मेरा घर,मेरा सपना

जाने क्या रोश है उनको,मेरे घर के वजूद से, बात बात मे उसे मिटा देने का जिक्र है करते। न बंधा उससे,उनकी कमाई का हिस्सा कोई, फिर भी समेटने की जिद करताहै हर कोई। “खरीदना है क्या?”सोचती हू पूछा कभी मै उनसे, रोक लेती हू ज़बान कि बेवजह बात न बढ जाये। खीजता है कभी मन बहुत,होती है कुंठित भावनाये, उमंग लेकर अनेक खडी किया था यह इमारत क्यो सबको है व्याकुलता,मिट जाए इसकी हसरत। है नही मोल शायद आखों में ,हमारे सपनो का तिल तिल जोड कर ,हमने मेहनत से खडा किया था। आज भी याद है, दौड धूप,”वो … Continue reading »मेरा घर,मेरा सपना

बगिया को चिट्ठी

चले जब जब शीतल ठंडी बयार समझना भेजा असीम है मैने प्यार मेरी बगिया तू सबदिन खिलती रहना फूलों में रंग अनोखे, तू भरती रहना। बडे दुलार से मै तुम्हे याद हू करती, तू कैसी है सोच मै हूं चिन्ता मे रहती। लाई थी ,डालने खाद मै झोली भरकर पडा रह गया है वह घर मे ताले के अंदर गुलाब, मालती,गुडवहुल,कठकली बेली रखना ध्यान, संग तुम सब एक साथ पली। आयेगा बसंत शीघ्र, हूं नही तुम्हारे साथ अभी, टोली बना, गाते रहना होली के गीत सभी।

शुभदायक गणतंत्र दिवस “

समस्त भारतीय भाई बहन को,गणतंत्र दिवस की अनेकानेक बधाई । “”है उन सहस्त्र जाबाजों को बार बार प्रणाम, समस्त देशभर का, साहस से जिनके है वजूद, हम करोडों हिन्द देश- वासियों का। उठा झंडा,भर कर शक्ति से श्वास ,चरणो में मां की कसम का , नापते सहज पथ ,रक्षक इसके ,थाम तिरंगा जमीं से नभ तक का । ” शीश, मां का ऊंचा रहे सदा,”ओढ़ कफन आह्वान है, इसके दुलारों का। है खेलते जहां बच्चे शेरों से, देश है यह ऐसे वीर अहिल्या और भरत का। हरआगंन मे है वास यहांअगणित शान्तिदूत,लौहपुरूष,झांसी की बेटी का। देखना तनिक इसकी ओर ,है … Continue reading »शुभदायक गणतंत्र दिवस “

मान लेना

ऐ मन मेरे मान लेना एक बात जब ग्लानि होवे ,कहना ना हटात् लगेगा कुछ पल,होगा सब साफ पंगत मे बैठ धीर, सुनना चुपचाप होता नही समान, कोई दो विचार बस सुन लेना,प्रगट करना आभार । थोड़ी सहनशीलता करेगी बेडा पार रिश्तेदारी का होता है प्रत्युपकार । सहज शान्त है इसका परिचायक इक पल सह ,प्रेम से झोली भरलो! शमा सिन्हा 18-1-’21

जाने क्यों?

ज़िन्दगी  बड़े  हौसले से शुरु होती है बधाईयं और शहनाईयों का जश्न होती है फिर  आता है गोद से  उतर कर ज़मीनी  रास्ता, जाने कब हवा की झोंक में गुजरात है बचपन , और चढ जाता है चाहतों का नशीला रंग। नित नई गठरियां कंधों से लटकती हैं, वो मासूमियत, वो उल्लास, जाने कहां चले जाते हैं दुआयें, हौसले, मासूम किलकारियां,वो गीत खो जाते है अधूरे सपने,अधूरी सासें!आदत हो जाती है। अपनी और  उसकी तरक्की की माप मे आदमी खो जाता है वो छोटी छोटी,बिना वजह  जश्न मनाने की आदतें वो उछलते कदम, वो बेबाक मचलने की आदतें सब दूर … Continue reading »जाने क्यों?