“ऐसा क्यों होता है?”

क्यों, कभी कभी दुआ भी गलत मांग लेतें हैं हम! खुद को ही बस, जीत का हुनरबाज मान लेते हैं हम! सामनेवाले को हराने में, खुद ही हार जाते हैं हम, और गम को छुपाने में, सबकुछ बता जाते हैं हम!…………… वो क्या कहेंगें, हम पर हसेंगें, यही विचारते रह जाते हैं हम! वो भी सोच सकते हैं, यह क्यों भूल जाते हैं हरदम! उन्हें भी, वह सब दीखता है,जिसे नजरअनंदाज कर देते हैं हम! खुद को समझदार, उनको ही नासमझ लेते हैं हम।…………..सबके साथ यही होता है या सबसे होशियार हैं हम? वक्त का यह तकाजा है या उम्र … Continue reading »“ऐसा क्यों होता है?”

“ऐसा क्यों होता है?”

क्यों, कभी कभी दुआ भी गलत मांग लेतें हैं हम! खुद को ही बस, जीत का हुनरबाज मान लेते हैं हम! सामनेवाले को हराने में, खुद ही हार जाते हैं हम, और गम को छुपाने में, सबकुछ बता जाते हैं हम!…………… वो क्या कहेंगें, हम पर हसेंगें, यही विचारते रह जाते हैं हम! वो भी सोच सकते हैं, यह क्यों भूल जाते हैं हरदम! उन्हें भी, वह सब दीखता है,जिसे नजरअनंदाज कर देते हैं हम! खुद को समझदार, उनको ही नासमझ लेते हैं हम।…………..सबके साथ यही होता है या सबसे होशियार हैं हम? वक्त का यह तकाजा है या उम्र … Continue reading »“ऐसा क्यों होता है?”

“चुनाव “

मौसम पूर्वानुमान भी छूट रहा है बहुत पीछे, नेता के भाषण प्रतिस्पर्धी फरीश्त बिछा रहे । रिझाने को वादा,आसमान ज़मीं पर लाने का करते, असम्भव को बातों ही बातों में पूरा कर जाते ! क्यों भूलते हैं षडयंत्रकारी!आया है अब युग राम का! असत्य हटा कर अब सर्वत्र “आयुध “हीआसीन होगा! आत्म-जागरण करेगी सरयू- मंदाकिनी- गंगा धारा! योगी-सुमति सिद्ध करेंगे महत्व चित्रकूट तीर्थ का! चंचल बहुत आज विशाल सरल सगर-जनमानस, अचंभित मानव ढूंढ़ रहा अपने राम का दिशानिर्देश ! व्याकुल भारती खोज रहे तट सनातन धर्म स्वदेश ! हे विश्व-रचयिता त्राण दो!सुलझाओ यह पशोपेश! यह चुनाव बहुत कठिन,भरत-संतान की परीक्षा … Continue reading »“चुनाव “

शूरवीरों को नमन!

शक्ति स्तम्भ को देखना है जिन्हें,सशरीर चलते हुए, तो आकर,हमारे भारत की सीमा पर आपको देखले! वीर- रक्त सिन्चित संताने, पग-पग सचेत ध्वजा लिये! द्रृढता से जिनकी, पर्वत भी पाठ हैं नये नित सीख रहे ।, सागर के ज्वार भाटे नई ऊचाईयों को है ,निरंतर छूते! प्रशस्त लहरा रहा तिरंगा, हो आश्वस्त इन सींह- वीरों से, थम जाता समीर हतप्रभ,देख पाषाण-बाजू शमशीरों के! फूलों की तकदीरों में भी, उभर रहे हैं रग नय तबदीली के, बढ रही ऊम्र उनकी,हारकर बिखरते नहीं वो अब जमीन पे! मातृ नमन ,सिर ऊचां कर,कह रहा हिंद सारे संसार से – “रक्षित द्योढी है हमारी!”,धरा-आकाश, … Continue reading »शूरवीरों को नमन!

शूरवीरों को नमन!

शक्ति स्तम्भ को देखना है जिन्हें,सशरीर चलते हुए, तो आकर,हमारे भारत की सीमा पर आपको देखले! वीर- रक्त सिन्चित संताने, पग-पग सचेत ध्वजा लिये! द्रृढता से जिनकी, पर्वत भी पाठ हैं नये नित सीख रहे ।, सागर के ज्वार भाटे नई ऊचाईयों को है ,निरंतर छूते! प्रशस्त लहरा रहा तिरंगा, हो आश्वस्त इन सींह- वीरों से, थम जाता समीर हतप्रभ,देख पाषाण-बाजू शमशीरों के! फूलों की तकदीरों में भी, उभर रहे हैं रग नय तबदीली के, बढ रही ऊम्र उनकी,हारकर बिखरते नहीं वो अब जमीन पे! मातृ नमन ,सिर ऊचां कर,कह रहा हिंद सारे संसार से – “रक्षित द्योढी है हमारी!”,धरा-आकाश, … Continue reading »शूरवीरों को नमन!

“चुनाव “

मौसम पूर्वानुमान भी छूट रहा है बहुत पीछे, नेता के भाषण प्रतिस्पर्धी फरीश्त बिछा रहे । रिझाने को वादा,आसमान ज़मीं पर लाने का करते, असम्भव को बातों ही बातों में पूरा कर जाते ! क्यों भूलते हैं षडयंत्रकारी!आया है अब युग राम का! असत्य हटा कर अब सर्वत्र “आयुध “हीआसीन होगा! आत्म-जागरण करेगी सरयू- मंदाकिनी- गंगा धारा! योगी-सुमति सिद्ध करेंगे महत्व चित्रकूट तीर्थ का! चंचल बहुत आज विशाल सरल सगर-जनमानस, अचंभित मानव ढूंढ़ रहा अपने राम का दिशानिर्देश ! व्याकुल भारती खोज रहे तट सनातन धर्म स्वदेश ! हे विश्व-रचयिता त्राण दो!सुलझाओ यह पशोपेश! यह चुनाव बहुत कठिन,भरत-संतान की परीक्षा … Continue reading »“चुनाव “

(1)

“प्रभु, सुन लो बिनति!”.बना दिया है अपना अंश मुझे,दिया वह सब अभिलाषित गुण,फिर क्यों नहीं सम्भव वह सब ,जो चाहता प्रति पल मन अब? सशक्त शरीर क्षीणकाय रहा बन,स्मृतिह्रास अब हो रहा क्षण क्षण,आस सुहास समेटती दुर्बलता कण,मूक दृष्टा बन, निहार रही मैं सब। रुदन से ही होता है यह कथा प्रारंभननवजीवन पर्व बनता,शिशु का मंगल क्रदंनहर्षित मात पिता,होता है गुंजित कुल -कुंजनअवतरित मानव बनता,पूर्ण परमात्म स्पंदन! श्री सशक्त रहे अब भी,सत-आत्माऔर तन,निर्मल सहज रहे,पुरस्कृत यह यात्रा जीवन,मालिक, रख लो बस इतना सा मेरा मन ,प्रार्थना स्वीकारो ,अरज रहा यही कण कण!

मेरी काव्यांजलि

…………………………………………………………….. About the authorBook titleBook descriptionPrefaceAcknowledgementDedication ………………………………………………………………… कवियित्री परिचय: नाम – शमा सिन्हाजन्म – ३-६-५४स्थान – पटना, बिहार।शिक्षा – एम.ए(अर्थ-शास्त्र)           एम. ए(अंग्रेजी)           एम.एड कोमल और संवेदनशील मन की धनी,शमा सिन्हा की शाब्दिक अभिव्यक्ति बचपन से ही कविताओं के रुप में परिणत होने लगी थी ।समय के साथ भाषा की परिपक्वता ने अपना प्रभाव बनाए रखा। इनकी रचनाएं, प्रकृति एवं समाज के विभिन्न परिपेक्ष से प्रभावित होती दीखती हैं ।प्राकृतिक तत्वों को मानवीय गुणों से साकार रूप देकर, वृक्ष और पु्ष्प से मित्रवत वार्तालाप करना,इनकी विशेषता है।इनकी रचनाएं सहज और सरल भाषा में गहरे भावनात्मक एवं अध्यात्मिक जनसंदेशो से ओतप्रोत हैं। … Continue reading »मेरी काव्यांजलि

मुझे मिठाई बहुत पसंद है। मीठे व्यंजन की चाहत सभी को होती है। किसी किसी को बहुत ज्यादा होती है। उन मीठे व्यंजनों को पसंद करने वालो में मै भी हूँ। शायद मेरे बत्तीसो दाँत और जिव्हा ,इनके अथक प्रेम अनुयायी हैं। खाने के पहले, खाने के बाद और बीच-बीच में भी मुझे मीठा खाने की इच्छा होती है। खासकर, रसीली मिठाई अमृत सी लगती है। मैंने अमृत पान नहीं किया किन्तु सत् चित् आनंद ईश्वर है तो इसके पारण से भी मीठाई प्रेमीयो को कुछ वैसा ही सुख मिलता है ,यह मेरा अनुमान है।दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ ! “जय जय जय मधुरस संतृप्ती “

तासीर, उसकी होती चित-शीतल- मधुर, वह है रसीली मनभावन मिठाई,रंग जाता मन उसमें पूर्ण, हो जैसे नैसर्गिक कथा पावन कोई।छुधा- तृष्णा संतुष्टी पश्चात, वह निकट अचानक दे जाये अगर दिखाई,रसीले गुलाब जामुन, जलेबी, चन्द्रकला, उसके है सगे रिश्तेदार भाई,अनोखी मीठी अनुभूति, नयनों ने संगीत-सरगम के साथ है पिलाई ,जैसे पूर्ण चंद्र देख,मधुर राग में व्याकुल पुकार चकोर ने है लगाई,ज़बान हमारी, बिना चखे ही,आनन्द- रस – सागर में डूबी उतराई ।कंठ-हृदय-उदर पथ,पुष्प पंखुडियां केसर सुगंध ऐसी सुन्दरता पसराई,स्वाद-कलिकाये, दृष्टि निर्दिष्ट हो,असीम नैसर्गिक संतुष्टी भरमाई ।किया जब आलिंगन, जिह्वा ने रस-बून्दो का, बजी बहार की उच्च स्वर मधु-शहनाई ,आत्मा यू आनन्दित … Continue reading »मुझे मिठाई बहुत पसंद है। मीठे व्यंजन की चाहत सभी को होती है। किसी किसी को बहुत ज्यादा होती है। उन मीठे व्यंजनों को पसंद करने वालो में मै भी हूँ। शायद मेरे बत्तीसो दाँत और जिव्हा ,इनके अथक प्रेम अनुयायी हैं। खाने के पहले, खाने के बाद और बीच-बीच में भी मुझे मीठा खाने की इच्छा होती है। खासकर, रसीली मिठाई अमृत सी लगती है। मैंने अमृत पान नहीं किया किन्तु सत् चित् आनंद ईश्वर है तो इसके पारण से भी मीठाई प्रेमीयो को कुछ वैसा ही सुख मिलता है ,यह मेरा अनुमान है।दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ ! “जय जय जय मधुरस संतृप्ती “

“भैया दूज”

बचपन की कुछ प्यारी यादें,आज आप से करती हूं साझा। जीवन होता था सरल बहुत तब,पारदर्शी थी व्यव्हारिकता ! परिवार हमारा साथ मनाता त्योहार ,एक ही आँगन में जुट, सबको यही चिंता रहती,कोई भाई बहन ना जाए इस खुशी से छूट! भाई दूज पर मिलता पीठा – चटनी,और फुआ बताती बासी खाने की रीती। चना दाल की पूड़ी, खीर, आलू-टमाटर-बैगन-बड़ी की सब्जी! गोबर से उकेर कर चौक,कोने में सजाते पान-मिठाई- बूंट । दीर्घायु होवें सब भैया हमारे,हम बहनें पूजती शुभ “बजरी” कूट! चुभाकर “रेंगनी” का कांटा,सभी जोगतीं काली नजर का जोग टोना। फिर जोड़ती आयु लम्बी,मनाती भौजी का रहे सुहाग … Continue reading »“भैया दूज”