पापा

दूर ना हो सके हम जिनसे,वो याद सदा हमें आते हैं! थम जाता है वो मंजर,उनकी ही बातें हम दोहराते हैं! हमारी लेखनी, हमारी भाषा,संस्कार जो हमें वो दे गए, शरबत में हो चीनी जैसे,चिंतन-मनन में गहरे पैठ गये! जीवन के सिद्धांतों में ईमानदारी को सर्वोत्तम बतलाए। “समय नाआयेगा लौट कर”, सीख उन्हीं से हम पाये! ध्यान केंद्रित करने की कला,बना सफलता का राज, कर्मठता का पर्चम फहरा, सीखा निडर हो सजाना साज विद्या-अर्जन, वाद-विवाद कला या होती पुष्प-प्रदर्शनि, सक्षमता साबित करने में बनाया उनहोंने ही हमें धनी! हर अवसर पर पल पल याद उन्हें हम सदा हैं करते, ऐसे … Continue reading »पापा

आलस्य का वर्चस्व

चादर मे छुपाकर मूंह, मैनें पुनः उसे रोका। आज फिर एक बार मैनें ही उसे टोका! नींद मेरी अपने समय से जाने को थी तैयार, सहसा चलने लगी, बाड़ी से आती मीठी बयार! देर से उठने पर अकसर जो सुनती थी मैं ताने, झूठा उन्हे साबित करने को ढूढ़ने लगी बहाने! मां की वह आहट ना थी,फिर भी मुझे यूं लगा, जैसे उसी के स्नेेह-स्पर्श ने मुझे थपथपाया! उसकी चेतावनी की जगह,एक मीठी धुन संग जगाया, उसी पुरानी कहानी ने मुझे था फिर से चेताया! कोमल उसका स्पर्श दुलार ! लदा थी प्यार से उसकी थाप। मुझे बिल्कुल ही ना … Continue reading »आलस्य का वर्चस्व

“सौन्दर्य “

“सौंदर्य” कल तड़के सुबह सवेरे,आया जब नगर निगम से पानी, स्फूर्ति से उठाकर पाईप मैं चल दी नहलाने क्यारी धानी। बोल उठी खिली बेला की कलि”देखो हुई मैं सयानी! मेरी खुशबू पाकर, तेजी से आ रही वह तितली रानी।” “अभी अभी मै खिल रही हूं,प्यास बुझा दो देकर पानी। दो क्षण पास ठहर जाओ,बातें बहुत तुम्हें है बतानी। कौन कौन हैं आशिक मेरे,और मैं हूं किस की दीवानी! मैं सुंदर,मुझमें गुणअनेक ,कहती सहेलियां नई पुरानी!” लगा मुझे ,वह पूछ रही ” क्या तुम सुनोगी मेरी कहानी?” सबके संग मग्न मिल कर जीने का नाम है जिन्दगानी! अपने को सबसे गुणी … Continue reading »“सौन्दर्य “

“मौकापरस्त”

हंसी,खेल, ठहाके में बीता जा रहा था उसका जीवन कदम की रफ्तार इतनी,जैसे चलती है मुक्त पवन तरक्की पर तरक्की पाकर नाचता मस्त मौला बन! हो जाती सब तैयारी जब ,आ जाता वह देने भाषण! श्रम जब करते सभी तो वह रहता व्यस्त नये सपने में! ध्यान रखता वह ले क्या सकता है औरों के प्रयास से! उतावला रहता लेने को फायदा मौका-ए-वारदात पे! हर समय रहता वह था व्यस्त बस रोटियां गिनने में! बादल छाये होते,तो झपट लेता वहकिसी की छतरी आफिस के बाॅस को देकर चट बनाता रास्ता बेहतरी झुकी आंखों से सिद्ध करता अपनी भोली समझदारी! लुटे … Continue reading »“मौकापरस्त”

“परछाई”

कहता जग,दिया नारी को उसने ही संंरक्षित जीवन है! समझाए कोई निष्कर्ष उनका, हर तरह अस्वीकार्य है! भूल गया कृतघ्न!वह कैसे,अपने नौ महीने गर्भ काल के? क्या श्वास चल सकतीं पुरुष की स्वतंत्र,बिना उसकी ढाल के? जिसने लाया संसार में, महिमा उस जन्म धात्री की है! सूरज -चांद -सितारे,सबकी कल्पना,वही तो देती है! अंधेरे मे रह कर स्वयं, रौशनी जीवन में वही भरती है! सत्य यह शिरोधार्य करो,”प्राण हमारे संरक्षित उससे हैं!” बढ़ा कर कदम आगे हमारे,स्वयं पीछे-पीछे चलती है, स्नेह-अंक समाये उसके, हम मां की ही तो परछाई हैं!” (स्वरचित कविता) शमा सिन्हा ताः 21-12-23

“सूर्य “

यूं लगा द्वार का,जैसे किसी ने कुण्डा खटखटाया! प्रातः कालीन बेला में, हो रही थी रात्री शरमा कर विदा। दबे पांव से चल कर मैंने, “कौन है?”पवन से पूछा। “शांंती ,चारो दिशा है छाई!”बोली मुझसे खामोश हवा! “मिलने तुम से आया है कौन,जरा देखो पूर्व की ओर!” नव दिवस का आनंंद मनाओ, बाग मचा रहे हैं शोर!” अंबर हो रहा था रक्ताभ,बिखरे मेघों ने पहन लिया था मौर! नयनाभिराम समा छाया था,देखना ना चाहा मैंनें कही और ! पहना रहे थे दीनानाथ, विशाल आकाश को साफा सुर्ख, हाथों में थाल सजाये,भरकर धरा के लिए स्वर्ण वर्क ! अभी ना उभरी … Continue reading »“सूर्य “

“जिंदगी की शाम “

दिखने लगे बदलाव अनेेक जब समय के रफ्तार संग! हो रहा है जवां-गुरूर का, नशा अचानक ही भंग! पूछा मैनें ,” यह परिवर्तन मुझे क्या बताना चाह रहा?” उपचार, झुर्रियां मिटाते नही,चेेहरा बेनूर क्यों हो रहा?” गूंजी बिंदास खिलखिलाहट, वह मुझपर ही हंस रही थी! सिर पर हाथ रख वह,बेबाक मेरी तरफ देख रही थी! अचानक एक खौफ ने था जैसे मुझको जकड़ लिया! छा गई वह तस्वीर, कुमार सिद्धार्थ ने था जो अनुभव किया ! अन्तरात्मा ने दोहराया,”चिर सत्य को तू कैसे भुली ? बिताये दिन अल्हड़ता में ,तूने बहुत मनमानी कर ली! तुझे तो वस्त्र बदल कर अपना … Continue reading »“जिंदगी की शाम “

“समझदारी”

जब सब बोल रहे हो तो वह चुप रहने को है कहती। हो रहा हो जब अन्याय तो, शांंति फैलाने आ जाती! अनुजों को धैर्य दे, समझा कर है बस में कर लेती! कभी हक के लिए उठती आवाज में है समा जाती! अग्रज के चरणों में सेवा सदा अर्पण है यह करती , बड़े मुद्दो केलिए, छोटे अधिकारों को अक्सर छोड़ देती! रुकने की जगह,वह नई उमंग संग आगे बढ़ जाती! सब के साथ जुड़कर वह एकता का मत है अरजती! आता जब संकट तो सबको साथ लेकर है वह चलती अवलोकन कर स्तिथि का,”धीरज”समाधान पनपाती। उम्र के हर … Continue reading »“समझदारी”

ससुराल की सैर

“ससुराल की सैर” नई दुल्हन आई थी नये घर,नया हुआ था ब्याह! मन ना लगता,याद आता नैहर,चेहरा हुआ था स्याह! मोहिनी सी सूरत बनाया उसने,मेकअप सारे हटा कर, “आज अम्मा के घर जाऊंगी!”, कहने लगी रो रोकर । बन्ना अलहड़ जवान,प्रतिदिन करता दण्ड -बैठक मस्त! खाने का बड़ा वह शौकीन और पचाने मे था बहुत चुस्त! लगा उत्सुकतावश मचलने,सोच कर पकवानों के प्रकार! निकले पड़े दोनों,दो पहिया से ,शादी शानदार उपहार ! सुना था उसने,”ससुराल में होती है खातिर जमकर” सोचा “हर्ज ही क्या है चलो आते है उन से मिल कर!” साले ने परोसा रसमलाई होने लगा सपना साकार … Continue reading »ससुराल की सैर