जय जय देवी खिचडी रानी!

जय जय देवी खिचड़ीअन्नपूर्णा की! जय जय जय त्रिभुवन देवी खिचड़ी अन्नपूर्णा की! अकाट्य महिमा इनकी,धरा-नभ-विस्तृत बहुत बड़ी। संतोषी सदाचरण रखतीं,कहने को हैं सीधी सादी, आग तपाआलू-बैंगन-भरता,चमकाआखें,हैंपरोसती ! घृत बघार,घृत-सुगन्ध, घृत -श्रृंगार का जादू लहराती! डोल जाते,सप्त ऋषी ,पाते इनकी महिमा लक्ष्मी सी! सखा सहेली इनकेअनगिनत ,कर न पाता कोई गिनती, अचार ,दही,तिलौरी …अरे छोड़ न देना टमाटर चटनी! गर्मी में सजता हरा पुदीना,जाड़ेमेंधनिया पिसे सिलबट्टी ! कच्ची पिसी दाल मिलायें,संग गोभी-प्याज-मिरचा हरा! गर्म सुर्ख कुरकुरे नन्हे पकोड़े ,स्वाद सागर अपार दें बढ़ा ! खिचड़ी रानी स्वप्न-नृत्यांगना, ओढ़े चुनरी पीली हरी नगीने जड़ी! इनकी छवि, सोये मन को भरमाती, बढाती … Continue reading »जय जय देवी खिचडी रानी!

जय जय देवी खिचड़ी अन्नपूर्णा की!

ओम जय जय देवी खिचड़ीअन्नपूर्णा की! जय जय देवी खिचडी अन्नपूर्णा की! इनकी अकाट्य महिमा है विस्तृत बहुत बड़ी। संतोषी सदाचरण रखतीं,कहने को हैं बड़ी सादी, भाप तापती,बैंगन-भरता,चमका कर आखें,हैं परोसती ! घृत बघार,घृत-सुगन्ध, घृत -श्रृंगार का जादू लहराती! डोल जाते,सप्त ऋषी भी,पाते इनकी महिमा लक्ष्मी सी! सखा सहेली इनकेअनगिनत ,कर न पाता कोई गिनती, पापड़ ,अचार ,दही,तिलौरी,अरे रे छोड़ न देना टमाटर चटनी! और गर्मी में हरा पुदीना,जाड़े मेंधनिया पिसे सिलबट्टी ! प्याज मे डालें पिसी कच्ची दाल,हराधनिया,मरीच हरा! गरम, गर्म नन्हे पकौड़े -स्वाद का सागर अपार दें बढ़ा ! रंगीली खिचड़ी सपने में भी थिरकती,लाल हरी नगीने जड़ी! … Continue reading »जय जय देवी खिचड़ी अन्नपूर्णा की!

खोज रहे है उनको

काश शाम नही आती,दिनकर उजाला हि रहता कुछ तो आस जगी रहती,मन उदास नही होता। बीत गई बाते,कह कह कर निश्चित,सबका है जाना। फिर क्यो बन मन की पीड़ा,बार बार वही है दोहराना? क्या सच मानव कठपुतली बन यहां जीवन है जीता पूछ रहा राधा क घायल मन,वेणूमन भी है रीता। कृष्ण का विक्षिप्त तन-मन बार बार है दोहराता लौटने का वादा कर आंचल से जिसने सबको साधे! गोप गोपियां मतवाले है किससे पता उसका किससे पूछे सुर भी खोया धुन भी खोया,असुवन कैसे पोछवाये

“जय जय जय गुलाब जामुन “

नमन प्रसन्नचित्त होकर करती क्योंकर तुमको, कारण बहुत हैं,पर प्रमुख एक बताऊं सबको। चित् चंचल,व्यग्र हो तो हलवाई के घर जाओ, गर्म मीठे रस मे होली खेलते दुलारो को जो पाओ, आगे नही बढना ,”नन्हे गुलाबो “पर बस आंख टिकाओ। जैसे जैसे तैराकों की छवि,आंखों पर छायेगी, उनको देखने भर से,विपत्ति दूर हो जाएगी। आ!हा!हा!कितने सुन्दर लिबास मे,चहूं ओर चमकते, गोल मटोल चिकने जैसे मक्खन पंखुरी पहनते। ऐसे में हलवाई का है जग के प्रति सौहार्द धर्म, चट परोस देवे समक्ष,समझ ग्राहक का अन्तः मर्म। सिक्को की न करे अपेक्षा,दयानंद वह बन जाए, अपनी भलमनसाहत दिखा,महादानी कहलाये। बस ध्यान इतना … Continue reading »“जय जय जय गुलाब जामुन “

“क्यो कहूं?”

क्यों कहूं मै थक गई गति ही जब प्रकृति है। ठहरता नही कहीं रास्ता, चलना ही उसकी रूचि है। क्यों कहू अब मै हार गई श्रम ही श्रृष्टी की है प्रकृति। चलती रहती निरत हवा है, बाधा छोड बस दिशा बदलती! क्यो कहूं,मेरी आस छूट रही, जब श्वास डोर से है बंधी वहीं। पुनः पूर्व उगताअस्ताचल गामी , नित देता संदेश,”जीवन क्रम है यही!” क्यो न कहूं मैं भीअब देखती वही, सजे मोरपंख माधव शीश सीधे ही। सीधे ही होते वे वृक्ष विशाल सभी, नभ पार,चरणों में रहती दृष्टि जिनकी!

आरती का जन्मदिन

ओम हमारी आरती को जन्मदिन की ढेरो बधाई। 🥰🥮🌻 एक छोटी सी ,बड़ी चंचल है हमारी गुडियाजिससे बंधी सबकी,अनेक खुशी की पुड़िया। सीधी न बंध पाती कभी जिसकी चोटी,स्कूल तक, उसकी शिकायत थी करती! पेट दर्द बहाना बना,अन्न छोड़ भाग जाती एक ही थाली में बैठ, इसलिये ही संग खाती। दूर कौआ दिखा,स्वादिष्ट हिस्सा उड़ा ले जाती,नटखट वह,कितनी प्यारी कहानियाँ थी बनाती! उसी नन्ही गुड्डी को, सब का ढेरों प्यार दुलारदेवे ईश उसे, जीवन का हर पल सुख से संवार! बहुत प्यार दुलार आशीष के साथ ,दीदी।

“सीता का प्रश्न “

“दीपक की प्रज्वलित शिखा संग सगुण मुखरित यौवन ,मधुर कर रहा था दीपावली काअयोध्या में पुनरागमनलव -कुश को समर्पित प्रजा-पोषण राज सुरक्षा पालन।पूर्ण धरा धर्म स्थापन कर,शेष शैया विराजे थे नारायण । अनुकूल न थी श्वास, सिसक रहा जैसे नेपथ्य आवरणक्षुब्ध, बना था शेष शैया क्षीरसागर का शान्त वातावरणअप्रसन्न,अश्रुरंजित क्षीण ,मुदित न था अष्टलक्ष्मी मन।गम्भीर था,चंचला का विलक्षण मृदुल सौंदर्य चितवन। लक्ष्मी के पलकों मे ठहरे हुए धे असीमित अश्रु कणस्थिर बनी वह बैठी थी,पर धीर हीन सी ध्यान मग्न !आज अचानक एक आक्रामक निश्चय उठा उनके मनप्रश्न पूछने का प्रानप्रिय से,था उसकाअटल बना प्रण! क्षीर सागर की लहरे उठ … Continue reading »“सीता का प्रश्न “

सीता का प्रश्न

दीपक की प्रज्वलित शिखा का सगुण मुखरित यौवन , मधुर कर रहा था दीपावली काअयोध्या में पुनरागमन लव -कुश को समर्पित प्रजा-पोषण राज सुरक्षा पालन। पूर्ण धरा धर्म स्थापन कर,शेष शैया विराजे थे नारायण । अनुकूल न थी श्वास, सिसक रहा जैसे नेपथ्य आवरण क्षुब्ध, बना था शेष शैया क्षीरसागर का शान्त वातावरण अप्रसन्न,अश्रुरंजित क्षीण ,मुदित न था अष्टलक्ष्मी मन। गम्भीर था,चंचला का विलक्षण मृदुल सौंदर्य चितवन। लक्ष्मी के पलकों मे ठहरे हुए धे असीमित अश्रु कण स्थिर बनी वह बैठी थी,पर धीर हीन सी ध्यान मग्न ! आज अचानक एक आक्रामक निश्चय उठा उनके मन प्रश्न पूछने का प्रानप्रिय … Continue reading »सीता का प्रश्न

ARNAV’S BIRTHDAY

OumA very happy birthday to you Arnav, my gem,my Captain my most loved one! हमारे दुलारे अर्णव को जन्मदिन की अनेकानेक बधाई!💐🥮🥰🥰🥰🥰🥰 हमारे अर्णव, ” मांगी हुई दुआ, हुई पवित्र तुमसे साकार सजा आंचल-अंक हमारा, लेकर ईश्वरीय आकार, उदित हुआ सूर्य जैसे,चीर विशाल नभ बादल पार, प्रेम-प्रदीप्त करने को आये तुम हमारा यह संसार, निर्मल-कर्मठ तुम देव बने, हो हमारे कुल- श्रेष्ठ-श्रृंगार! पथ प्रशस्त अनुजों का कर! सौभाग्य हमारा रहे सवांर! धन्यवाद परमपिता का प्रतिपल है,नित बारंबार , मधु- मधुरम कर रहा सजीव जो, हमारे सपने का आकार!” “प्यार सहित समस्त सहियारा परिवार”26-5-2021