दिल चाहता है

दिल चाहता है — जो भी चाहे मन,सब हो पूरा सपना कोई भी ना रहे अधूरा क्या कहूं,किसे ना गिनूं ख्वाहिशों में किसे मैं तजूं? दुनियां इतनी सुन्दर है कैसे! नभ में तारे चमकते हैं जैसे! चुनरी में जड़ कर श्रृंगार करूं ? या गूंथ कर अपनी पायल बनाऊं? ये सूरज जो मेरी बिन्दि बन जाता, रुप मेरा तब कितना चमकता! चन्दा की नाव अगर मुझे जो मिलती सारे गगन की मैं खूब सैर करती! पहाड़ों से फल,मीढा झरना नहाती, सांझ ढले बादलों के घर मैं जाती! ना पढ़ाई की चिन्ता ना दौड़ नौकरी की ज़िन्दगी सारी अपनी मैं मस्ती … Continue reading »दिल चाहता है

खाक मजा है जीने में

जीवन  की शर्तें हैं अनगिनत कठिन मानना जिन्हे शत प्रतिशत ! श्वासों की गिनती होती है यहां, और मालूम नही मंजिल है कहां! उसे ही पता हम जन्मे क्यों, पर दिशा खोज में हम खोये यूं मृग बौराए अपने इर्द-गिर्द ज्यों सदा खुशामद में दौड़  लगाते शैशवकाल पार हम वृद्ध  हो जाते! मील का पत्थर  ढूढ़ने रह जाते। निश्चिन्त कभी ना हम हंस पाते चिंता से घिरे हम रोते रह जाते छोड़ दे जैसे तृष्णा तड़पने को! जन्म लेते ही सब लगते नाचने, खाना-कपड़ा-मकान खोजते! एक बार पाकर खत्म ना होता चक्रधर चक्र मे चक्कर लगाता! खाक मजा मानव जीने का … Continue reading »खाक मजा है जीने में

जय श्रीराम!

पुत्र कामना पूर्ण कर ने को हुये उद्धत राजा दशरथ, ऋशष्यश्रृंंग की अगुआई में किया दो यज्ञ आयोजित! प्रथमअश्वमेध पूर्णाहुति पश्चात पुत्रेष्टी यज्ञ हुआ सम्पन्न, प्रगट हुआ शुुभलक्षण युक्त अग्नि पुरुष एक असाधारण ! “मैं भगवान विष्णु-दूत,लेकर आया दोंनों यज्ञ का फल, चिरस्थाई रखेंंगें प्रसिद्धी आपकी,आपके होंगें चार पुत्र सफल!” प्रसाद का आधा हिस्सा दिया राजा ने पटरानी कौशल्या को सुमित्रा को मिला अंंश चौथाई, आठवां हिस्सा केकैई  को! क्षीर का शेेष पुनः दिया,दशरथ ने सस्नेह मंझली रानी को! उचित  समय पर जन्मे चार पुत्र, दशरथ तीनों रानीयों को! चैत्र मास,शुक्ल पक्ष की मंंलमयी नौमी तिथी जब आई, पाकर पुत्र … Continue reading »जय श्रीराम!

नया सवेरा

आज जब सूरज आया, जगाने लेकर नया सवेरा, मुुग्ध देख ,उसकी छटा निराली देने लगी मैं पहरा! स्नेेह अंजलि मध्य समेट चाहा  उसे  घर लाना! वह नटखट छोड़ मुझे चाहा आकाश  चढ़ना! होकर  मैं लाचार, लगी देख ने उस की द्रुत चाल, सरसराता निकल गया वह,भिंगोकर  मेरी भाल! “तुुमही जीत  गये मुझसे!” कहा उससे मैनें पुकार । “अभ्यास कर्म है नित का!”बताया सूूर्य  ने सार ” कर्त्तव्य करो!तुलना करने से ही सब जाते हैं हार! चरैवेती!चरैवेती!कर्म-चेतना करेगी हर कठिनाई  पार!”

              सूर्य

जिनका है उदित और अस्ताचंल रूप मनोरम, आठों पहर शक्ति जिनकी, रहती सदा सम! प्रगट होते देेव वही,सुमधुुर स्पंदित अरुणाचल, मिटा अंधेरा, दीप्त करते,नभ से पृथ्वीतल! सातो दिवस धरती पर आते सूर्य देव हमारे, पाकर दर्शन जिनका, कृतार्थ होते पृथ्वी वाले! निरख रुप साकार जिनका ,अर्पित अंजली भर जल, तत्क्षण मानव समाज बनता, तन मन से निर्मल ! बस हाथ उठाकर निवेदित होता जब इन्हें प्रणाम, दर्शन मिलता प्रत्यक्ष,पूर्ण होते अभिलाषित काम! विश्व-धर्म के हैं आधार, सर्व विश्वास के यही धाम! सूर्यकुुल इक्ष्वाकु-वंशज,हरिशचंद्र,सगर,जय श्रीराम! स्वरचित और मौलिक। शमा सिन्हाराँची।

आज तेरा जगराता ,मां!

मैं आई तेरे द्वारे मां,लेकर अपनी लंंबीअर्जी संंग लाई हू सजे थाल में तेरी रंंग-जवा चुनरी! आज मुझेअपना लेना मां,मन ने आस लगाई ! तेरे ही दर पर सबने मां,मनसा-ज्योत जलाई! हर पल मेरे साथ तू रहती,सुलझाती कठिनाई, अखंंड दीप तुम्हार जलता,रोशनी सबने पाई! महिषासुरमर्दिनी हो तु ,शुंभ ,अशुंभ को तारी! गलतियां सारी माफ करो मां,मैंने गुहार लगाई ! पंच तत्व की काठी मेरी,हो रही बहुुत कमजोर तेरी दया के बगैर मैया,होगी नही  मेरी भोर!

“कहां मुकम्मल जिन्दगी?”

रोज रोज की छेड़ छाड़ मुुझसे ना करो ऐ जिन्दगी तुम्हारी जिद पूरी करने मे खाक होती है जिंदादिली! औरों की उचाईयों को तुम ,छूने की करो ना कोशिशें चाहिए खुशी तो मन को बांधो,समेट रखो ख्वाहिशे ! कर्तव्य के रास्ते में सदा सबके,आती हैं रुकावटें बहुत, टूटता है धैर्य कभी और बचती नही हिम्मत ही साबुुत ! सफलता में औरों के कभी,तौलो नही सक्षमता अपनी, खुद के प्रयास को जोड़ो,सिर्फ उपलब्धियों से अपनी! जीवन तुम्हारा है,औचित्य तुुम्हारा बड़ा! औरों का नही, स्वयं निर्णायक बन,वही करो जो हो तुम्हारे लिए  सही! सपनों के सागर  मे जिन्दगी कभी मुकम्मल  होती नही … Continue reading »“कहां मुकम्मल जिन्दगी?”

मन की आंखें

मंच को नमन शीर्षक-मन की आंखेंविधा-कवितातारीख-8- 4 -24 वे होतीं हैं सबसे समझदार,तोलती पक्ष ,दिशा आर पार!तत्व का खोज लेती गूढ़ सार,सक्षमता गढ़ती सत्य आकार! स्वरचित एवं मौलिक शमा सिन्हारांची।

“मजाक”(Ranchi  kavya manch)/”ध्यान के अंकुर”(for Mansarover  sahitya)

पल पल घर में गूंजाना  किलकारी! प्रिय बनाना शब्द उच्चारित  सबके, चेहरे पर सजाना ,चमकती मीठीहंसी! तह पर तह सजे सारी ऐसी बात, ए  हंसी तुम आओ  झोली भरके! मीठी यादें भिंंगोये हमारी पलके! वही लौटने को मन चाहे दिन रात जहां फिर हम सब हो जायें सबके! बिछे नही प्रतियोगिता की बिसात हंसी ठिठोली लाये ठहाके सबके बीते समय रसीले ठहाकों के साथ मजाक ना करे टुकड़े किसी दिल के! स्वरचित  एवं मौलिक रचना शमा सिन्हा रांची।

मेरा मन

जाने क्यों यह मन बहुत परेशान  हो जाता है कुछ  नही बस में किंतु निदान खोजता रहता है समझा समझा कर मै हारी,मानना नही चाहता जाने क्यों इस भेद को स्वयं सुलझाना चाहता है! कर्मो  ने लिख दिया है नियती की दिशा का नाम उसे हमारी इच्छाओं से नही कुछ भी काम ! लाख तुम  सोचो, अपने अहं  को सहेजते रहो, गिनते रहो अपने दुःख, उम्मीद लेकर तड़पो, तुम्हारा यह मन ,तुम्हे असहज बना कर रखेगा, इसके साथ उलझते सारा समय  बीत जायेगा! चाहत है अगर  शांति से  वक्त गुजारने का हौसला मन को रखो अनुशासित, ना दो इसे मनमाना … Continue reading »मेरा मन