जाड़े की धूप

मिलती जाड़े कीधूप हमें,काश शहरी बाजार में! होता इससे सबका श्रृंगार घर के सुुनहरेआंगन में! फिर सबके नयन नही, जोहते बेसब्री से उसकी बाट! कपड़े भी झट सूखते,नही लगती इतनी देर दिन सात! पर शायद!ऐसा सपना कभी नही हो सकता है पूरा! विज्ञान का,प्रकृतीरहस्य में हस्तक्षेप होगा बहुत बड़ा! आज धूप छुु़ड़वाता काम,तब होती है मुुन्ना-मुन्नी की मालिश ! बच्चों को भी करनी होती सोच विचार कर बहुुत साजिश ! तब जाकर बाहर खेलने की,उनकी पूरी होती ख्वाहिश ! अम्मा भी तब कहतीं”सूूर्य ही देगा विटामिन डी पौलिश! यहीं हमारे कपड़े धुलेंगे,तह होंगें सब और सब सूखेंगे! आज हम सब … Continue reading »जाड़े की धूप

मातृ भाषा को नमन

नमन मंच को। मुुखरित होते हैं जिससे,सबके मन के भाव।मां सा प्यारा रिश्ता उससे ,फैलाता जग पर अपना प्रभाव ! शब्द उसी के, आवाज उसी की,कोई नही है उससे दुलारा! जीवन के सारे अनुभवों की अभिव्यक्ति, नमन उसे है अनेक हमारा! शुभकामनायें।🙏

मचल मचल कर वह बांवरी, यूं बरसने आई है ढक गया नीलनभ भी, धुंध श्याम छवि लाई है। खो गई डालियां, कलियां कोमलांगी झड गई हैं। प्रीत अनोखी, धरा-गगन की, रास रंग की छाई है। कतारों मे चल रहीं,रंगीली जुगनुओं सी गाडिय़ां । सरसराती, कभी सरकती, झुनझुनाती पैजनियां । देखो कैसी रुनकझुनक, मस्ती संग ले आई है । सब पूछ रहे रसरजिंत हो, यह क्यों ऐसे मदमायी है? नांच रहा कोई, ऐसा कौन रंग बरसाई है छुप रहा कोई-पत्तियों तले ना ये जा पाई है गा रहा कोई- यूं राग तरिंगिनी बन यह आई ह रोको न इसके कदम-ले जाने इसे आई पुरवाई है। कडकती बदली से चुरा, श्यामल चुनरी लाई है!

नये घर के आंगन से

क्या किसी ने पुकारा? घर किसे कहते है,मैं सोचती हैैरतअंदाज सजी कोठरिया या गूंजती हसी का साज वह तिल तिल जोड़ता, नये सपने बुनता “हर ईट को मैंनें इन हाथों से है अरजा कल के कष्ट भरे पलों को कफन उढाता गर्व से उठा कर सिर वह अक्सर कहता, बनाया यह महल सबके महल से ऊंचा! कह दे कोई किसी ने धागे से मदद है किया। एक उसके सिवा मेरा हाथ किसी ने नही पकड़ा ईश्वर ने ही सम्भाला,सबने तो मूंह है मोड़ा। देखेंंगे,मैं कैसे शान से हूं अपने महल में रहता ऊपर वाले के सिवा कौन है जो किसी … Continue reading »नये घर के आंगन से

The Whistling bird

A sweet long shrill whistle followed me Every time I peeped out of the window to see! Surprised I was to find none there to be In search, I strayed through lanes, in hours wee. Lazy air, camly enclosed me wherever I be, I knew not opening this secret lock with key! Confused I was, wondered who could it be! My efforts didn’t reward, betrayal smiled in glee! One over the other thoughts,surmounted in number, innumerable and strange sounded this stranger, As I strode to the road in fog once again it nearer, A fear gripped,I jogged fast in fog … Continue reading »The Whistling bird

तमन्ना

बर्बाद करती है रौनक इसकी,जिन्दगी को नही देती चैन इसकी शख्सियत एक पल को! सुबह-शाम घड़ी से तेज चलते है इसके कदम, आप ना चाहें फिर भी रहती है साथ हरदम! इसका नशा बि

विडम्बना

विडम्बना बांधा था मां यशोदा ने कृष्ण चंद्र लाल कोगोपियों की शिकायत. माखन की लूट को ब्रम्हांड कौ जो बांधे,रस्सी कौन बांधे उसको?विधीका विधान देखो,कुपूत ने बांध मा बाप को! आंख लाचार,पैरों से हुआ मुश्किल चलना!जतन करें कैसे,कठिन है दो वक्त का खाना! उम्मीद रही टूट ,किया शुरू अंधेरे ने घेरना!सब धन लुटाया जिनपर वही करें अवहेलना! बाट रहे ताक,सीखा नही जिसने वादाह निभाना!अच्छा नही किस्मत का,लाचारी की हसीं उड़ाना! (स्वरचित मौलिक कविता) शमा सिन्हाता: 07/01/2024

सौंदर्य

“सौंदर्य” कल तड़के सुबह सवेरे,आया जब नगर निगम से पानी, स्फूर्ति से उठाकर पाईप मैं चल दी नहलाने क्यारी धानी। बोल उठी खिली बेला की कलि”देखो हुई मैं सयानी! मेरी खुशबू पाकर, तेजी से आ रही वह तितली रानी।” “अभी अभी मै खिल रही हूं,प्यास बुझा दो देकर पानी। दो क्षण पास ठहर जाओ,बातें बहुत तुम्हें है बतानी। कौन कौन हैं आशिक मेरे,और मैं हूं किस की दीवानी! मैं सुंदर,मुझमें गुणअनेक ,कहती सहेलियां नई पुरानी!” लगा मुझे ,वह पूछ रही ” क्या तुम सुनोगी मेरी कहानी?” सबके संग मग्न मिल कर जीने का नाम है जिन्दगानी! अपने को सबसे गुणी … Continue reading »सौंदर्य

आंख चुराना

मन को भाता तेरा, गोप बालकों संग खेलना मोहन! आंख चुरा कर,मार कंकरी टूटी मटकी से लुटाना माखन ! बड़ा मनोहर लगता जब मैया लाठी ले दौड़ाती तुझको! छुप करआंचल में, कथा नई सुनाकर ठगता तू उसको! तेरा खेल बड़ा निराला,विशाल पशुधन का मालिक होकर चोरी कर खाता! देेख छवि अपनी मणी खंभें में,झट नई कहानी तू गढ़ लेता! आंख चुराकर तू सबको , तर्क से अपने विवश कर लेता! बछड़े को खूंटे से खोल,पूंछ पकड़ आंंगन में दौड़ाता! घबड़ाई गईया रम्भाती,तब झट उनको दूध पिलाता! देख माधव का श्रृंगार मनोरम,वृन्दावन मस्त हो जाता! नित नये तरकीब लगाकर,उलझाता भोली राधा … Continue reading »आंख चुराना

“प्रगट हुए कौशल्या के राम “

मंच को नमनR V N महिला काव्य-मंच,झारखंडता: 8-1-24विधी- कविता “प्रगट हुए कौशल्या के राम” सहसा उपस्थित हुए ,राम भक्त शिरोमणी वीर हनुमान। उच्च स्वर शंखनाद कर जगाया सबका कुुल स्वमान ! सेवा में रहते सदा समर्पित, हृदयासीन सीताराम काज! उतरा स्वर्ग जमी जैसे,आये काक भुशुंडि और गरुड़ महाराज! लहराई लााल विजय ध्वजा ऊँची,चमका कौशलेंद्र का ताज! गली चौबारे सब महक रहे,लगा जैसे इन्द्रजीत का है साज। पचास दशक उपरांत आया पवित्र,स्मित त्योहार सुहाना, पवित्र अनुपम संयोग बना,चाहते सब दर्शन पाना! सज धज खड़ी अयोध्या, बाट देख रही लल्ला का! अधीरता से पूछ रही”कब दरबार रघुवर का सजेगा?” व्याकुुल शहर निवासी … Continue reading »“प्रगट हुए कौशल्या के राम “