“अपने मन को मत मारो!”

दर्शन कर लो राम लला का,भर लो अपनी झोली अपने मन को मत मारो,कह रही उल्लासित टोली! हृदय उद्गारों को साझा कर छिड़को प्रीत की रोली!¡ त्रेता सियाराम खेलेंगे द्वापर राधाकृष्ण संग होली ! आस आज हुई पूर्ण वैैभब पूर्ण होगई अयोध्या नगरी! थिरके केवट हनुमान विभीषण,कोयल बागों में चहकी! करने को अभिनंदन रघुुवर का फूलों की क्यारी महकी! सजे दरबार में शोभित हो रहीं राम संग जनक नन्दिनी! दशरथ दे रहे आशीष,ले रही बलैया कौशल्या सुमित्रा केकैई । अपने मन को ना मारो,चरणबद्ध हो,करलो राम दर्शन! होगा पूरा,सब सपना,अवसर यही करदो आत्मसमर्पण! आये राम बसने ,अपनाकर हम सबके संग … Continue reading »“अपने मन को मत मारो!”

“नियती ने युग पलटा”/”अदभुत अलौकिक अनुपम “

यह कैसी मधुर घड़ी है आई!चहुं ओर कौतुहलता है छाई!यह शहनाई पवन ने है गुंजाई!सवारी राम लला की पधराई! कभी संसार ने,सोचा ना था !भक्त का भगवा लहरायेगा!अटल धैर्यअकेला,टक्कर लेगा!राम का मंदिर भव्य बन जायेगा! जिसका शिल्पकार हो महर्षि!जिसके धन हों विश्व सत्यार्थी!लग्न लगाए है गतिरत भागीरथी!सेवक हैं जिनके पवनपुत्र रथी! सम्भव सबकुछ मनोबल से है होता !निश्चय ही प्रेरणा ध्वज बन लहराता!नरेंद्र जैसा सार्थक प्रहरी,पथ दिखाता!वनवास पश्चात रघुवर को है घर लाता! जय सिया राम! (स्वरचित एवं मौलिक कविता)शमा सिन्हारांची।तिथी: 23/1/24

“रघुवर को सिया पत्र!

मेरे रघुवर,आपको निवेदन है,सिया का प्रणाम !“सिया-राम” की इस जोड़ी का बनाये रखना आयाम! मात पिता के वचनों का पालन हमने साथ निभाया!सभी आदर्शो को प्रजा-राज्य सुख-आधार बनाया! संकट में सत्य-समर्पित व्यवहार हमने निभाया!भ्रात-सहिष्णुता ,सेवक के प्रति प्रेमधर्म अपनाया! बना रहे मधु-रस रजिंत यूंही समाज का हर नाता!ज्योति अखंड कर्तव्यनिष्ठा की,भारत रहे करता! यूंही बनी रहे, सिया-राम की जोड़ी अखंड,सबकी प्यारी!भारत को दें स्वस्थ्य-सौहार्द-संतोष, मांगती यही जनक दुलारी! (स्वरचित एवं मौलिक रचना।) शमा सिन्हारांची।तिथि: 23-1-24

राम आये घर

राम के आगमन को देख रहा सारा संसार! पाकर झलक लला की होंगे सब भवसागर पार! उठा नही खंजर कोई गूंजी नही कोई शंख नाद। भक्ति , विश्वास और धैर्य ने बिछा दिया विजय फूल ! सरयु तट ने किया परिभाषित, राम लला निज धाम! न्याय ने सहर्ष स्वीकारा”स्कनद-पुराण” कौशल प्रमाण! ब्रम्हा-विष्णु-रुद्रत्रीदेव को अर्पित देव-नगर”ग्रहमंजरी!” इक्ष्वाकु,सगर,भगिरथ,दिलीप,हरिश्चंद्र कीअयोध्यानगरी! मन रही राम वापसी की दिवाली,जले दीप सहस्त्र हजार विराजेंगें आज रघुवर साकेेत, मन रहा घर घर त्योहार! जलती रहेगी बाती इतनी,अखंड दीप का है आकार। उठा कर शीश गर्व से कहो,अयोध्या नरेश राम सरकार! आ रहे आगन्तुक अनेक दर्शन पाने को राम … Continue reading »राम आये घर

शबरी के राम

मंच को नमन। मानसरोवर साहित्य अकादमिदैनिक प्रतियोगिताविषय- “शबरी के राम “विधा-कवितादिनांक- 18-1-24 शबरी के राम रघुुवर की भक्ति करती,श्रमणा बन गई शबरी!भीलकुंवर की बनी पत्नि!भील सरपंच की बेटी! साथी मन ना पहचाना,भायी नही उसे,ऐसी भक्ति! स्वीकार भीलनी ने किया नियती की थी यही मति! छोड़ शबरी को बीहड़ वन में,वह गया देने जीव बली ! मतंग ऋषि ने दिया शरण,मिली शबरी को राम-मणी! “त्रेतायुगमेंआयेंगें प्रभु राम,देेकर दर्शन कृतार्थ करेंगे! वन के इसी मार्ग,भ्राता संग एक दिन वो प्रस्थान करेंगे उनकी सेवा में पुु्त्री समय ना गिनना ना करनातोल !”स्वर्गारोहण किया मुनी ने,देकर संदेश अनमोल। गुरुवर संदेश बना शबरी का नित … Continue reading »शबरी के राम

“मुझे भी नही आता!”

बेटे बहू के घर से बहुुत हड़बड़ाहट हम में चले थे! तैयारी लौटने की विदेश से,पूरी थी पहुंचने केपहले ! किन्तु बहु की इच्छा थी कुछ विशेेष शगुन उठाने की कोई बड़ा ना था,मौका भी था और उसकी मर्जी थी! बेटे ने हवाई जहाज में यात्रा के नियम समझाये। पोते-पोती से हमने भी प्रेेम-भाव बहुत थे जताए ! फिर बैठे चार पहिया वाहन में,सुरक्षा बेल्ट लगाकर । खुश थे हम बहुत,छः महीने की बिदेशी यात्रा पूरी कर! बुनने लगे सपने ,हम क्या क्या करेंगें अपने घर जाकर। “बैैगेे चेक-इन,सिक्युरिटीचेक”पार कर बैठे”जहाज” पर मिले आईंस्टाईन उसी कतार में खिड़की वाली सीट … Continue reading »“मुझे भी नही आता!”

गुरू गोविंद सिंह

“गुरू गोविंद सिंह” सिक्खों के हुये नायक ,मां भारती के गोविंंद बने वीर सुपुत्र ।यशस्वी बन गये पाकर,नौवें वर्ष ही में राज पाठ कासूत्र! पिता इनके नौवें गुरू तेग बहादुर !जिनसे स्थापित हुआ सिख धर्म!समाज की देकर जिम्मेदारी,नेतृत्व दिखाए उन्होंने सुकर्म ! यौवन के पूर्व ही बन गये गोविंद रक्षक नव भारत सीमा के!मुगलों से ले लिया टक्कर,होनहार ने दिखाई वीरता सिद्ध कर के! पगड़ी की लाज बचाई,अपनी मां के दूध का मोल चुकाया,झुकाया ना सिर मुगलों के आगे,पाया शौर्य वीर गति का! अपने चारों पुत्रों को भी मातृभूमि पर किया न्योछावर!पिता गोविंद के कदमों पर चल कर वीरगति पाये … Continue reading »गुरू गोविंद सिंह

“रामु सिया सोभा”

प्रकट भये त्रैलोकपति श्री विष्णु और नारायणी! आसीन हुये सबके हृदय,बने धर्मयुक्त नर-नारी! वाटिका में जानकी ने सहसा देखा रघुवर श्रीराम। मन वही रह गया जानकी का ,चरणों में मिला धाम ! स्वयंवर आये अनेक राजा और लंंकापति नृप-श्रेष्ठ। शिव धनुष “पिनाक” हिला नही,प्रयास हुआ निश्चेष्ट ! ब्रम्हा-विष्णु-महेश रचित विधान,संकट से घिरा रावण हरि हाथों मुक्ति के लिए,सबके लिए रचा रामायण! अखंड सौभाग्य जगाने, सिया ने पूजा शक्ति को! पलक भर देख सिया हार गयीं वहीं अपने मन को! पूर्ण हुई इच्छा पृथ्वी की,पाप के भार से वह उबरी। अखंंड सौभाग्य मिला सीया को,रामदर्शन पाई शबरी! हनुमान सेवक बने,सजाये “रामु- … Continue reading »“रामु सिया सोभा”

आओ चलें अयोध्या

मंच को नमन! मानसरोवर साहित्य अकादमी “आओ चलें अयोध्या नगरी” आओ चलें अयोध्या,चले सिया राम की नगरी!मन रहा रघुुवर त्योहार,”अगर” सुवासित सगरी!आओ चले अयोध्या…..हवन-कुंड सहस्त्र बने,होम करें विशवामित्र-बशिष्ट !प्रसाद सभी पायेगें हवन का “राम हलवा”अवशिष्ट !आओ चलें अयोध्या……दशक पचास ,मिला था इक्ष्वाकु-वंशको अन्याय !वीर भक्तों नें दी जान,पश्चात मिला न्यायालय न्याय!आओ चलें अयोध्या…..हाथ जोड़ हनुमान खड़े,कर रहे शुभ घड़ी अगुआई !पाकर चावल का निमन्त्रण, घर घर गूंज रही बधाई!आओ चलें अयोध्या……आनंदित है दशरथ-कौशल्या-सुमित्रा-केकैई मन!सिता-रघुुवर दरबार सजा रहे लक्षमन-भरत-शत्रुघ्न!आओ चलें अयोध्या…..

जाड़े की धूप

“जाड़े की धूप” मिलती जाड़े कीधूप हमें,काश अपने ही बाजार में! होता इससे सबका श्रृंगार घर के सुुनहरेआंगन में! फिर सबके नयन नही, जोहते बेसब्री से उसकी बाट! कपड़े भी झट सूखते,नही लगती इतनी देर दिन सात! पर शायद!ऐसा सपना कभी नही हो सकता है पूरा! विज्ञान का,प्रकृतीरहस्य में हस्तक्षेप होगा बहुत बड़ा! आज धूप छुु़ड़वाता काम,तब होती है मुुन्ना-मुन्नी की मालिश ! बच्चों को भी करनी होती सोच विचार कर बहुुत साजिश ! तब जाकर बाहर खेलने की,उनकी पूरी होती ख्वाहिश ! अम्मा भी तब कहतीं”सूूर्य ही देगा विटामिन डी पौलिश! यहीं हमारे कपड़े धुलेंगे,तह होंगें सब और सब … Continue reading »जाड़े की धूप