“रामु सिया सोभा”
प्रकट भये त्रैलोकपति श्री विष्णु और नारायणी! आसीन हुये सबके हृदय,बने धर्मयुक्त नर-नारी! वाटिका में जानकी ने सहसा देखा रघुवर श्रीराम। मन वही रह गया जानकी का ,चरणों में मिला धाम ! स्वयंवर आये अनेक राजा और लंंकापति नृप-श्रेष्ठ। शिव धनुष “पिनाक” हिला नही,प्रयास हुआ निश्चेष्ट ! ब्रम्हा-विष्णु-महेश रचित विधान,संकट से घिरा रावण हरि हाथों मुक्ति के लिए,सबके लिए रचा रामायण! अखंड सौभाग्य जगाने, सिया ने पूजा शक्ति को! पलक भर देख सिया हार गयीं वहीं अपने मन को! पूर्ण हुई इच्छा पृथ्वी की,पाप के भार से वह उबरी। अखंंड सौभाग्य मिला सीया को,रामदर्शन पाई शबरी! हनुमान सेवक बने,सजाये “रामु- …