शबरी के राम
आयेंगे राम एक दिन
An educator's life blog
आयेंगे राम एक दिन
जाग गया है भारत अब, देख रहा संसार सिर उठाकर! गुंंज रहा इतिहास, ऊंंची तान में उपलब्धी सुुन कर! गण-तंत्र बन गया,लोक-आधार स्वराज्य भारती का! छू रही यहां नारी,आकाश की उचाई सूर्य-चंद्रअंबर का! रखा समृद्धी काआधार मर्यादा पुरुषोत्तम ने तीन रंग ! नारंंगी-श्वेत-हरा बने गुण त्याग पवित्रता सम्रिद्धी के संग! अधिकार और कर्तव्य में प्रत्येक का है संतुलित संयोजन ! गा रहे गीत पर्वत-नदी नयी उम्मीदों से समादृत वचन! कहू कितना है मन मेरा उमंग-आनंद से आज रंग गया! आये घर राम हमारे,युगों का सपना आज पूर्ण हो गया! सबका हित,सबके साथ मूलमंत्र है युग तरक्की का! बजरही देवध्वनी,खड़ीअप्सराएँ लिए …
दर्शन कर लो राम लला का,भर लो अपनी झोली अपने मन को मत मारो,कह रही उल्लासित टोली! हृदय उद्गारों को साझा कर छिड़को प्रीत की रोली!¡ त्रेता सियाराम खेलेंगे द्वापर राधाकृष्ण संग होली ! आस आज हुई पूर्ण वैैभब पूर्ण होगई अयोध्या नगरी! थिरके केवट हनुमान विभीषण,कोयल बागों में चहकी! करने को अभिनंदन रघुुवर का फूलों की क्यारी महकी! सजे दरबार में शोभित हो रहीं राम संग जनक नन्दिनी! दशरथ दे रहे आशीष,ले रही बलैया कौशल्या सुमित्रा केकैई । अपने मन को ना मारो,चरणबद्ध हो,करलो राम दर्शन! होगा पूरा,सब सपना,अवसर यही करदो आत्मसमर्पण! आये राम बसने ,अपनाकर हम सबके संग …
यह कैसी मधुर घड़ी है आई!चहुं ओर कौतुहलता है छाई!यह शहनाई पवन ने है गुंजाई!सवारी राम लला की पधराई! कभी संसार ने,सोचा ना था !भक्त का भगवा लहरायेगा!अटल धैर्यअकेला,टक्कर लेगा!राम का मंदिर भव्य बन जायेगा! जिसका शिल्पकार हो महर्षि!जिसके धन हों विश्व सत्यार्थी!लग्न लगाए है गतिरत भागीरथी!सेवक हैं जिनके पवनपुत्र रथी! सम्भव सबकुछ मनोबल से है होता !निश्चय ही प्रेरणा ध्वज बन लहराता!नरेंद्र जैसा सार्थक प्रहरी,पथ दिखाता!वनवास पश्चात रघुवर को है घर लाता! जय सिया राम! (स्वरचित एवं मौलिक कविता)शमा सिन्हारांची।तिथी: 23/1/24
मेरे रघुवर,आपको निवेदन है,सिया का प्रणाम !“सिया-राम” की इस जोड़ी का बनाये रखना आयाम! मात पिता के वचनों का पालन हमने साथ निभाया!सभी आदर्शो को प्रजा-राज्य सुख-आधार बनाया! संकट में सत्य-समर्पित व्यवहार हमने निभाया!भ्रात-सहिष्णुता ,सेवक के प्रति प्रेमधर्म अपनाया! बना रहे मधु-रस रजिंत यूंही समाज का हर नाता!ज्योति अखंड कर्तव्यनिष्ठा की,भारत रहे करता! यूंही बनी रहे, सिया-राम की जोड़ी अखंड,सबकी प्यारी!भारत को दें स्वस्थ्य-सौहार्द-संतोष, मांगती यही जनक दुलारी! (स्वरचित एवं मौलिक रचना।) शमा सिन्हारांची।तिथि: 23-1-24
Fast, I saw him,spreading his mighty trace. And called him aloud as he smeared red rays. “Don’t you ever feel lonely in that big wide space? I see no company treading with at your pace! Your schedule is strange, peculiar is Your ways! You move not with planets, they dance on your play “ “Is it so?”He gaped at me blinking in surprise . But I never felt like what you today surmise ! O,my friend, I never was alone, nor will I ever be! Perhaps you see not that power stably holding me! All my shine, the prosperity on …
राम के आगमन को देख रहा सारा संसार! पाकर झलक लला की होंगे सब भवसागर पार! उठा नही खंजर कोई गूंजी नही कोई शंख नाद। भक्ति , विश्वास और धैर्य ने बिछा दिया विजय फूल ! सरयु तट ने किया परिभाषित, राम लला निज धाम! न्याय ने सहर्ष स्वीकारा”स्कनद-पुराण” कौशल प्रमाण! ब्रम्हा-विष्णु-रुद्रत्रीदेव को अर्पित देव-नगर”ग्रहमंजरी!” इक्ष्वाकु,सगर,भगिरथ,दिलीप,हरिश्चंद्र कीअयोध्यानगरी! मन रही राम वापसी की दिवाली,जले दीप सहस्त्र हजार विराजेंगें आज रघुवर साकेेत, मन रहा घर घर त्योहार! जलती रहेगी बाती इतनी,अखंड दीप का है आकार। उठा कर शीश गर्व से कहो,अयोध्या नरेश राम सरकार! आ रहे आगन्तुक अनेक दर्शन पाने को राम …
मंच को नमन। मानसरोवर साहित्य अकादमिदैनिक प्रतियोगिताविषय- “शबरी के राम “विधा-कवितादिनांक- 18-1-24 शबरी के राम रघुुवर की भक्ति करती,श्रमणा बन गई शबरी!भीलकुंवर की बनी पत्नि!भील सरपंच की बेटी! साथी मन ना पहचाना,भायी नही उसे,ऐसी भक्ति! स्वीकार भीलनी ने किया नियती की थी यही मति! छोड़ शबरी को बीहड़ वन में,वह गया देने जीव बली ! मतंग ऋषि ने दिया शरण,मिली शबरी को राम-मणी! “त्रेतायुगमेंआयेंगें प्रभु राम,देेकर दर्शन कृतार्थ करेंगे! वन के इसी मार्ग,भ्राता संग एक दिन वो प्रस्थान करेंगे उनकी सेवा में पुु्त्री समय ना गिनना ना करनातोल !”स्वर्गारोहण किया मुनी ने,देकर संदेश अनमोल। गुरुवर संदेश बना शबरी का नित …
बेटे बहू के घर से बहुुत हड़बड़ाहट हम में चले थे! तैयारी लौटने की विदेश से,पूरी थी पहुंचने केपहले ! किन्तु बहु की इच्छा थी कुछ विशेेष शगुन उठाने की कोई बड़ा ना था,मौका भी था और उसकी मर्जी थी! बेटे ने हवाई जहाज में यात्रा के नियम समझाये। पोते-पोती से हमने भी प्रेेम-भाव बहुत थे जताए ! फिर बैठे चार पहिया वाहन में,सुरक्षा बेल्ट लगाकर । खुश थे हम बहुत,छः महीने की बिदेशी यात्रा पूरी कर! बुनने लगे सपने ,हम क्या क्या करेंगें अपने घर जाकर। “बैैगेे चेक-इन,सिक्युरिटीचेक”पार कर बैठे”जहाज” पर मिले आईंस्टाईन उसी कतार में खिड़की वाली सीट …
“गुरू गोविंद सिंह” सिक्खों के हुये नायक ,मां भारती के गोविंंद बने वीर सुपुत्र ।यशस्वी बन गये पाकर,नौवें वर्ष ही में राज पाठ कासूत्र! पिता इनके नौवें गुरू तेग बहादुर !जिनसे स्थापित हुआ सिख धर्म!समाज की देकर जिम्मेदारी,नेतृत्व दिखाए उन्होंने सुकर्म ! यौवन के पूर्व ही बन गये गोविंद रक्षक नव भारत सीमा के!मुगलों से ले लिया टक्कर,होनहार ने दिखाई वीरता सिद्ध कर के! पगड़ी की लाज बचाई,अपनी मां के दूध का मोल चुकाया,झुकाया ना सिर मुगलों के आगे,पाया शौर्य वीर गति का! अपने चारों पुत्रों को भी मातृभूमि पर किया न्योछावर!पिता गोविंद के कदमों पर चल कर वीरगति पाये …