हाथ पकड़ लो
हाथ पकड़ लो मेरा मोहन!, कर दो बेड़ा पार , तुम से ज्यादा कोई नही,करता मुझको प्यार ! मन के तुम ही भीतर, तुु ही बाहर विराजते बिन मेरे बताये भी तुम हो सब कुछ जानते! एक ही बात मुझे खलती है,तुम्हे है सब मालूम, साकार रूप धारण कर क्यों साथ नही रहते तुम? यही एक कमी सदा मेरे मन को बेचैन है करती, काा,पकड़कर हाथ तुम्हारा मैं,संग-संग विचरती! लगता मेरा मन तब, इन श्वासों के आते जाते, पंच तत्व के इस ढांचे को तब सहर्ष तुम चलाते! सच यही,इस बेचैनी से, मुक्त मुझे तुम कर सकते! हे परमेश्वर, बस …