जिन्दगी जवाब दो!

पलट कर देखती हूं कभी जब भी तुझे तो देती मैं घबड़ा कर सोचना छोड़ दिमाग के पट बन्द करना हूं चाहती सोच से परे तू भयावह है दीखती अचरज है कैसे तेरे रास्ते मैं गुजरी! कितने पाप किए थे,कितनी गलतियां? पूूछती , क्याऔर कुछ है अब भी बाकी? हिम्मत का क्या यही लिखा होता है हश्र? क्योंकि सब्र का नतीजा होता इतना वक्र ? हां,अपने कर्मो क बोझ तो उठाना होगा और उनके साथ इन सांसों को ढोना होगा हां इतना ही सुकून कोई रोग नही व्यापा! मैं दवा नही खाती,शरीर काम कर रहा! किन्तु वक्त के खिलाफ बहुत … Continue reading »जिन्दगी जवाब दो!

जबसे मुस्कुराना

शिकायतें सारी हो गईं हैं अब पानी हुनर सीखा है जबसे होठो ने धानी दूूर हो जाती है इससे कई परेशानी बिना बोल, बोलती यह ऐसी वाणी ! पास रहता सबके,यह धन होता ऐसा ! फर्क इतना, हम रखते नही अपने जैसा तोलते सुकून से नही, बना बाट पैसा! फिर सख्त होठ दे ना सकेंगे बैन वैसा! आंख देखेंगी,दिमाग पहनेगा नया चोंगा सबसे मिल कर भी गैरियत ही पलेगा पैसे की हवस ने बदला है वह प्यारा जमाना अपनापन बिसराया,हम भूले जबसे मुस्कुराना! 6-2-24

कैक्टस

देख कांटे अनेक उसके सब कहते,”दूर रहो!” पर वह मस्त मौला गुंजारता”मुझसा जियो!” मैनें पूछ ही दिया,”ऐसी क्या बात है तुम में?” बताओ ,क्या है बल,क्यों इतना शोर मचा रहे?” “समझ जाओगी,बस कुछ ठहर जाओ मेरे पास!” मैं चकित थी,स्वर में भराथा उसके स्नेह सुबास। दिखाया उसने,निकट ही खिला उसके गुड़हुल पुष्प। एक पहर बीता,शाम के साथ मुर्झा,वह हुआ शुष्क। “अलविदा दोस्त!”कह, वह सुर्ख स्मित फूल हुआ सुप्त! पूछा कैैकटस ने”अरे, तुम्हारी सुंदरता क्यो हुई लुप्त ?” “काया कोमल थी मेरी! ना सह सकी कटु सूर्य प्रहार ! तुम बलवान हो मित्र!तुम सह सकते हो प्राकृतिक वार! फिर कभी होगी … Continue reading »कैक्टस

खुशियों की सरगम/

आजाने से तुम्हारे,मिजाज हवा का बदल जाता! मन गीत गाता उमंग भरा,माहौल सारा रंग जाता! शीतलता छाती अंबर पर, सूर्य संग झूमने लगता ! तुम जब आती हो मन मेरे, नशा सा है छा जाता! एक गुदगुदी होती चित में, चेहरा खिला चमकता! चंदन लिपट भावनाओं से,चिंतन सहज है करता। तुम आती पल भर ही,पर सब कुछ जैसे बदलता। बजती खुशियों की सरगम,मन नाचने है लगता!

मन परिंदा बन

देख कर उनका चहकना,झूम हूं उठती ! लगता है जैसे पैरों में उनके पायल है बंधी ! गूंजती है कानों में ऐसी चंचल नई सी धुन। जैसे पके मीठे दानों की माला रहा कोई बुन! झाड़ियों में कूद कूद कर हलचल हैं मचाती जाने कितनी बातें सखियों को हैं बताती! फिर जैसे जैसे सूर्य लगता अवसान में डूबने, अपने घोसलों को लगती ये सब भी खोजने! पत्ते भी साथ ही इनके स्थिर खामोश हो जाते। क्षितिज की लाली के साथ जब फिर सब उड़ते मेरा मन परिंदा बन, इनके साथ ही उड़ जाता! 4-2-24

मुझे शिकायत है!

ऐ मन ,तू रहता सदा साथ मेरे ! रहूं भीड़ में या होती हूं अकेले! मित्र मेरा, तू ही एक है अंतरंग! फिर क्यों करता है मेरा चैन भंग ? तुुझसे छुपी नही मेरी कोई बात। चलता रहता संंग चारो पहर साथ ! याद रखना किंतु मेरी एक बात, बांधले पल्लू में अपने तू यह गांठ ! अब जगाना छोड़ दें मुझे देर रात! तेरी यही आदत परेशान करती है! तुझसे इसीलिए ही ,मुझे शिकायत है! सीमा सिन्हा 5-2-24

कोई समझा नही

चाहती थी मैं अपने मन की बात उसे ही बताना! मन कसक उठता ,जजबाती बन जाता अफसाना! खोल नही पाती गांठ उफन कर रह जाता पैमाना! मिल कर अपनों से,मन रहता है वैसा ही अंजाना! प्याले में खोजती हूं मेराअपना वह पुराना आशियाना! लेकिन तय हो गया है, जल्द मेरा भी इस घर से जाना! क्या कह कर समझाऊं?कैसे अपने मन को ढाढ़स दूं? ढल रही शामअब,आशा का सूर्योदय कहां से लाऊं? विभ्रान्तियां अनेक पल रहीं, सबके विचलित मन में। रख कर खुद को अलग ,ढूढ़ रहे सब प्रभू को वन में! चल रहा तन-मन,अचम्भित हूं,उस शक्ति को कैसे पहचानू? … Continue reading »कोई समझा नही

इंसान में इंसानियत

अरे, यह क्या हुआ बिखर गया है क्यों समाज धन की लोलुपता छोड़ कुछ नजर ना आता आज! नदी किनारे संयुक्त हुआ था करने को नेक काज टुकड़ों मे है बिखर गया कहलाया था जो समाज ! कहां बह गई वह टोली,गढित वह स्वर्णिम सभ्यता, लुप्त हुई मिठास दोस्ती की, अदृश्य हुई मानवता ! वह परिवार, हमारा आस-पड़ोस में फैला संसार ! देखो हुआ छिन्न-भिन्न ,पड़ा स्वार्थ का कटुकुठार! अर्थ ने बोया बीच हमारे क्यों इतना वैचारिक मतभेद ? थाली से हमारी जाने कहां चला गया परमार्थ समवेत! “हम हैं बीज इसके!”हुआ निर्जीव यह वैचारिक मत! ज्यों कस्तूरी की खोज … Continue reading »इंसान में इंसानियत

रामायण काव्य महत्व

“रामायण की महत्ता” रामायण काव्य नही अपितु आदर्श संहिता हैं।समाज के प्रत्येक क्षेत्र के वर्णन के साथ, गुरु, माता ,पिता,स्त्री-पुरुष, भाई,मित्र,सेेवक यहा तक की दुश्मन की महत्ता का नाम रामायण है। नीतीपूर्ण जीवन के संदर्भ में समसामयिक घटनाओं का किस प्रकार आदर्श सामाजिक संयोजन होना चाहिए, इसी का वर्णन बालमीकी मुनी और तुलसीदास ने किया है।कर्तव्य और धैर्य के पथ पर चलकर जैसे श्रीराम ने ना सिर्फ अपने जन्म के उद्देश्य को पूर्ण किया बल्कि सन्तुष्ट जीवन जीने की आधारशिला भी रख दी जो स्वतंत्र भारत के संवैधानिक अधिनियम का भी आधार बना ।हनुमान का पुत्र स्वरूप ;केवट का सेवा … Continue reading »रामायण काव्य महत्व