“मंगल सूत्र “

मंगलमय आशीष उपहार लेकरकरता सदा प्रवाहित प्रेम सागरहोता पूर्ण श्रृंगार इसे ही पाकरमनमीत पहनाता इसे पिरोकर! निभता साथ जीवन भर निरंंतर ,जोड़ता दोनों के मन का अन्तर।रहते सदा दोनों एक दूजे के होकर ,पनपता प्रिय-प्रिया स्नेह बंध कर! यज्ञसूत्र यह है पवित्र सम्बन्ध कारक्षा करता यह उसके प्राण नाथ का!मंगल करता सपरिवार यहआपका!अखंंड बनाता,सुहाग हर नारी का! बड़े प्रेम से इसे सब प्रतिदिन पूजतींसिंदूर रोली का प्रथम टीका लगातीनित इसके आगे हैं माथा टेकती,सुुहागचिन्ह को, प्रेम से वे जोगती! शमा सिन्हा6-12-23

“सादगी”

माथे पर सिंदूरी बिंदी ,होठों पर हल्की सी हंसी,बहुत कुछ बोल जाती है उसके श्रृंगार की सादगी! उदित भास्कर चमकताहै बन उसके सुहाग की बिंदी,लगा जाती है चार चांद उसकी, सादगी की खूबसूरती! खुशी के मौके पर जब व्यस्त खुद में सब हो जाते है,ध्यान अपनी ओर खींच लेती है,उसके रुप की सादगी! रखते हैं जब मचल मचल कर सब अपनी मांगें,बिन बोले ही बंया कर देती है उसकी मूक सादगी! कृष्ण की बांसुरी सी मोहक खिलखिलाती उसकी है हंसी!बिखरा जाती कोमलता हरश्रृंगार की, उसकी सादगी! रौशन करती है महफिल का हर कोना उसकी उपस्थिति ,बहुत चैन और सुकून से … Continue reading »“सादगी”

“यात्रा”

कहो सखी,करूं बात मैं किस किस यात्रा की? क्या गीता के सात सौ श्लोकों में अर्जित ज्ञान की? या मां के आंचल में दुनिया से छुपकर अमृतपान करने वाली? या बालपन की दौड़ती भागती,छिपा-छुपी का रास्ता ढूढ़ने वाली? अथवा विद्यार्जन पथ पर अनेक कोशिशों में जूझती जिन्दगी? क्या प्रेम के झूले पर मीत संग, बिताए अंतरंग पल की गिनती? या भोजन वस्त्र और आवास के बीच लुटाए समय से विनती? या घर परिवार और बच्चों में बटीं वह व्यस्तता की अर्जी ? करुं कैसे व्याख्या थके हुये कमजोर शरीर के हड्डियों क मर्जी ? या स्मृति पट से निकाल दिवंगत … Continue reading »“यात्रा”

On Nishu ‘s Birthday, 5.12.23

A very happy birthday to our Nishu! May the Almighty bless you with health and satisfaction always 🙏 “Remembering you lovingly!” This day is so auspicious, it brings gifts ofmany loving memories ! Full of joy were your childhood pranks , your Papa and I eternally cherish ! Those days are gone but its remembrances are alike sweet cherries 🍒 Recollecting a few, I still see plates, heaped with Saraswati ji’s berries! We walked long distances collecting from “pandals” sweet puja savories! In weather hot,you returned from school ,in shirt wet perspiring. And waited for me to wipe with towel, … Continue reading »On Nishu ‘s Birthday, 5.12.23

“पिता”

“पिता” गोद लेने को उसे,देखा था मैंने सदा बहुत मचलते,जन्म-स्वास्थ्य-उपचार पश्चात मैं थी मातृ-तन सट के! जुटी नाल ने कर दिया था स्थापित रिश्ता जन्मदात्री से,समझ ना पाई, कैसे स्थापित हुआ सम्बन्ध उसका हमसे! सदा वह निहारता हमें, कभी दूर और कभी पास से!गूंजती हमारी ऊंची किलकारियां, उसके अंक समा के! सुबह और शाम ही होती थी उसकी मुलाकात हमसे,किंतु बहुत व्यग्रता से, इंतजार हर पल हम उसका करते! अक्सर उसे अपनी अर्जी आमदनी , मां को देते हमनें देखा,दूध-दही,अन्न लक्ष्मी से समृद्धी सदा घर में भरते पाया! विद्यालय दाखिला भी उसने बहुत उत्साहजनक दिलाया!“विद्यावती भव!आयुष्मान भव!”आशीष से हमें नहलाया! … Continue reading »“पिता”

“अहंकार “

सर्वशक्तिमान, जब स्वयं को समझ लेता है इंसान ,उत्पन्न होता है अहंकार और विकृत होता है स्वमान! होती नष्ट समझदारी,मिट जाता मानव सम्मान,प्रतिपल तब करता वह अपनी मूढ़ता पर अभिमान! वाचाल बन कर,करता सिद्ध नासमझी का सिद्धांत ,छोड़ गुरु से पाई सुशिक्षा, स्वरचित गड्ढे में गिरता कालान्त! गर्भित बुद्धिहीनता उसकी करती ना कभी किसी का सम्मान ,हीन दृष्टि से जग देखती,सबका करती घृष्टतापूर्ण अपमान ! अपने मनोभाव श्रेष्ठ समझता ,बोता सदा फसल नफरत की,छूटता समाज और साथी सब,जड़ रिश्तों की खोखली होती ! जैसे विशाल ताड़ का ऊंचा वृक्ष अकड़ता पाकर फल खजूर ,शोभा अपनों की घर ना होती, उससे … Continue reading »“अहंकार “

खिलौना”

देखते तो सभी हैं,खिलौने को खिलौने से खेलते,भूल जाते सच्चाई ,बीच का फर्क नही समझ पाते! बंधी होती है एक की डोर आकाश पार,दूजा निर्जीव किंतु लुभाता दिखा रंंगीनआकार! एक स्वत्: दिखाता भावों की प्रधानतादूसरे को कृत्रिम चाभी देकर चलाना है पड़ता! भूल कर सरताज परमपिता का साम्राज्य वह हंसता है,वह जड़ मूर्त कृत्रिम खिलौना पाकर मनाता त्योहार है! आदेश उसके विस्मृत कर रहता यह मौनअचेत,भली वह आकृति,उंगली के इशारे पर चलती सचेत! अतुलनीय है ईश्वरीय समृद्धि के पुरस्कृत गुण-विधान,भूूलकर जिन्हें मनुष्य कर नक सका विवेक पूर्ण पान! बना बौद्धिक विवेक विशेषज्ञ, प्रभू ने भेजा तुझे धरती पर,वाह रे मूढ़ … Continue reading »खिलौना”

“नया सवेरा”

गहराते आकाश पर छिटकने लगती है लाली!फूटने लगता है उजाला,चीरकर रात्री काली! समस्त नभ में गूंंजता है परिंदों का कलरव,नीलाभ हो जाता है गतिशील शीतल अरणव! धरा कर सर्वस्व समर्पित बन जाती मूूक दृष्टा,चल पड़ता मनुष्य सिद्ध करने अपनी श्रेष्ठता! इच्छा और अभिलाषा की मचती धराशायी प्रतियोगिता,बिदा होती सुख-शांति,देकर सिर्फ असीमित व्यथा! सम गतिमान, सप्त अश्व रथ आरूढ़ सूर्य पथ चलता ,सत्यार्थ भूले मनुष्य को माया में फंसा देख वह हंसता! बीत जाते यूंही तृष्णा लिप्त काल के आठों पहर,उचटती नींद,अतृप्त अभिलाषा न रोक पाती सहर! लिप्त रहता वह जरूरत से ज्यादा जमा करने में,चला जाता आकर नया सवेरा उसकी … Continue reading »“नया सवेरा”

“मेरी नई समझ”

देख कलआई, मैं एक साथदो अजूबे दृश्य।दोनों ने ही दर्शाया विस्मृत पुराना विलक्षण सत्य! समृद्ध जश्न का माहौल था,आयेअतिथि थेअनेक!दूजे मेंअगल-बगल के थे पड़ोसी, सब मस्त दिलफेंक! एक सभा उन अमीरों की थी, पग-पग पैसे फेंक,इनकी बात अलग थी,हंस मिल खाये रोटी सेंक! धनिक चेहरों पर छाया था अकारण हीआक्रोश !पर इनकी मस्ती अनंत बनी,सब थे आनंंदगोश ! उनके वर्ग अलग अलग थे,वृद्ध-युवा-बालक!ये मेहनतकश दिलवाले सभी थे खुशी के चालक ! महसूस करने को बस, नायाब एक तथ्य था मनोहर!बच्चों की टोली, दोनों वर्ग में अलग ना हुई क्षण भर! “हँसते खेलते,लड़कर- मनते”,व्यस्त थे पल पल!बिछड़ने का आदेश सुन,रोने लगतींआखें … Continue reading »“मेरी नई समझ”

“उम्मीद का जादू

पूरी होती दीखती जब आस,क्षण में आ जाती खुशी पास! अर्से से रुका अगर जटिल काम,उम्मीद लगाती शंका पर विराम! कभी ये क्षणिक ही देता है आराम ,फिर भी रौशन हो जाती है शाम! व्यथित चित हो जाता है तब शांत,सीमित होकर बहता सागर प्रशांत! अक्सर चलंत होती है यह शांती,किंतु इसके उजाले से मिटाती भ्रांति! एक ठंडक मन बुद्धी में है उभरती,जगा आस वह कटु वेदना है हरती! उम्मीद पर ही बढ़ाता कदम है,जग,हौसला देती,पूरे करने के सपने अचानक! शमा सिन्हा28-11-23