कृष्ण का विरह
“कृष्ण का विरह” दिखाए नही जग को कृष्ण ने अपने हृदय के घाव, अबोध उम्र मे छूटे ग्वाल-बाल, ममता भरी छांव,! कर्म – बन्धन में बांध रोक लिया लल्ला नेआंसू अपने, पर मन में बसा कर चल दिए ,यमुना-बालसखा के सपने! पीछे छूटा यमुना तट, विशाल कदम्ब की छैया सूनी, ब्रम्ह होकर भी ना रोक सके नियती की होनी! अविरल बहा आंसू , रहे रोकते विह्वल नंद-यशोदा , रथ आरूढ दाऊ संग होकर, लेकर चले सदा के लिए विदा! ” कंस वध कर लौट शीघ्र लौटूंगा !” किया कान्हा ने वादा। गोकुुल वासी समझ ना पाये, नियति का रास्ता ! …