मचल मचल कर वह बांवरी, यूं बरसने आई है
ढक गया नीलनभ भी, धुंध श्याम छवि लाई है।
खो गई डालियां, कलियां कोमलांगी झड गई हैं।
प्रीत अनोखी, धरा-गगन की, रास रंग की छाई है।
कतारों मे चल रहीं,रंगीली जुगनुओं सी गाडिय़ां ।
सरसराती, कभी सरकती, झुनझुनाती पैजनियां ।
देखो कैसी रुनकझुनक, मस्ती संग ले आई है ।
सब पूछ रहे रसरजिंत हो, यह क्यों ऐसे मदमायी है? नांच रहा कोई, ऐसा कौन रंग बरसाई है
छुप रहा कोई-पत्तियों तले ना ये जा पाई है
गा रहा कोई- यूं राग तरिंगिनी बन यह आई है
रोको न इसके कदम-ले जाने इसे आई पुरवाई है।
कडकती बदली से चुरा, श्यामल चुनरी लाई है!