यात्रा

होती कई तरह की है यात्रा

गिनती परे भिन्न-भिन्न सत्रह!

कुछ पूर्ण होती पैरों से चलकर,

कुछ मनानुभव में तपकर,

दूजे व्यवहार निभा कर ,

दूसरों बीच खुशियां देकर

अन्य को कंधे का सहारा देकर ,

कभी काम में हांथ बटा कर,

मन से मन का प्रेम निभाकर,

बेसहारों का सहारा बनकर

नीरव वन में रास्ता बनाकर,

साथी का साथ निभाकर

नभ तक पौधों सा बढ़कर

पहाड़ सा पाषाण बनकर

धरती सा सहनशील होकर

पथ सा दूर सुदूर चलकर,

आकाश सा छाया बनकर

वनफूल बन सदा मुस्कुरा कर

सावन सा तृप्तीजल देकर।

सत चित चिर आनंद पिला कर

दुख को सुख से निर्विकार कर

कर्मो से सहर्ष चित सवांर कर ?

पै

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