“आंख चुरा कर!”
मन को भाता तेरा, गोप बालकों संग खेलना मोहन! आंख चुरा कर,मार कंकरी टूटी मटकी से लुटाना माखन ! बड़ा मनोहर लगता जब मैया लाठी ले दौड़ाती तुझको! छुप करआंचल में, कथा नई सुनाकर ठगता तू उसको! तेरा खेल निराला, पशुधन का मालिक होकर चोरी कर खाता! देेख छवि अपनी मणी खंभें में,झट नई कहानी तू गढ़ लेता! आंख चुराकर तू सबको , तर्क से अपने विवश कर लेता! बछड़े को खूंटे से खोल,पूंछ पकड़ आंंगन में दौड़ाता! घबड़ाई गईया रम्भाती,तब झट उनको दूध पिलाता! देख माधव का श्रृंगार मनोरम,वृन्दावन मस्त हो जाता! नित नये तरकीब लगाकर,उलझाता भोली राधा को! …