मेरी काव्यांजलि

…………………………………………………………….. About the authorBook titleBook descriptionPrefaceAcknowledgementDedication ………………………………………………………………… कवियित्री परिचय: नाम – शमा सिन्हाजन्म – ३-६-५४स्थान – पटना, बिहार।शिक्षा – एम.ए(अर्थ-शास्त्र)           एम. ए(अंग्रेजी)           एम.एड कोमल और संवेदनशील मन की धनी,शमा सिन्हा की शाब्दिक अभिव्यक्ति बचपन से ही कविताओं के रुप में परिणत होने लगी थी ।समय के साथ भाषा की परिपक्वता ने अपना प्रभाव बनाए रखा। इनकी रचनाएं, प्रकृति एवं समाज के विभिन्न परिपेक्ष से प्रभावित होती दीखती हैं ।प्राकृतिक तत्वों को मानवीय गुणों से साकार रूप देकर, वृक्ष और पु्ष्प से मित्रवत वार्तालाप करना,इनकी विशेषता है।इनकी रचनाएं सहज और सरल भाषा में गहरे भावनात्मक एवं अध्यात्मिक जनसंदेशो से ओतप्रोत हैं। … Continue reading »मेरी काव्यांजलि

मुझे मिठाई बहुत पसंद है। मीठे व्यंजन की चाहत सभी को होती है। किसी किसी को बहुत ज्यादा होती है। उन मीठे व्यंजनों को पसंद करने वालो में मै भी हूँ। शायद मेरे बत्तीसो दाँत और जिव्हा ,इनके अथक प्रेम अनुयायी हैं। खाने के पहले, खाने के बाद और बीच-बीच में भी मुझे मीठा खाने की इच्छा होती है। खासकर, रसीली मिठाई अमृत सी लगती है। मैंने अमृत पान नहीं किया किन्तु सत् चित् आनंद ईश्वर है तो इसके पारण से भी मीठाई प्रेमीयो को कुछ वैसा ही सुख मिलता है ,यह मेरा अनुमान है।दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ ! “जय जय जय मधुरस संतृप्ती “

तासीर, उसकी होती चित-शीतल- मधुर, वह है रसीली मनभावन मिठाई,रंग जाता मन उसमें पूर्ण, हो जैसे नैसर्गिक कथा पावन कोई।छुधा- तृष्णा संतुष्टी पश्चात, वह निकट अचानक दे जाये अगर दिखाई,रसीले गुलाब जामुन, जलेबी, चन्द्रकला, उसके है सगे रिश्तेदार भाई,अनोखी मीठी अनुभूति, नयनों ने संगीत-सरगम के साथ है पिलाई ,जैसे पूर्ण चंद्र देख,मधुर राग में व्याकुल पुकार चकोर ने है लगाई,ज़बान हमारी, बिना चखे ही,आनन्द- रस – सागर में डूबी उतराई ।कंठ-हृदय-उदर पथ,पुष्प पंखुडियां केसर सुगंध ऐसी सुन्दरता पसराई,स्वाद-कलिकाये, दृष्टि निर्दिष्ट हो,असीम नैसर्गिक संतुष्टी भरमाई ।किया जब आलिंगन, जिह्वा ने रस-बून्दो का, बजी बहार की उच्च स्वर मधु-शहनाई ,आत्मा यू आनन्दित … Continue reading »मुझे मिठाई बहुत पसंद है। मीठे व्यंजन की चाहत सभी को होती है। किसी किसी को बहुत ज्यादा होती है। उन मीठे व्यंजनों को पसंद करने वालो में मै भी हूँ। शायद मेरे बत्तीसो दाँत और जिव्हा ,इनके अथक प्रेम अनुयायी हैं। खाने के पहले, खाने के बाद और बीच-बीच में भी मुझे मीठा खाने की इच्छा होती है। खासकर, रसीली मिठाई अमृत सी लगती है। मैंने अमृत पान नहीं किया किन्तु सत् चित् आनंद ईश्वर है तो इसके पारण से भी मीठाई प्रेमीयो को कुछ वैसा ही सुख मिलता है ,यह मेरा अनुमान है।दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ ! “जय जय जय मधुरस संतृप्ती “

“भैया दूज”

बचपन की कुछ प्यारी यादें,आज आप से करती हूं साझा। जीवन होता था सरल बहुत तब,पारदर्शी थी व्यव्हारिकता ! परिवार हमारा साथ मनाता त्योहार ,एक ही आँगन में जुट, सबको यही चिंता रहती,कोई भाई बहन ना जाए इस खुशी से छूट! भाई दूज पर मिलता पीठा – चटनी,और फुआ बताती बासी खाने की रीती। चना दाल की पूड़ी, खीर, आलू-टमाटर-बैगन-बड़ी की सब्जी! गोबर से उकेर कर चौक,कोने में सजाते पान-मिठाई- बूंट । दीर्घायु होवें सब भैया हमारे,हम बहनें पूजती शुभ “बजरी” कूट! चुभाकर “रेंगनी” का कांटा,सभी जोगतीं काली नजर का जोग टोना। फिर जोड़ती आयु लम्बी,मनाती भौजी का रहे सुहाग … Continue reading »“भैया दूज”

“”शुभ होगा मंगल -मय वर्ष 2021 सबका!”

शुभ-सूर्य ,का आशीर्वचन,होगा शुभ वर्ष 2021सबका! शुभकामना प्रभारित करेगा, चहु ओर शुभता सागर का। शुभ रंग -रूप धारण कर यह सबका सपना पूर्ण करेगा। शुभ- शुभ्र होगा प्रतिबिंब, सबकी अपेक्षित आकाशंओ का । शुभ- सौभाग्य से शीघ्र ही, विश्व प्रारब्ध आच्छादित होगा। शुभ स्वस्थ-मधुर स्वर कलरव ध्वनित, सबका घर आगंन होगा शुभदायक शुभाशीष लिए, मंगल मय2021फलदायक होगा। शुभकामना प्रभारित करेगा, चहु ओर शुभता सागर का। शुभ रंग -रूप आशा धारण कर यह सबका सपना पूर्ण करेगा, शुभ- नवरंग प्रतिबिंब होगा, सबकी अपेक्षित आकाशंओ का । शुभ- स्वर्ण किरणो से शीघ्र, विश्व प्रारब्ध आच्छादित होगा। शुभ स्वस्थ-मधुर स्वर ध्वनित, सबका निज … Continue reading »“”शुभ होगा मंगल -मय वर्ष 2021 सबका!”

Daughter ‘s day

Happy Daughter ‘s Day अपनी सब बेटी को हम सबका प्रेम भेंट , “सहचरी अभिन्न बन गई, आज वह हमारी है,ममता की छाँव पसारे,वह विशाल घनेरी है ,जन्मा हमने, पर सहसा बन गई माता हमारी है ,कहूँ किन शब्दों में,मन उसका कितना आभारी है।बहुतेरे आकांक्षाओं की वह बनती सदा सहभागी है।ईश का असीम स्नेह बन, बेटी घर सबका भरती है ।” शमा सिन्हा29-9-’20

बादल का आना

रंग छाया नभ पर श्यामल। जैसे उड़ा अंगवस्त्रं  मलमल।। काला हुआ सावन का अचकन । आंखों से उसके रंगा पसरा अंजन।। पंख फैलाकर आए उडते  बादल । बिजली ने कौंधाया चांदनी चपल।। परिंदे,खोज रहे घोंसले की दिशा। जाग रही चहुंओर जीवन जिजीविषा।। स्वरचित एवं मौलिक शमा सिन्हा रांची।

गांधी

हिला दिया उसने,प्रवासीय प्रशासन विधी! लूट लिया तर्कों से अपने ब्रिटिश सरकार की गद्दी! वह क्रमचंद-पुतली बाई का था अनोखा सपूत! दो अक्टूबर 1869का दैवीय आनंदकोष अटूट! वह विलक्षण बालक बना हमारा महात्मा गांधी! अहिंसा के साथ चलाई जिस ने हिन्द राष्ट्रवाद की आंधी! पाकर संदेश मांगा जगत ने अपना नागरिक अधिकार ! नेतृत्व में, गांधी के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम चढ़ा पारावार! बन कर दीप अनोखा ,छेड़ा राग आन्दोलन का! सम्पूूर्ण भारत को, उन्नीस सौ सैतालिस में,दिया उपहार स्वतंत्रता का! शमा सिन्हारांची।तिथि: 30-1-24

कहूं किससे?

इस हाल को करूं बयां किससे ? इस उम्र में सुकून मिले जिससे।। जोड़ कर तिनका बनता घोंसला। बारिश में  रखने को हौसला ।। अगर परिंदा सदा उड़ता ही रहे। भींगीं पलकें कभी खुल ना पायें ।। लोगों कहते,”रात बितालो मेरे यहां!” पर रात भर में कटेंगी न सारी सांसें वहां? और ग़र पंख उसके सदा भींगते ही रहें। चौखटों पर, औरों के फुदकता फिरे।। ऐसे घोंसले का क्या उसे  है फायदा । जिसके रहते भी वंह रहे सुकून से जुदा? शमा सिन्हा मुंबई ८-७-२४

मंच को नमन

                            “अटूट सम्बन्ध “ जाने कैसे जुड़ जाते हैं दो मीत।बनते सहगामी,लेकरअक्षय रीत।। इस जीवन के भी वो पार निभाते। रंजिशों को अपनी छोड़ हंसते गाते।। कसमों के बंधन में दोनो बंध कर। लोकलाज में रहते साथी बन कर।। गृहस्थी की गाड़ी चलाते मिल कर। रक्षित होता धर्म मर्यादा में रहकर।। कई बार ऐसा भी वक्त आ जाता। नींव का कोई पत्थर हिल जाता।। फिर चिंता की अग्नि जलाने लगती। भावि कीस्मत की दिशा सताने लगती।। जब सूझता ना आंखों को रास्ता कोई । अदृश्य होती नियति, विश्वास लेकर कोई।। धैर्य थाम, दोनों खुशी का किनारा तब ढूंढते। कुछ देर … Continue reading »मंच को नमन

“याद तुम्हारी “

          “याद तुम्हारी ” आयेगी जब याद तुम्हारी पुनः इस बार ।दोहराने फिर साथ बिताए पलों का सार।। मनाही है मेरी उनको ,रुलायें ना जार जार।करने दें चैन से मुझे इस जीवन नैया को पार ।। है ग़र पास कोई याद मीठी, होने दो स्वर गुंजार।वर्ना रहे दूर मुझसे,बार बार करें ना कांटों का वार।। पिछली बार जब वह आई थी,भिंगा गई थी पलकें।हो गया था बोझिल मन मेरा अति, रह बीच सबके।। अबकी जब आओ,संग उन्हीं पलों को बस लाओ।भर कर गीत खुशी के,मेरे मन सरल को बहलाओ।। स्वरचित एवं मौलिक। शमा सिन्हारांची।