मंच को नमन ।महिला काव्य -मंच प. रांचीतिथि -२८.८ २४विषय -बतरसविधा- दोहाशीर्षक – बतरस “बतरस”
बतरस होता है तब ही रस भरा।जब मिलता है मन उमंग भरा।। लौटता जैसे है बचपन फिर से।मस्त बने गांव गली में फिरते।। कितने मनोहर सब नटखट से सीखते।चतुर राबडी की कई कथा है सुनाते।। हार नहीं वे किसी से मानते।बढ़ चढ़ कर सब शेखी बघारते।। झूठी सांची धटना को जोड़कर।नये नये तिलिस्म तीर वो मारते।। देने को मात वे कुछ भी कह जाते।तीरंदाजी में वे अर्जुन को हरा डालते। सपनों के ये व्यापारी,स्वप्निल दुनिया में जीते।अग्रज बस मुस्कुरा कर रह जाते। मौसी नानी जब थपकी दे देती।चौंक कर क्षणिक ,वे चुप हो जाते ।। उनको मिलने से ज्यादा बतरस …