माता लक्ष्मी

“माता लक्ष्मी” जहां सरस्वति बनती अग्रणी, स्थाई बसती वहीं सदा लक्ष्मी! ज्ञानदीप को प्रज्ज्वलित कर, पनपाति विष्णुप्रिय दामिनी! कारण छिपा ,एक अति गहरा, श्रम में है चिर ज्ञान पनपता ! खेत खलिहान स्वर्णउपजता, अनुकूल बीज जबश्रमिक है बोता! बिन विद्या, कला नही निखरती, ज्ञान बिना व्यर्थ जाती हरशक्ति! विद्या विरााट देती स्थिर समृद्धी, लक्ष्मी जिसके चौखट पर है बसती! जिसने समझ लिया यह स्मरणीय सूत्र, सम्मानप्रदित वह बनता लक्ष्मी -पुत्र! शमा सिन्हारांची9-11-23

“भैया दूज”

बचपन की कुछ प्यारी यादें,आज आप सेकरती हूं साझा। जीवन होता था सरल बहुत तब,पारदर्शी थी व्यव्हारिकता ! परिवार हमारा साथ मनाता त्योहार मनाता,एक ही आँगन में जुट, सबको यही चिंता रहती,कोई भाई बहन ना जाए खुशी में छूट! भाई दूज पर बनता पीठा-चटनी,फुआ बताती बासी खाने की रीती चना दाल की पूड़ी, खीर, आलू-टमाटर-बैगन-बड़ी की सब्जी! गोबर से उकेर कर चौक,कोने में सजाते पान-मिठाई- बूंट । दीर्घायु होवें सब भैया हमारे,हम बहने पूजती शुभ “बजरी” कूट! चुभाकर “रेंगनी” का कांटा,सभी जोगतीं काली नजर जोग टोना। फिर जाड़ती आयु लम्बी,मनाती भौजी का रहे सुहाग अखंंड बना! यम-यामिनी,नाग-नागिन ,सिंधोरा बना चढ़ाती … Continue reading »“भैया दूज”



“प्रेेम भैया को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें”




भेेज रही भैया आपको,जन्म दिन की ढेरों शुभ कामनायें!

स्वस्थ-प्रसन्न-सुखीऔर संतुष्ट आप सदा सपरिवार रहें!


आज भी याद हैं वो बचपन के प्यारे साथ बिताए लम्हें,

वो सफर कुुछ बड़ों केसाथ, जीप से किया था हम सबने।


मीठी हवा संग,”हरपुर-लौक”खोजती,
जीप चल रही थी दौड़ कर!

जुटे हुए “ट्रेलर” पर थे हीरो बने,आप दोनों और भैया शशीकर!



व्यस्त थे आप, देने में स्टाईल, देवानंद और शरीर कपूर से लेकर!


पण्डित कृपाल पाड़ें साध रहे हमपर ,अपना कड़क हुक्म थे इधर!


कान्वेंट में पढ़ते बच्चों पर मिली थी जो, करने को अगुआई,

अपना अंग्रेजी भाषा ज्ञान दिखाने की राह सीधी उन्हें दी दिखाई!

“इट ईज भेरी कोल्ड “,फिर लगे बाकी भूले शब्द खोजने,

“पलीज भियर युओर स्विटर्ज “कह बड़े गर्व से लगे हंसने!


उनके इस कोशिश पर हम बहने भी ना रह सके धैर्यपूर्वक चुप,

खि! खि! खि !खि! कर अचानक, जोर से खिलखिला पड़े हम सब!


अचानक अपनी ओर, चार आंंखें गम्भीर मिली, हमें घूरती,

ऐसे में अपनी हंसी दबायें कैसे, सिट्टि-पिट्टी हमारी गुम थी!



हीरो सी हरकत करने में, आप दोनों रहे ,अधिक मग्न और मस्त,

इधर हमें पण्डित जी की अंग्रेज़ी कर रही थी बहुत त्रस्त!


फिर भी वह धूल भरा रास्ता, मस्त-मोहक रहा हैआज तक!

अचानक “भी भिल रिच यूूर भिलेज!” सुन आप भी हंस पड़े!

हम बहनों को मिली छूट! देर तक हंसी-ठहाकों में लोटते रहे!

फिर भी वह धूल भरा रास्ता,मस्त-मोहक बना रहा हैआज तक।


कामना यही,उस प्यारे-अनुभव-बंधन-वृक्ष को,”हरि” हरित रखें युगों तक !


शमा सिन्हा
5-11-23

“प्रेेम भैया को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें” भेेज रही भैया आपको,जन्म दिन की ढेरों शुभ कामनायें! स्वस्थ-प्रसन्न-सुखीऔर संतुष्ट आप सदा सपरिवार रहें! आज भी याद हैं वो बचपन के प्यारे साथ बिताए लम्हें, वो सफर कुुछ बड़ों केसाथ, जीप से किया था हम सबने। मीठी हवा संग,”हरपुर-लौक”खोजती,जीप चल रही थी दौड़ कर! जुटे हुए “ट्रेलर” पर थे हीरो बने,आप दोनों और भैया शशीकर! व्यस्त थे आप, देने में स्टाईल, देवानंद और शरीर कपूर से लेकर! पण्डित कृपाल पाड़ें साध रहे हमपर ,अपना कड़क हुक्म थे इधर! कान्वेंट में पढ़ते बच्चों पर मिली थी जो, करने को अगुआई, अपना अंग्रेजी भाषा … Continue reading »

“प्रेेम भैया को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें”

भेेज रही भैया आपको,जन्म दिन की ढेरों शुभ कामनायें!

स्वस्थ-प्रसन्न-सुखीऔर संतुष्ट आप सदा सपरिवार रहें!

आज भी याद हैं वो बचपन के प्यारे साथ बिताए लम्हें,

वो सफर कुुछ बड़ों केसाथ, जीप से किया था हम सबने।

मीठी हवा संग,”हरपुर-लौक”खोजती,
जीप चल रही थी दौड़ कर!

जुटे हुए “ट्रेलर” पर थे हीरो बने,आप दोनों और भैया शशीकर!

व्यस्त थे आप, देने में स्टाईल, देवानंद और शरीर कपूर से लेकर!

पण्डित कृपाल पाड़ें साध रहे हमपर ,अपना कड़क हुक्म थे इधर!

कान्वेंट में पढ़ते बच्चों पर मिली थी जो, करने को अगुआई,

अपना अंग्रेजी भाषा ज्ञान दिखाने की राह सीधी उन्हें दी दिखाई!

“इट ईज भेरी कोल्ड “,फिर लगे बाकी भूले शब्द खोजने,

“पलीज भियर युओर स्विटर्ज “कह बड़े गर्व से लगे हंसने!

उनके इस कोशिश पर हम बहने भी ना रह सके धैर्यपूर्वक चुप,

खि! खि! खि !खि! कर अचानक, जोर से खिलखिला पड़े हम सब!

अचानक अपनी ओर, चार आंंखें गम्भीर मिली, हमें घूरती,

ऐसे में अपनी हंसी दबायें कैसे, सिट्टि-पिट्टी हमारी गुम थी!

हीरो सी हरकत करने में, आप दोनों रहे ,अधिक मग्न और मस्त,

इधर हमें पण्डित जी की अंग्रेज़ी कर रही थी बहुत त्रस्त!

फिर भी वह धूल भरा रास्ता, मस्त-मोहक रहा हैआज तक!

अचानक “भी भिल रिच यूूर भिलेज!” सुन आप भी हंस पड़े!

हम बहनों को मिली छूट! देर तक हंसी-ठहाकों में लोटते रहे!

फिर भी वह धूल भरा रास्ता,मस्त-मोहक बना रहा हैआज तक।

कामना यही,उस प्यारे-अनुभव-बंधन-वृक्ष को,”हरि” हरित रखें युगों तक !

शमा सिन्हा
5-11-23

करवाचौथ

स्नेहमय रंजित अनुपम यह है त्योहारभरा जिस में त्याग- समर्पण- प्यार । पंच तत्व विकसित, दो आत्मा हैं समर्पित,जैसे यह धरती और चंद्रमा इकदूजे को अर्पित! कार्तिक माह के चौथे दिवस को चांदनी बिखेरताआता चांद लेकर तारो जड़ी चमकती चुनरी! अंंजली से पुष्प, पत्र, और जल कर अर्पणहो जाती तृप्त नारी पाकर प्रेम सजन! सफल हो जाता उसका पूर्ण दिवसीय व्रत त्योहार ,करवाचौथ दे जाता स्नेहमय अटूट संबंध अपार ! शमा सिन्हारांची 1-11-23

“अकेलापन “

“अकेलापन “ खुद को अन्तर्मन से जो मिलवाये,अनुभवों को सुलझा कर समझाये,लेेकर भूली बिसरी याद जो आ जाए,मिठास भरा अपनापन दे जाये,कितना प्यार भरा इसमें,कैसे समझाएं?वक्त के घावों को धीरे से सहज सहलाये!अपनों की कद्र, परायों का मान बढ़ाये!जंग जीतने के कई रहस्य हमें समझाए !हार को हटा,जिन्दादिली भर जाये!स्वाभिमान भरा अनेक नई राह दिखाए!भरकर प्यार, असीम ” अकेलापन” मेरा अपना हो जाये! शमा सिन्हारांची। (स्वरचित कविता)31-10-23

“जरा बचके!”

हुआ समय मिलन सूर्य -संध्या का,तारों को बांंहों में समेट,छा रहा अंधेरा।“जरा बचके रखना कदम मेरे सजना!”दे रहा आवाज, दूूर से मल्लाह नांव का। पता नही है दूर कितना अपना वह किनाराभला यही,मध्यम धारा के संग बहते रहना!“जरा बचके दूर,नदी के भंवर से रहना!पतवार पकड़,दिवास्वप्न में तुम ना खोजाना!” यह सफर है,बस हिसाब लेन-देन का,“जरा बचके करना! है व्यापार कर्म का,यह रिश्ता है बस अधिक-शेष गणना का!बेखबर!फिसले ना यह अनमोल नगीना सस्ता!!!”

Forwarded/4.9.23

..┍──━────┙◆┕──━────┑✮ ~ स्टेट बैंक की कहानी ~ ✮┕──━────┑◆┍──━────┙ज़रूरी नहीं किपापों के प्रायश्चित के लिएदान पुण्य ही किया जाए. स्टेट बैंक में खाता खुलवा कर भीप्रायश्चित किया जा सकता है. छोटा-मोटा पाप हो, तो बैलेंस पता करने चले जाएँ. चार काउन्टर पर धक्के खाने के बादपता चलता है, किबैलेंस …. गुप्ता मैडम बताएगी. गुप्ता मैडम का काउन्टर कौन सा है ?ये पता करने के लिएफिर किसी काउन्टर पर जाना पड़ता है. ❗ लेवल वन कम्प्लीट हुआ, ❗यानी गुप्ता मैडम का काउन्टरपता चल गया है, लेकिनथोड़ा वेट करना पड़ेगा, क्योंकिमैडम अभी सीट पर नहीं हैं. आधे घंटे बाद चश्मा लगाए, पल्लू संभालती … Continue reading »Forwarded/4.9.23

ऋतुु-राज बसंत

ओऊम। प्रिय पाई,एक स्वरचित कविता भेज रही। शायद यह तुम्हारे काम आये। बसंत ऋतु फाल्गुन और चैत्र दो महीने रहता है।फाल्गुन, वर्ष का अंतिम माह है और चैत्र वर्ष का प्रथम माह।बसंत से हिंदू वर्ष आरंभ भी होता है और शुरू भी।इसीलिए बसंत ऋतु के वर्णन में दोनों को सम्मिलित किए हैं।मां “ऋतुओं का राजा बसंत “ ऋतुराज बसंत जब धरा पर आता ,मन सबका मयूर बनकर नाचता! धरती की चुनरिया नवरंगी हो जाती,बागों में फल-फूलों की कली चटकती! पत्तों में छुुपी कोयल पेड़ों से कुहुकती ,डालों को फल से भर जाने को कहती! खेतों से सोना तब सबके घर … Continue reading »ऋतुु-राज बसंत

करते क्यों हम प्रार्थना

नाम हम लेंगें जब लगातार कभी तो आयेंगें वो थक हार! कर ना सकेंगे वो कोई बहाना, ना देख सकेंगे भक्त का रोना! इसलिए ही हम पुकारते लगातार ! कुंती ने यही कृपा चाहा एक बार कृृष्णजा रहे, हस्तिनापुर के उस पार । क्फफ मेरे धीरज को तोड़ेंगे कितनी बार

जुनून

नशा सा उसपर हर पल छाया है रहता ,किनारा बहुत पास है उसे यूं लगता,हवा में वह अनेक लकीरें यूं डालता ,जैसेअपने सपनों के महल काआकार हो खींचता! कहते हैं सब, वह अब होश में नही रहता,कभी किताब कभी प्रयोगों की बांतें करता,आकांक्षी है वह नभ से भी ऊचें पर्वत का,उसकी सांसों में है जुनून नये किनारे का! परवाह नही उसे लोगों की बयानबाजी का,मंजूर है मिलनेवाला,उसे हर कांटा रास्ते का,जला चिराग,मिटाया अंधकार अपनी रात का,दिया नाम जुनून को अपने, जिन्दादिली का! शमा सिन्हा2-8-23