नया सवेरा

आज जब सूरज आया, जगाने लेकर नया सवेरा, मुुग्ध देख ,उसकी छटा निराली देने लगी मैं पहरा! स्नेेह अंजलि मध्य समेट चाहा  उसे  घर लाना! वह नटखट छोड़ मुझे चाहा आकाश  चढ़ना! होकर  मैं लाचार, लगी देख ने उस की द्रुत चाल, सरसराता निकल गया वह,भिंगोकर  मेरी भाल! “तुुमही जीत  गये मुझसे!” कहा उससे मैनें पुकार । “अभ्यास कर्म है नित का!”बताया सूूर्य  ने सार ” कर्त्तव्य करो!तुलना करने से ही सब जाते हैं हार! चरैवेती!चरैवेती!कर्म-चेतना करेगी हर कठिनाई  पार!”

              सूर्य

जिनका है उदित और अस्ताचंल रूप मनोरम, आठों पहर शक्ति जिनकी, रहती सदा सम! प्रगट होते देेव वही,सुमधुुर स्पंदित अरुणाचल, मिटा अंधेरा, दीप्त करते,नभ से पृथ्वीतल! सातो दिवस धरती पर आते सूर्य देव हमारे, पाकर दर्शन जिनका, कृतार्थ होते पृथ्वी वाले! निरख रुप साकार जिनका ,अर्पित अंजली भर जल, तत्क्षण मानव समाज बनता, तन मन से निर्मल ! बस हाथ उठाकर निवेदित होता जब इन्हें प्रणाम, दर्शन मिलता प्रत्यक्ष,पूर्ण होते अभिलाषित काम! विश्व-धर्म के हैं आधार, सर्व विश्वास के यही धाम! सूर्यकुुल इक्ष्वाकु-वंशज,हरिशचंद्र,सगर,जय श्रीराम! स्वरचित और मौलिक। शमा सिन्हाराँची।

आज तेरा जगराता ,मां!

मैं आई तेरे द्वारे मां,लेकर अपनी लंंबीअर्जी संंग लाई हू सजे थाल में तेरी रंंग-जवा चुनरी! आज मुझेअपना लेना मां,मन ने आस लगाई ! तेरे ही दर पर सबने मां,मनसा-ज्योत जलाई! हर पल मेरे साथ तू रहती,सुलझाती कठिनाई, अखंंड दीप तुम्हार जलता,रोशनी सबने पाई! महिषासुरमर्दिनी हो तु ,शुंभ ,अशुंभ को तारी! गलतियां सारी माफ करो मां,मैंने गुहार लगाई ! पंच तत्व की काठी मेरी,हो रही बहुुत कमजोर तेरी दया के बगैर मैया,होगी नही  मेरी भोर!

“कहां मुकम्मल जिन्दगी?”

रोज रोज की छेड़ छाड़ मुुझसे ना करो ऐ जिन्दगी तुम्हारी जिद पूरी करने मे खाक होती है जिंदादिली! औरों की उचाईयों को तुम ,छूने की करो ना कोशिशें चाहिए खुशी तो मन को बांधो,समेट रखो ख्वाहिशे ! कर्तव्य के रास्ते में सदा सबके,आती हैं रुकावटें बहुत, टूटता है धैर्य कभी और बचती नही हिम्मत ही साबुुत ! सफलता में औरों के कभी,तौलो नही सक्षमता अपनी, खुद के प्रयास को जोड़ो,सिर्फ उपलब्धियों से अपनी! जीवन तुम्हारा है,औचित्य तुुम्हारा बड़ा! औरों का नही, स्वयं निर्णायक बन,वही करो जो हो तुम्हारे लिए  सही! सपनों के सागर  मे जिन्दगी कभी मुकम्मल  होती नही … Continue reading »“कहां मुकम्मल जिन्दगी?”

मन की आंखें

मंच को नमन शीर्षक-मन की आंखेंविधा-कवितातारीख-8- 4 -24 वे होतीं हैं सबसे समझदार,तोलती पक्ष ,दिशा आर पार!तत्व का खोज लेती गूढ़ सार,सक्षमता गढ़ती सत्य आकार! स्वरचित एवं मौलिक शमा सिन्हारांची।

“मजाक”(Ranchi  kavya manch)/”ध्यान के अंकुर”(for Mansarover  sahitya)

पल पल घर में गूंजाना  किलकारी! प्रिय बनाना शब्द उच्चारित  सबके, चेहरे पर सजाना ,चमकती मीठीहंसी! तह पर तह सजे सारी ऐसी बात, ए  हंसी तुम आओ  झोली भरके! मीठी यादें भिंंगोये हमारी पलके! वही लौटने को मन चाहे दिन रात जहां फिर हम सब हो जायें सबके! बिछे नही प्रतियोगिता की बिसात हंसी ठिठोली लाये ठहाके सबके बीते समय रसीले ठहाकों के साथ मजाक ना करे टुकड़े किसी दिल के! स्वरचित  एवं मौलिक रचना शमा सिन्हा रांची।

“देखो मचा धमाल, हुआ ये कैसा हाल!”

मनभावन यह मौसम,बसंत  लेकर  है आया देखो गूंंजा बुलावा कृष्ण की मधुुर  बांसुरी का! “ना आउंगी खेलने होली,तुझसे ओ चितचोर, तूने किया विह्वल ऐसा,पिहू! पिहू बोले मोर! वृंदावन के छोरों में  ऐसी लगी  आज है होड़, किसने कितनी मटकी फोड़ी, कन्हाई रहे जोड़! मैनें भी कसम है खाई,रंग तब ही उनसे लगवाउंगी , आज माधव देंंगे बेणु अपनी,मैं ही सबको सुनाउंगी!” कह रही थी राधा,मन की बात सखी ललिता से, मुस्काते नंदलाल समझा रहे सखाओं को इशारों से! “माफी मांगने गिरना तुम सब किशोरी के चरणों में, सराबोर कर दूंगा झट,श्यामा प्यारी को मैं पीछे से!” फिर  क्या था,ग्वाल बाल्को … Continue reading »“देखो मचा धमाल, हुआ ये कैसा हाल!”

होली

हे कृष्ण, तुम  लेकर रंग  ना आना इस  होली पर, कुंज गलिन ने बिछा दिया, चम्पा गुलाब राहों पर ! गिनती करते मैं थक गई,बीते कितने सूने पहर, करना ना तुम बहाना अब देखो टूटे ना मेरा सब्र! “लौटूंगा शीघ्र!” कह कर,छोड़ गये हमें गोकुल में, सखा ढ़ूढ थके तुम्हे,गलियां मथुरा-वृंदावन राहों के! खेलेंगे हम  इस बार  होली, मधुबन की मिट्टी संग हम ग्वालिने लायेंगी, जमुना-जल में मिलाकर भंग! ऐसी चढ़गी मदहोशी तुम पर,भूल जाओगे मथुरा, नंद-यशोदाके संग, सारा बृदावन का बैठायेंगीं पहरा! जैसे बांधा था मैया ने उस दिन तुमको,ओखल संग चतुराई  जो दिखाई तुमने तो भर लेंगे तुमको  अंक! … Continue reading »होली

भगवान  विष्णू

दिया यह अस्तित्व मुझे तुमने स्वीकारा तुम्हे पिता है हमने! दौड़ रहा जो लहू है जग में, कण कण है अनुग्रहीत तुमसे! चकित हूं देख तुम्हारी महारथी! स्वतः कैसे सारी क्रियायें हैं होतीं! आंख चहूं ओर सहज है देखतीं पलक झपकते तंत्र सूचना देती! पानी पीना है या भूख है लगी! अंग करते पूर्ण  इच्छायें सारी नियंत्रण करती शक्ति तुम्हारी! कैसे मन, विचार-विमर्श है करता? किस यंत्र के सहारे कार्य होता? इस यंत्र को कौन बैट्री है चलाती? उसकी उर्जा किस स्त्रोत से हैआती? किनअवयवों से विद्युत उत्पत्ति  होती! अन्न और जल कैसे सबकी पूर्ती हैं करती? नलियां कैसे भोजन … Continue reading »भगवान  विष्णू

बसंत

शीथिल हो रही प्रकृति को किसने है जगाया? गम्भीर मन उसका किसने चंचलता से नहलाया? धरा सुप्त पड़ी थीं अभी , किसने उसको बहकाया? चुनरीओढ़ा झीनी-पीली, पायल किसने है पहनाया! वह कौन शुक-सवार है जो पांच बाण लेेकर आया? बना कर हर कोना रंगीन,खेतों में भी फूल  सजाया? समीर ने पी लिया मधुरस कोई,इत-उत है फिरता बौराया! तीसी रंग गई नीली,बसंत रंग गेंदा ने है बिखराया, फैला कर बांहें डालिया ने,टिथोनिया को गले लगाया! सोया मोगरा जाग उठा,उड़ा गुलाल,होश में रजनीगंधा आया! गाने लगे गीत भौरे,तितलियों ने  वेणु पर राग मल्हार  बजाया! ब्रजवासी हुये यूं मस्त जैसे अबीर संग मदन ने भंग … Continue reading »बसंत