दिनकर भैया!

क्या कहकर मैं खुद को समझाऊं उन वादों को आज कैसे मैं  दोहराऊं। त्योहार पर जब हम सब  मिलते थे अश्रुजल से विदा आप हमें करते थे। अब कहो कौन वैसे हमें लौटायेगा? हम सबकी हौसला अफजाई करेगा? परिवार के दिनकर,भैया आप ही थे ! आपकी छाया हम भाई-बहन जीते थे! दे ना सकते हम आपको कभी विदाई! राह सदा दिखाना,बने रहना “बड़के भाई”! स्वरचित एवं मौलिक। छम्मो ता:-२०.१२.२४

मंच को नमन।

महिला काव्य मंच रांचीतारीख -२०-१२-२४विषय -मां/ममताशीर्षक- मां मां तुम्हीं कहो,दूं क्या तुम्हारा परिचय हमारी ज़िन्दगी ने लिखा तेरे नाम है हर विजय । रहता सजा हाथों में जिसके हैं अभयदान सदा,देखते ही मुझको छलकती उसकी ममता! जानती नहीं तू रात और दिन में कोई फर्क ,छुपा है तुम्हारे आदान-प्रदान में निश्छल प्रेम अर्क! आकांक्षाओं के ताबीर से,खुद को रखती बहुत दूर ,हर श्वास में जिसके हैं अपने ललन- ललनाओं का नूर! जिसकी हस्ती के आगे स्वर्ग भी होता नतमस्तक,आज तुम्हारे चरणों में देती तेरी हर संतान दस्तक! मेरी आंखों की रौशनी ज़बान भाषा है तुमसे!इस जीवन की पहचान है तुम्हारे … Continue reading »मंच को नमन।

OumA very happy birthday to you, Pai! जीवन में जन्मदिन का वजूद विशाल होता हैएक दिन ही सही, सागर -सौभाग्य बरसाता है। ज़रूरी नही ,मजलिस लगे,दावतों का हो सिलसिला!पता नही फिर भी क्यों इस दिन बढ़ जाती हैउमंगे-हौसला? यह कोई नई बात नही, बचपन से रहा इसका दबदबा !सभी अग्रज के आशीष का सच्चा साकार है फलसफा ! सूर्योदय से ही जन्नती खुशहाली शान से छाई रहती थीउपहार की फर्माइश के पीछे कितनी साजिश होती थी। छोटी फेहरिस्त की गुफ़्तगू सुबह शाम सखिया बतियाती थीं।गुड़िया संग दूल्हा ,उनकी शादी मे बनेगी सखियां ही बाराती! कौन क्या देगा,कई दिन से इसका … Continue reading »

; ” THE UNSURMOUNTABLE”

Many a time, I wonder, watching the fleeting Clouds! They come and go without looking into any other direction, as if they were blinded from all sides alike a carriage horse, tbst cannot see anything, except their predestined path of journey! I wish I could send words of friendship and compassionate request to these monsoon cloudes! I feel an urge ! I wish I could make it understand how dearly each of us , far and near, from the high mountains to the valleys, from the green grasslands to the dry dessert sandy regions, from the temperate forests to the … Continue reading »; ” THE UNSURMOUNTABLE”

“जरा बचके!”

हो रहा समय, मिलन सूर्य -संध्या का,तारों को बांंहों में समेट,छा रहा अंधेरा।“जरा बचके रखना कदम ओ मेरे सजना!”दे रहा आवाज, क्षितिज से मल्लाह नांव का। पता नही है दूर कितना अपना वह किनारा,भला यही,मध्यम धारा के संग बहते रहना!“जरा बचके दूर,नदी के भंवर से रहना!पतवार पकड़,दिवास्वप्न में तुम ना खोजाना!” यह सफर है,बस हिसाब लेन-देन का,“जरा बचके करना! है व्यापार कर्म का,यह रिश्ता है बस अधिक-शेष गणना का!बेखबर!फिसले ना यह अनमोल नगीना सस्ता!!!” शमा सिन्हाता:30-10-23

“आशीर्वाद “

महिमा नापी ना जा सकती,ऐसा अमोल है होता आशीर्वाद, असंभव को भी संभव करता,पाकर इसे सभी होते कृतार्थ ! देव,ॠषी ,नर और असुर, इससेे सभी बलशाली हैं बनते, जागृृत करती यह शक्ति अनूढी,अतुुल वीर हम बन शत्रु पछाड़ते! करती पूर्ण सबकी कामना ,शगुन भी इसमें है नित दर्शन देते, “इक्ष्वाकु-वंशज आशीष”जैसे विभीषण को लंका नृप हैं बनाते! आशीर्वचन श्री राम का पाकर लक्षमन ज्यों हुए सनाथ, रघुुवर नाम उच्चारित तीर अविलम्ब हर लिया प्राण मेघनाथ! काज सम्पन्न होते मंगलमय , देते जब अग्रज हृदयाशीष , शुभदायक होता सब अवसर, अर्जन को आशीष,अनुज रखते चरणों में शीश! हनुमान बने बली, शिरोधार्य … Continue reading »“आशीर्वाद “

“WORDS OF THE WINGED”

Night waned,sky has raised another curtain,Surprised I am as enters the divine Sun!A tiny dot popped up when I gazed intently,Darkness still ruled when rosy rays creept secretly!River rippled softly,mountains shone graceful ,Leaves rustled quietly among branches cheerful!Birds bobbed their heads to select a direction,Up they took a flight,marking a celebration!“It rises every morning,what makes it special ?”Many crossed overhead regailing a chirpy mail,“We’re breathing!O,we’re flying! isn’t it a festival !”I looked in awe and wished,”If with them I could sail!” (Original,written by self.)Shama sinha3-1-24

“बस मुस्कुराना सीख लो !”

बस हर बात पर मुस्कुराना शुरु कर दो ,यादो को सारी, हवा के नाम कर दो. वो निशान, वो चुभन सब एकबारगी,खुशबुये चमन के नाम वसिहत कर दो ! आखों मे चमक आएगी नसों मे नरमियत ,होगा अहसास ,झूठी थी वो सारी दहशत ! साथी ना हो फिर भी जलसा सा लगता है,हर सांस मुक्कददर का सिकंदर होता है ! रांजिशों से दूर ,बस आगे चलना याद रहता है,हँसते लबों को,रंगींन हौसलों का साथ होता है ! हम हर बात पर अगर मुस्कुराना सीख लें ,सुकूने बादशाहत का ज़शने-नशा पा लें !

” Tryst with the Sun”

Fast, I saw him,spreading his mighty traces. And called him aloud as he smeared pastel red rays. “Don’t you ever feel lonely in that big wide space? I see no company treading with you at your pace! Your schedule is strange, peculiar is Your way! You move not with planets, they dance on your play! “ “Is it so?”He gaped at me blinking in surprise . But I never felt like what you today surmise ! O,my friend, I never was alone, nor will I ever be! Perhaps you see not that power stably holding me! All my shine, the … Continue reading »” Tryst with the Sun”

“मुस्कान “

परिस्थिति कोई हो,सहज देता यह सबका समाधान । “अहंआनंन्दम”,रंग देता चारो दिशा सम्पूर्णआसमान ! दूरी सारी मिट जाती,अपनेपन की सजती होली! रंगोत्सव चिबुक खेलता,आखें बोलती प्रेम की बोली! अपने में छुपाये रखता,जाने कितने गमों की रोली, इसका मूक मधुर संगीत बनाता दिल वालों की टोली! पल भर में ही कह यह डालता बातें कितनी अनबोली, जैसे कर रहा हो वह अपनी ही किस्मत से ठिठोली! एक बार में कर जाता,सबके दृष्टि संदेह को निरूत्तर , बड़ता है प्रभाव इसका, समय के साथ दिनोंदिननिरंतर! आभा इसकी इतनी मनोरम, फट जाते बादल काले, उगता दिवाकर फैलाता सुंदर मयूूख सजीले और सुनहले! बिना … Continue reading »“मुस्कान “