मां
जब भी खुलती हैं आखें तुम्हे काम में व्यस्त देखा जगी रहती हो पहर आठ, तुम ऐसी क्यों हों मां? आंंचल में भर प्रेम अथाह,खड़ी क्यों रहती सदा ? गलतियों को मेरी माफ करने को क्यों हो अड़ी रहती? अपरिमित मेरी मांगो पर कभी क्यों तुम नही टोकती ? तुुमसे अक्सर मै रूठ जाती,क्यों तुम रूठती नही मां? हमारी मांगे पूरी करती,तुम कुछ क्यों चााती नही,मां? कष्ट अनेक सहे तुमने,फिर वरदान मुझे क्यो मानती मां? हर जिद को हमारी मां, तुम जायज क्यों हो ठहराती? तू भोली नादान ,अपने बच्चों की मनमानी नही समझती! इच्छा हमारी पूरी करने को अपने सपने …