कद ना नापो

“कद ना नापो” श्यामल मेघआच्छादित फुहारों तले,टिप टिप बूंन्दो से बिंधती ,कोपलेंमिढ्ढी में धसी दूब ने सहसा पुकारा,“कभी मुझसे भी हाथ मिलाया करो,माना, तुम्हारा कद है ऊंचा बहुत, परइन लंबे दरख्तों को शर्मसार न करो ।ये भी,झाडिय़ों के बीच से निकल करहंसते हुये लताओं के साथ बढतीं हैं।तुम इंसा, भूलकर सत्य ,मुझपर चलते हो।मन को मन मे रख,हम हैं बस मुसकुराते।मिढ्ढी की है काया,इसे क्यों हो भूल जाते।स्वरुप यह तुम्हारा,बस पडाव है सफर का,किस को पता, कल रौंदेगा कौन ,किसके सिर को?” जिन्दगी , असीम खुशी का सपना हैहाथों को हाथ से, दिल को दिल सेबस चुपके से लेना-देना सीख … Continue reading »कद ना नापो

Little things to learn

The baby was crying since the time it woke up. Whole house ranted with I cries. Alike any other modern family where only one child occupied total attention of parents, thus child too had taken the privilege of earning all attention. Both parents, grandparents, maidservants,all making best effort to calm the baby, to no avail. Her recent interest in chocolate, spicy snacks,chips every thing was being offered. She took each ,ate them yet again repeatedly ask for more. Her regular breakfast time had passed away. The food lay on table. She had no interest in eating it but how long … Continue reading »Little things to learn

Impractical humanity

Practices are changing, they’re so inhuman conditions so crude,struggle to live sadden None desire nearness of their dearest As situations worsen in vicinity nearest Family connections appear most hurting A fear grips mind,compulsive is distancing . Once again cases of Covid19 is on rise Meeting dear ones is a virtual apprise. Relationship earlier were tenderly held Safety measures make them rudely split You can’t do what the others in family don’t approve Hope God will do the good,what humans can’t prove .

थिरकती है खुशिया,तुम्हारे पैरों

खोई कहां है चिंता,बंद है पडा,दूर फिक्र का घर उडती है खुशी साथ उसके, लगा कर कोमल पर यहाँ से वहां और फिर यहां,करती रहती वह दिन भर जाने कहां से भर लाती है ,पाकेट मे यह शक्ति सागर! कूदती ही रहती है बना बना कर गाती है गीतदिन भर!

मूक दृष्टा बनी तथ्यों को खोजती हूं। हंसकर शीघ्र हार मान लेती हूं। उत्सुक हूं। उससे। क्षणिक संवेदना से प्राप्त नहीं हुआ हो सकता। क्या हर गली मकान से जुड़ा नहीं उसका पता? बना आणविक रचना। सूत्र नहीं ऐसा बना दे जो हृदय को प्रवीण। मति है उनकी कितनी अलग नवीन। छुद्र प्रयत्न कर। लेती है भावना हीन। पास रहकर बनाती हो क्यों इतनी दूरी? मेरी आस को कर सकते एक तुम ही पूरी। देखकर दर्द बन गए हो तुम तमाशबीन। मोड़ कर मुंह जाने किस विचार में हो लीन।

मूक दृष्टा बनी तथ्यों को खोजती हूं मैं, हस कर फिर शीघ्र हार मान लेती हूं मैं! उत्सुक हूं ,पाने को संवेदना क्षणिक, जहां बना हर व्यक्ति बस एक बनिक! क्या हर गली मकान से जुड़ा उसका पता? सूत्र नही ऐसा जो बना दे ह्रदय को प्रवीण प्रयत्नों से जुड़तें है असामयिक विचार संगीन! करते हृदय मे वास ,फिर बनाते क्यों इतनी दूरी चाहता जो इंसान वह प्राप्त हो नही सकता मेरे हर आस को कर सकते तुम ही पूरी! देकर दर्द बना लिए हो क्यो इतनी दूरी जुड़ा है असीम आकंक्षा से हर घर का पता! समाई है हर … Continue reading »मूक दृष्टा बनी तथ्यों को खोजती हूं। हंसकर शीघ्र हार मान लेती हूं। उत्सुक हूं। उससे। क्षणिक संवेदना से प्राप्त नहीं हुआ हो सकता। क्या हर गली मकान से जुड़ा नहीं उसका पता? बना आणविक रचना। सूत्र नहीं ऐसा बना दे जो हृदय को प्रवीण। मति है उनकी कितनी अलग नवीन। छुद्र प्रयत्न कर। लेती है भावना हीन। पास रहकर बनाती हो क्यों इतनी दूरी? मेरी आस को कर सकते एक तुम ही पूरी। देखकर दर्द बन गए हो तुम तमाशबीन। मोड़ कर मुंह जाने किस विचार में हो लीन।