कलियों का निमंत्रण
“कलियों का निमंत्रण” कह रहीं रंग भरी ये उत्साहित कलियाँ, अधखिली जाओ न अब तुम दूर,खिलने को हम व्याकुल अति । आये हैं बरसाने को भर आचंल, नौ रस तेरी बगिया में सारी याद करो वह भी दिन थे,जूझ रही थी,सूखी, नीरस डाली। फूलों का खिलना, सपना लेकर जीता था वह माली। किसलय को ही पाकर,रोमांच भर लेता था अपनी झोली। आज लगी भीड़ अनोखी, देखने कुसुमिल नन्ही परियोंको! पुलक रहीं हैं,किलक रहीं हैं, हैं अति उमंगित खुलने को! ले पेंग उडेगी डाली अब पाकर मदमाती संग पवन को! सजग ये पत्ते ,पूछ रहे,”क्या हुआ है,अचानक इन कलियों को?” क्यों …