हे नारी !
बन गई जो तुम दुर्वा जैसी, पैरों तले दबा दी जाओगी! कोमल लता जो अगर हुई , श्वास तुम्हारी सहारा खोजोगी! अगर झाड़ की एक डाल बनी, आड़ी तिरछी ही बढ़ पाओगी! अगर तुम वट वृक्ष विशाल बनी, सशक्त हो, सबकी पूज्य बनोगी! करो अपनी आत्म चेतना जागृत, पान करो बस स्वंय शक्ति अमृत! सिद्धी तुम खुद अपनी बन जाओ ! त्याग अपेक्षा, बनो सत्य समर्पित , तब ही संतुष्ट जीवन जी पाओगी!