच गहना
मन मे आस्था-चिंतन रघुवीर की करती रहती सदा,
बना तुम्हे साक्षी, काटती रही काल की प्रलय विपदा।
द्वन्द पीड़ित सोचती रहती,”है रावण की रण-युद् कला !”
राम नाम के तीर से रहा था उसने ,अपना पाषाण किला!
अधीरता से करती रहती निरंतर वह यही कामना,
शीघ्र उसके राम आयें,हो पूर्ण उसका मिलन सपना!
तुमने दिया जानकी के संतप्त हृदय को तुमने ढाढस ,
कोमल किसलयों मे भर आशा प्रदत्त किया शीतल छाया रस!
उसके बुझे मन के थे तुम्ही देव सूयश प्रेरक प्रदीप्त ज्योति
साथ तुम्हारा पाकर ही तो विह्वल मन मे शांती सजोती।
हे अशोक,बन सीता के संरक्षक किया सार्थक अपना नाम
हनुमान को मातृ दर्शन, सीता को प्रदत्त विनीत पुत्र काप्रणाम !
लहराते अतिशय पूरणांको ने दिया जानकी को शांती विराम।
राम का संदेशा पाकर,उपजा मन में विशवास पूर्ण उल्लास विश्राम।
दिया वचन पवनपुत्र ने,शीघ्र लेने आयेंगे कौशल्या नन्दन राम
सुकांत-निर्मल-ऐश्वर्य इक्क्षवाकू शान्ती स्वरूप सकाम!
हे अशोक, तुम साक्ष्य हो उस वियोग-विशालअश्रू- सागर के
बहते थे जो भीगे आंचल से धरा आश्रित, तेरे ही जड़ में!
उन्ही बूंदों से सिंचित हो, लंका की भूमि पर हुआ तेरा उद्धार
अमर अजय हुये तुम, यश पाया तुमने हे अशोक ,अपार !
शुभता का प्रतीक हो,आशा काअनंत सेतु साकार।
तुम्हारी शुभता की शक्ति से ,करता दुख आगंन से प्रयाण
पवन पुत्र बने यशस्वी ,कहलाये वीरअंजनिपुत्र हनुमान
राम कथा में उपस्थित होकर, दिया इसे चिरअमृत सम्मान !