ठण्डी हवायें

सजल सरल चंचल ये हवायें इस बैशाख मे ठण्डी बनायें रोक उन्हे लूंगी अपने बगीचे में, कहूंगी आज इन पौधे को भरमायें । गर्मी ने ली मदमस्त अंगड़ाई बांह पसार अपनी शक्ति दिखलाई तपिश खींच,सविता के किरणो की अनमना ढीठ हो गयाआकाश भी! छोड दिया परिन्दों ने ऊंची सैर रहते पत्तो बीच जमा डाली पर पैर! धरा धूल,हवा संग उड़ रही लहर ताप एक सा बना,दिन के हर प्रहर! भर रहा पानी उडान यू देखोआकाश , छुप कर है बैठे,बाहर फैला है प्रकाश सिकुड़ गये छाया मे पंछी करें प्रवास। द्रुत कदम चलते बच्चे,होता जब संकाश ! मटका बना ,आधार … Continue reading »ठण्डी हवायें

आयुष्मान भव

Oumहमारे अर्णव को जन्मदिन की ढेरों बधाई!🥰💐🥮🌻🍡 “आनंदित रहो तुम, सर्वदा होवे वर्षा स्वास्थ्य और संतुष्टी की, उपलब्धियां तुम्हारी बने विस्तृत, आकाश के परिमाण सी! चिरंजीवी भवः!आयुष्मान भवः पुरुषार्थी भवः!यशस्वी जैसे पाट- पयोधी ! स्वमान बने सम्मान तुम्हारा,रहे अटल रघुवर कमान सी! कुल-कुलीन के तुम भविष्य रचयिता ,पाओ अनंत कृपा ईश-आशीष की, प्रेम-शान्ति-सत् ऐश्वर्य जीवन, सुख-सूत्र बने मधुर गीतांजली सी! अर्णव, सबसे तुम प्रिय हमारे ,शक्ति संचरित प्रातःकालीन रवि- प्रभात ज्योति! चिरंतन- सुसंस्कृत-निर्मल-ऐश्वर्यमय जीवन हो!अग्रज और अनुज दे रहे तुम्हें शुभकामना यही।” A very happy birthday to you, Arnav!🥰🌺🌸🌻💐🥰 समस्थ सहिआरा परिवार26-5-22

लौट रही जिन्दगी

मौन को कुछ दो साल से मिल गई थी छूट चिडियों की चहचहाहट उसे बस प्रातःलेती लूट खाली रहने लगी थी सड़के,सारे शब्द गये थे टूट, अपनो से बिदाई,तन्हाई ,उदासी हो गये थे एकजुट! घर की चार दिवारी ,नाप गई थी कदमों का विस्तार, असीमित भय इतना,भूले से भी कभी ध्यान ना जाता उसपार

सजा ली है मौत ने अपनी बारात

सजा ली है,मौत ने निडरता से अपनी बारात बना लिया सबके श्वास को,उसने है सौगात। दे दी है मोहलत ,कुछ सबको खुशहाल जीने की, गीत गाकर रही,जीलो कुछ पल बिन्दास जिन्दगी। लेकर हाथ में श्वेत शाल,साथ वह चल रही संग हर घड़ी , तोड बंधन सारा,काटकर रख जाएगी माया की कडी। लेकर नाम राम का,बिछा रही हैं अनेक बांस बिछावन, सुखा रही आखों मे भावभरा बूंदों का विदाई सावन। “यह मेरा, यह तेरा”, की रट फिर भी कर रहीअनर्थ है, निष्प्राण उदार सम्बन्ध भी दूर है आत्मियता के दान से, खनक बहुमूल्य थातु -पत्थर की,कानों को अभेद्य हो चुकी बंद … Continue reading »सजा ली है मौत ने अपनी बारात

मेरी कश्ती

दीखती नही है कश्ती,नजर आता नही किनारा, बदल गया सब कुछ, जाने कहा गया वो नजारा! नये उत्साह से शुरू होने को था नये सिरे से सफर सहसा दर्द ने बिंधे तन से,कदम रुके लडखढाकर। रह न सकी मै खड़ी, टूटे मनसूबे सारे बिखरकर फरिश्त पूरा न हुआ, कागज पर लकीर बस रह गई जुडकर।

पूछो इनसे!

पूछो इनसे किसके स्वागत मे खिलती ये गुड़हुल की कलियां,लाल रंगीली! मीठा रस-पाक भरकर आचंल में बुला रही डाली पर परिन्दे नन्हे! देखो उनकी चतुराई हठीली पंख पसार बैठ डाल हरियाली मधु सुगंधित बनाने ले जाती हैं रस, रानी की खिदमत में फिर जाती बस! हरे चमकते पत्तों की बिछा कर चादर बुला रही मधुबन के श्याम रगं मधुकर ! कह रही जैसे “तुम भी कुछ मुझसे ले लो अपने सुर मे थोड़ी मीठी मिस्री तो घोलो!”

ओम
“ओ पाखी!”
है कितनी बातें,तेरे पास ,ओ पाखी!प्रातः उठते ही फुदकती , चहचहाती!
दुनिया को क्या मौसम की सूचना हो देती ?
या मिल कर दिनचर्या की योजना बनाती?
उगते ग्रीष्म सूर्य से क्या तू परेशान नही होती?
चुपचाप बैठ घने पेड़ों में,स्फूर्ति क्यो नही बटोरती?
रखा है तेरे लिए, दाना और सकोरे मे पानी
चुग लेनाआकर,दो बूंद सही पी लेना गौरैया रानी!
मुझे तो कुछ नही दीखता,तू क्या है चुगती?
चंचल ढूढ़ती आखों से तू जाने क्या है पाती।
चूं चूं ,चींचीं,कुहुक कुहुक कर जाने कौन सा राग सुनाती
तेरी भाषा जो समझ लेती,मै संग तेरे बतियाती!
होता कितना समय मनोरम,तुम और मै ढेरों बातें करतीं ,
तुम अपनी उडान बताती,कह सुनकर दोनों कितना हंसतीं!
दे देती दो पंखो अपने,तेरे ही संग मैभी उड़ चलती!
ऊंचे पहाड़,बादल बीच फूलों के बाग देख हम आतीं!
सच मानो,रोज सुबह, बाट तेरा मै ब्याकुल हो,जोहती,
तेरी मीठी बोली सुन,बीच डालियों में, तुझे हूं खोजती!
फड़फड़ा कर पंख,कभी चकमा भुझे जो तू है दे जाती,
चकरा कर, ऊचाईयों में,तुझे खोजती मैं रहती,
ऐ पाखी,कभी आवाज तेरी सीटी सी क्यो हैलगती,
हड़बड़ाहट सी होती है,लज्जा से मै हूं सिकुड़ती।
मेरे आंगन की तू लक्खी,करती घर-मन गुंजार,
हरे भरे मेरे इन वृक्षों की, गूंज तेरी करती नव-श्रृंगार !
ओ परी नन्ही सी!आ इन फूलो का मधु-रस तो पीले!
इनकी कोमल पंखुड़ियों को,अपने स्पर्श से दुलार ले!
प्रतीक्षा में तेरी ,गर्दन इनकी झुक सी है जाती,
झूलने को डाली के झूले पर ,राह तेरा ही निहारती।
दाना भी है कह रहा,”आ जाओ बन मेरी मेहमान ,
स्वच्छ शीतल जल है , थकी हो,कर लो इसका पान!”
“आज न आ सको तो, कल जरूर तुम आना,
छुपकर ही सही,डाली पर बैठ मधुर गीत सुनाना!”
शमा सिन्हा
22-4-22

आदते बदल रहीं हैं!

आदतें अब बहुत बदल रहीं हैं, उसकी खर्च की लकीर अब हो रही जैसे टेड़ी, पहले मन को वह बहुत संभाल थी लेती धैर्य क्या छूट।, सब स्वतंत्र बहा है देती। तब पाई-पाई, हिसाब का खाता थी रखती , अब लंगर से निकली, भवर में नांव उलझती , ज़बान की चटपटी उड़ान पर पोटली खुलती दबी इच्छाओ को ,पगली,कर लेती है पूरी । सफर में पहले सहजता लेकर थी वह चलती, सादे टिफिन को छोड़ ,अब खोमचे पर मचलती। टेबल पर रख,कप नूडल्स को चाव से ठंढाती, और चुस्कियाँ ले, फिर ज़बान से स्वाद सुड़कती! सोचती ,क्या व्यक्ति ऐसे भी … Continue reading »आदते बदल रहीं हैं!

कभी नहीं पूछा

पूछा नह ,कभी धरा से कैसे सहती हमारा वार लालच मे तुम्हेबींधता यह जग, यह निष्ठुर संसार। ह्रदय चीर तुम्हारा, लूटते तुम्हारे गौरव का संसार, फिर तन कर गर्व से कहते देखो दिया है,धन अपार! मूक बनी तुम देखा करती जरा न उलटती,ह्रदय का भार, बदले मे मेरा तनमन पालती अंजुली मे लेकर,भाव उदार। बार बार थी तुम हमें चेताती, देख कर करना अस्र प्रहार, पड न जाऐ उलट कर वार! रचयिता का होता है