चरैवेति चारैवेति”
देखो,जनमानस में आई नई जागृती
चल पड़ी हैअब ,सूनी पड़ी सड़कें भी
अर्थहीन बनी, COVID19 छाया भी
निर्भीक वज्र-हस्तआस की,है जगी।
कई बार आये हैं, पहले भी विक्रांत बहाव,
धीर-सहष्णुता ने डालने दिया न पड़ाव,
ढीला न किया समाज ने साहसी कसाव,
“विश्वास,बसंत आएगा”भर रहा है घाव।
मनु -संतान भयभीत न कभी है हुई,,
पहाड भी कदम न उसके रोक सकी ,
है बिसात क्या,इस छुद्र जिवाणुकी ?
खुदIयी से डरा,खौफ उड़ाता है नकली
कष्टों को भारती नही हैं कभी गिनते,
बना मित्र उन्हें,हौसला लेआगे ही बढ़ते!
जीत कर उजाला हम सदा हँसते ही रहते,
उम्मीद-धैर्य से सजा,खुशियों को हैं जगाते।
अब सुनी गालियाँ पुनः हैं महकने लगी,
घर घर से आ रहि गूँज हँसी की ऊंची।
गीत सज रहे श्रमिकों के होथो पर भी
पढ़ रहे पाठ है बच्चे, “चरैवेति चरैवेति!”
बीती रात्रि,खोया है हमने बहुत कुछ
रोटी रोजी काल-स्थिरता गई थी बुझ!
अब बढ़ेंगे मिलकर ,स्मृतियो को तज!
नया उत्साह,निर्झर निर्मल धारा सज!
शाम सिन्हा
1-6-’20

पुनीत नींव निर्माण “
दीप जलाओ,नगर सजाओ,शुभ घड़ी ,पुनीत है त्योहार,
उदित सूर्य कर रहा आलोकित ,अपने राम का दरबार।
विशवास को मिला हमारे , अखंड अनोखा वह आधार ,
सरयू तीर, विशाल विभूति,अपने राम का हो रहा त्योहार।
सत्य सनातन वैदिक सपना, हिन्दुत्व हुआ आज साकार ,
एक सूत्र बंध, करें प्रणाम अपने राम को हम बारम्बार।
असाधारण यह मंडप , प्रदीप्त दीप अखंड-आकार,
भर उमंग चलो मिलने,अपने राम से सुरसरि के पार।
मची धूम ,हो रही अयोध्या में , श्रद्धा की अमृत बौछार,
शुभ सुरभित रंगीन पुष्प सजाओ अपने राम के द्वार।
ला रहे हैं कंधे पर अनगिनत सुदूर दर्शनार्थी,भक्त कहार,
स्थान दिखा दो,लगा जहाँ,अपने निश्चल राम का दरबार।
उच्च स्वर में गूजं रहा है मधुर उतसव संगीत मलहार ,
होगी सिद्ध मनोरथ सबकी,अपन राम का पाव पखार।
विविध भोग रुचिकर चढ़ाओ, व्यंजन बना अनेक प्रकार ,
स्वीकार करें अपने राम तो,सबका स्नेह- श्रम होवे निसार
राह सवारू, छिड़को गंगाजल, गुंजित हो रहा ओंकार ,
हो रही तृप्त आत्मा सबकी,अपने राम के चरण पखार।
शमा सिन्हा
9-8-’20

“मिलन चिरंतन” यह कविता मैंने अपनी कल्पना के आधार पर लिखा है।
महाभारत युद्ध के बाद द्वारिका के लिए प्रस्थान करते समय,रास्ते से मुड़कर, कृष्ण जरूर वृन्दावन-मथुरा गये होंगे-नंद, यशोदा, गोपीयो से मिलने। राधा मिलन का काल्पनिक चित्र ,यहाँ मैंने अभिव्यक्त किया है।
“मिलन चिरंतन “
व्यथित चित, टूटा द्वारिकाधीश का धैर्य धन
स्थिर, रह सका न पल भर ,माधव का बेचैन मन,
श्याम-घन घिरे थे, फिर भी चल दिए पथ वृन्दावन।
राह तकते,ढूढती आँखे,उत्सुक थी किशोरी मिलन।
जमुना तट,वट छैया देख,पूछा “क्यो हो इस हाल में ?”
“आह, श्याम आये आज,फिर क्यो हमसे नेह जोड़ने?”
प्रेम आतुर हो झाँका नंदन ने,लली के विव्हल नैनो में ।
चंचल चितवन, बांह थाम,ले चलें राधा को निधि वन में।
वह निश्चेष्ट ,सहमी हुई,बढा रही थी अपने धीर कदम।
बैन न थे कहने को ,संजोये थे दोनों ने अथक अपनापन।
भींग गया अंग वस्र ,व्यथित हृदय से बहा जो अश्रू धन।
अस्त सूर्य, मध्यम प्रकाश बह रह था मधुमय प्रेम पवन,
देख छटा, रात्री उतरी, सितारों जड़ित चुनरी पहन।
स्नेहिल कर से ,माधव ने किया रौशन तारा एक चयन।
लगाई उसकी बिंदी माथे तो, भींगे गये दोनों के नयन।
रुक न सका नीर आँखों का,कटि रात्री बिना शयन।
हाथ थाम,एक दूजे को तकते,हुआ न शब्द सम्भाषण।
मुग्ध रात थी देख, प्रेमी युगल हृदय न अब था बेचैन,
अद्वितीय योग ,समझ लिया दोनों ने, एक दूजे का मन।
ऐश्वर्य आत्मग्यान का पाकर ,समृद्ध हुआ दो अन्तर्मन,
मुक्त हुई अभिलाषा, स्थिर समभाव, अर्थ हुआ स्थापन।
विरह- मिलन,जन्म -मृत्यु, सब पचं तत्व का है रुदन!
संयोग चिरंतन अद्वैत हुआ, बन गये दोनों अद्वैतम!
शमा सिन्हा
16-10-’20

हक नहीं पूछू”
मुस्कुराते थे जब-तब बचपन में, बिना वजह हम,
डांट खाकर भी न होती, वह हँसी जरा भी कम।
पूछा नहीं तब, जिन्दगी से, क्या ये रहेगा यूहीं हरदम?
लेकर तोहफा खुशी का, बड़े लापरवाह हो गये हम!
बाकी अभी भी, ज़हन में है अनगिनत,कई एक भरम,
अब जगह न रही कि सवाल करें उससे कोई भी हम।
बहा रही कश्ति-किस्मत,उसी रवानगी से जा रहे हैं हम,
हवा की दिशा भी तो, कर्मो की गठरी में बान्ध रखे हैं हम।
शमा सिन्हा
29.10.’20

शुभ होगा मंगल -मय वर्ष 2021 सबका!”
शुभ-सूर्य ,का आशीर्वचन,होगा शुभ वर्ष 2021सबका!
शुभकामना प्रभारित करेगा, चहु ओर शुभता सागर का।
शुभ रंग -रूप धारण कर यह सबका सपना पूर्ण करेगा।
शुभ- शुभ्र होगा प्रतिबिंब, सबकी अपेक्षित आकाशंओ का ।
शुभ- सौभाग्य से शीघ्र ही, विश्व प्रारब्ध आच्छादित होगा।
शुभ स्वस्थ-मधुर स्वर कलरव ध्वनित, सबका घर आगंन होगा
शुभदायक शुभाशीष लिए, मंगल मय2021फलदायक होगा।
शुभकामना प्रभारित करेगा, चहु ओर शुभता सागर का।
शुभ रंग -रूप आशा धारण कर यह सबका सपना पूर्ण करेगा,
शुभ- नवरंग प्रतिबिंब होगा, सबकी अपेक्षित आकाशंओ का ।
शुभ- स्वर्ण किरणो से शीघ्र, विश्व प्रारब्ध आच्छादित होगा।
शुभ स्वस्थ-मधुर स्वर ध्वनित, सबका निज घर आगंन होगा।
शुभदायक शुभाशीष लिए, मंगल मय 2021फलदायक होगा।
शमा सिन्हा
2-1-2021

कलियों का निमंत्रण”
कह रहीं रंग भरी ये उतसाहित कलियाँ, अधखिली
जाओ न अब तुम दूर,खिलने को हम व्याकुल अति ।
आये हैं बरसाने को भर आचंल, नौ रस तेरी बगिया सारी
याद करो वह भी दिन थे,जूझ रही थी,सूखी, नीरस डाली।
फूलों का खिलना, सपना लेकर जीता था वह माली।
किसलय को ही पाकर,रोमांच भर लेता था अपनी झोली।
आज लगी भीड़ अनोखी, देखने कुसुमिल नन्ही परियों
को!
पुलक रहीं हैं,किलक रहीं हैं, हैं अति उमंगित खुलने को!
ले पेंग उडेगी डाली अब पाकर मदमाती संग पवन को!
सजग ये पत्ते ,पूछ रहे,”क्या हुआ है,अचानक इन कलियों को?”
क्यों कभी सिकुडती, कभी मचलती येअनोखे मंचन को,
हो रही मदहोश हवा, थिरक रही,लेकर इनकी खुशबू को।”
कहा सूर्य ने, “नही दोष कुछ इनका,पुनःमिला नूतन निमंत्रण सुप्त बसंत को!”
वो काली भूरी चंचल तितली तत्पर, उड चली बताने सबको।
“आना मित्रों सज सवर कर, बगिया के उत्सव में थिरकने को!”
फिर क्या था, हटात् ही कदम रुक गये बसंत पुनरावरण देखने को,
हौसला वह अप्रतिम प्रकृति का, कोमल,निर्झर निर्मल आनंद पाने को!
शमा सिंहा
15.1.19

सीता का प्रश्न
दीपक की प्रज्वलित शिखा संग सगुण मुखरित यौवन ,
मधुर कर रहा था दीपावली काअयोध्या में पुनरागमन
लव -कुश को समर्पित प्रजा-पोषण राज सुरक्षा पालन।
पूर्ण धरा धर्म स्थापन कर,शेष शैया विराजे थे नारायण ।
अनुकूल न थी श्वास, सिसक रहा जैसे नेपथ्य आवरण
क्षुब्ध, बना था शेष शैया क्षीरसागर का शान्त वातावरण
अप्रसन्न,अश्रुरंजित क्षीण ,मुदित न था अष्टलक्ष्मी मन।
गम्भीर था,चंचला का विलक्षण मृदुल सौंदर्य चितवन।
लक्ष्मी के पलकों मे ठहरे हुए धे असीमित अश्रु कण
स्थिर बनी वह बैठी थी,पर धीर हीन सी ध्यान मग्न !
आज अचानक एक आक्रामक निश्चय उठा उनके मन
प्रश्न पूछने का प्रानप्रिय से,था उसकाअटल बना प्रण!
क्षीर सागर की लहरे उठ रही थी ,लेकर एक तूफान
छुपी मनोव्यथा जिव्हा आसीन,वचनो का यात्रा प्रयाण,
जैसे चढी प्रत्यंचा पर लेकर लक्ष्य,असह्य था वेदना बाण
करूणार्द्र नेत्र बोझिल,निष्प्राण था गौरा विहंगम प्राण!
गम्भीर, बैठी सोच रही थी,नारायणी स्वामी के पास,
कुन्ठित मन में क्रोध भरा था,प्रिय विछोह का त्रास!
“क्योंकर नही प्रभू को हो रहा मेरी भावना का आभास ?
क्यों हुआ हमारे प्रेम बंधन का ऐसा विघटनकारी ह्रास?
जिस राम नाम मात्र से होता जन्मों का पाप नाश ,
सदा शौर्य से जिसकी गूंजती, धरा और आकाश ,
माया वश बंधा जो,मृगनयनी वैदेही वरमाला पाश ,
विस्मृत क्योंकर किया,चित्रकूट का मधुर सहवास?”
तोड़ खामोशी मुस्कुराये ,बोले मायापति महा प्रवीण,
“हे प्रिय, बोलो क्यों है तुम्हारा कमलनीय मुख मलिन?
किस कारण हुआ मनोहर स्मित मुस्कान विलीन?
बिन तुम्हारे,हो रही पीड़ाअसह्य और मै शक्ति विहीन। “
टूटा बांध,रह न सकी चुप तनिक भी,वह बोल पडी,
“आती हैं आपको, करना भाव भरी बातें बहुरंगी बडी,
दिया क्यो वनवास जब करूण प्रसव वेला थी खड़ी?
समझा न दर्द, मिले न क्यों मुझको ,उस पल, दो घड़ी?”
न्यायाधीश बन जग- दोष-आरोपित अहिल्या को तारा
चरण रज छुला कर, क्षण भर मे ही,वैकुण्ठ द्वार उतारा।
चख,वृद्ध भीलनी शबरी जूठन,उसे भवसागर पार उबारा,
अग्नि अवतरित सीताको रघुवर, क्यो न तुमने स्वीकारा?
चपला चमकी ,बींध गये नर नारायण, दंश चुभन से
थे अचम्भित,”क्यों किए ये क्लिष्ट प्रश्न प्रिय लक्ष्मी ने?
युग पश्चात्‌, दीर्घ विछोह बाद हम दो हैं आये मिलने
क्यों बीती बातें लेकर, गहरे भंवर मे हम लगे फंसने?”
वह बोली,”भूलू मैं कैसे,असहाय पल,असह्य वह पीडा ,
हृदय विदीर्ण था लक्ष्मण का, दुख ने था उनको भी घेरा,
मुझ वियोग पीड़िता को दुर्जन वन में जब अकेला छोड़ा,
मुझ सी नारी ही समझेगी,दुर्भाग्य विडम्बना की क्रीड़ा!
हर बार जग में,विधा का होता क्यों विचित्र ऐसा खेल?
पौरुष अहंकार का, सौभाग्य संग होता है क्यों मेल?
राधा,अनुसुइया,कुंती,द्रौपदी,पर छाता समय क्यों अन्धेर
चांद की शीतलता को असमय लेते क्यों बादलघेर?”
अतिधीर राम तब बोले,”मुझसे हृदयाघात लगा तुम्हारे ,
क्षमा दान करो प्रिया, बिनीत बन इक्ष्वाकु खड़ा तेरे द्वारे।
अब न भूलूंगा कभी वो वादे,सभी सात वो अग्नि फेरे,
एक सूत्र निर्णय होगा, न्यायिक धर्म होगा सदा पक्ष में तेरे!
पुष्पवाटिका में प्रथम,विस्मृत चित ले समर्पित था हृदय हमारा,
उदासीनता का रहस्य समझा था, गुरू विश्वामित्र ने सारा
विधी का विधान हुआ पूर्ण, सबकुछ तुम पर मैने वारा
विश्वास करो, समक्ष तुम्हारे ,मैने था सब अपना हारा!”
कह कर श्रृष्टा,हो गये पल भर शान्त टठस्त आसीन ।
लगे देखने,श्री प्रियतमा के कमल नेत्र प्रेम विहीन
उठ रहा था तूफान, सागर-प्रवाह बन रहा था दीन,
विकल हो रहे थे प्रभू के सत्याग्रही,ज्ञान चक्षु मीन।
“स्मरण कराऊं मैं आपको क्या क्या,हे मायापति ?
आपने क्यों कर दी अपनी ही रचना की ऐसी गति?
भंवर बने प्रश्न घूम रहे मन में ,बना है बवंडर मति!
शंका सुलझायें, मुक्त होगी तबही विचार विकृति!
स्मरण, शुभ घड़ी पुष्प वाटिका की करें,हे अन्तर्यामी !
आत्म मिलन सींचित फूलों से थी रंगी मेरी चुनरी धानी!
व्याकुलता क्षणिक एक तत्व की,पढ़ आखों की वाणी,
धनुष भंग कर,ब्याह रचाया,क्या गढ़ने को विछोह कहानी?
त्याग महल अयोध्या का,साथ पार किया था सरयू ,
छ्द्म वेशित रावण, सीताहरण कर,उड़ा पुष्पक गति वायु
काटे दिन अनगिनत सोचती, आएंगे इक दिन मेरे रघु!
नियति कथा प्रपंच-पथ, तब बलि पडा था वृद्ध जटायु!
क्यों भेजा पवनपुत्र ,लेकर वह विह्वल प्रीती संदेसा?
सीताअधिष्ठात्री जिसमें,तुम्हारा हृदय क्या सच था ऐसा?
स्त्री विछोह विरह – चित् पुरुष का,कुहुक रहा हो जैसा!
व्याकुल विरही अधीर हो बसंत मे एकल पक्षी हो जैसा!
छोड दिया स्वामिनी ,त्यागा ना अयोध्या राज पाठ!
शपत ,चरणरज रंजित जीवन मे पड़ गई है गांठ ,
दे चुकी परीक्षा कई,ना जोहूंगी आर्य आपकी बाट!
मै प्रकृति प्राण-शक्ति,भीरू नही,मिट जाऊं पथ के हाट!
निर्जन वन में भी अगर मैं सहज कानन सजा हूं सकती!
दशरथ पौत्रों में कुलीन सभ्यता सहज सृजित कर सकती!
निस्सहाय संतानो को श्रेष्ठ सुसंस्कृत पुरूष बना सकती!
सीता नही अब अधूरी राम!,वह बन गई श्रेष्टतम परा शक्ति !
सहसा क्योंकर उपजी शंका ,निमित्त बना धोबी की खीज ?
अग्निदेव क्यों साक्ष्य बने थे,निरर्थक परीक्षा हुई सबके बीच ?”
असंगत भाव बढ़ा रहा था दूरी,स्वच्छ जल मे ज्यों उपजे कीच
किन्तु इकदूजे के अन्तर्मन स्नेहिल स्मृति लगन रहा था सींच!
विव्हल तब होकर बोले राम, थाम कोमलांगी सीता का हाथ ,
“तुम बिन मैं अधूरा,इस सत्य को है न कोई सकता काट,
करता हू प्रण समक्ष तुम्हारे,स्वीकारो बस मेरी एक बात,
मुझ प्रार्थी को, तुम श्रेष्ठ पथ प्रद्रशिका बन,दे दो शाश्वत साथ!”
शमा सिन्हा
14-9-21

Silence Prevails

The Sun rose few hours ago, Soon moon will decend low! Every particle follows that rule Changes of retaining ,fusing minuscule! All that which is today alive, On completion it will dive! Yet a fear grips now and then Releasing doubts as dried stem! It’s existence was a puzzle of yester Why then its lovers severally pester? Known to all are laws of life and death Why not enjoy then the interim with mirth? Each morning duly rises with Sun’s light Glides to peak then it doth slide! Moon then takes it’s chance to shine. On sky ,a cool calm … Continue reading »Silence Prevails

Wah Kaali badri aayee hai!

नटखट नवेली चुपके से बिजली बिंदी चमकाई है उडते हुये परिंदों के पंखों मे जा, यहसमाई है यहाँ छमछम यह करती, वहाँ रुनझुन बरसाती है रवि किरणों के संग कहीं, अधीर हो मुस्काती है कहीं लहरा कर चदरिया नीली, सपने कई सजाती है हरी बनी वसुधा पर फिर रसीली फुहार बरसाती है। कहीं मचलती, कभी उछलती, पीहर से यह आई hai थिरकती, मुदित मन -कुसुमी तन से, रुक रुक कर है किलकारती । कहती सबसे कानों में, “लाई पिया-स्नेह भरा आंचल अपार, छींट छींट, बांट बांट कर, सजा दूंगी मैं सौगात अम्बार घर आंगन उन सबका, देख रहे जाने कबसे … Continue reading »Wah Kaali badri aayee hai!

Barkha bawri

मचल मचल कर वह बांवरी, यूं बरसने आई है ढक गया नीलनभ भी, धुंध श्याम छवि लाई है। खो गई डालियां, कलियां कोमलांगी झड गई हैं। प्रीत अनोखी, धरा-गगन की, रास रंग की छाई है। कतारों मे चल रहीं,रंगीली जुगनुओं सी गाडिय़ां । सरसराती, कभी सरकती, झुनझुनाती पैजनियां । देखो कैसी रुनकझुनक, मस्ती संग ले आई है । सब पूछ रहे रसरजिंत हो, यह क्यों ऐसे मदमायी है? नांच रहा कोई, ऐसा कौन रंग बरसाई है छुप रहा कोई-पत्तियों तले ना ये जा पाई है गा रहा कोई- यूं राग तरिंगिनी बन यह आई है रोको न इसके कदम-ले जाने … Continue reading »Barkha bawri