ठण्डी हवायें
सजल सरल चंचल ये हवायें इस बैशाख मे ठण्डी बनायें रोक उन्हे लूंगी अपने बगीचे में, कहूंगी आज इन पौधे को भरमायें । गर्मी ने ली मदमस्त अंगड़ाई बांह पसार अपनी शक्ति दिखलाई तपिश खींच,सविता के किरणो की अनमना ढीठ हो गयाआकाश भी! छोड दिया परिन्दों ने ऊंची सैर रहते पत्तो बीच जमा डाली पर पैर! धरा धूल,हवा संग उड़ रही लहर ताप एक सा बना,दिन के हर प्रहर! भर रहा पानी उडान यू देखोआकाश , छुप कर है बैठे,बाहर फैला है प्रकाश सिकुड़ गये छाया मे पंछी करें प्रवास। द्रुत कदम चलते बच्चे,होता जब संकाश ! मटका बना ,आधार …