” प्यार का बंधन”
पुकारो प्रेम से ,कहो ना उसे,बंधन!वह तो बना है मेरे हृदय का स्पंदन !मासूमियत गर्भित वह महकता चंदन,करता मन जिसका प्रतिपल वंदन! वह पास रहे या हो कितना भी दूर ,गूंजती रहती उसकी तान सुरीली मधुर,धड़कती श्वास में बसे हैं उसके ही सुर,मेरा जीवन बना जैसे राधा का मधुपुर! क्या कह कर यह रिश्ता मैं समझाऊं?प्रतिपल साथ मग्न जिसका मैं निभाऊं,“खुशियां उसके चूमें चरण!”मै गीत यही गाऊं,और तुझ पर सर्वस्व न्योछावर कर जाऊं! ना इच्छा,ना अधिकार ,ना है कोई कामना!बस हम रहें जहां भी यह रिश्ता सदा रहे बना!है विश्ववास,यह साथ रहेगा सबसे अपना,तुम प्यार हो! बंंधन नही,मीत मेरे मनभावना! …