“शिक्षक को श्रद्धा सुमन”

शुभ दिवस है ,शुभ घड़ी है,अर्पित है शिक्षक को श्रद्धा सुमन !ऋणि तन मन धन उत्कृष्ट,आपको हमारा शत शत नमन ! शिक्षक शिक्षा का सुफल-शिखर,प्रज्वलित दीप प्रखर है,सृष्टि के कण कण का यह प्रहरी,इसका विश्वस्त भविष्य है। ब्रह्मांड को विनीत विधाता, जैसे देता मोहक स्वरूप है,स्वयं का परिचय देकर ,शिक्षक लिखता इसका भविष्य है। पुण्यप्रकाशित है यह धरती, है विद्यार्थी हर देशवासी ,विद्यामंदिर सर्वत्र यहाँ ,गुरु पूजते हैं सर्वत्र भारती। आशीष फलित जिनका प्रतिपल,उनको अर्पित है प्रार्थना ,गुरु का सच्चा संदेश पाकर,जागृत करें विश्व शांति-साधना! जन जन को शिक्षक दिवस की मंगल कामना!💐

रहे गई है कुछ कमी

नित करती हूं मैं नियम अनेक फिर भी पाती नहीं  तुम्हे देख। मेरे कान्हा करती हूं क्या ग़लती, व्याकुल यूं क्यों होकर मैं फिरती? कहो तुम्हारे वृन्दावन में ऐसा क्या, गोपाल बने मटकते वन में जहां? माना अच्छा ना था भोग हमारा पर अब तो हैं मेवा मिश्री भरा! रखती मैं तुम्हारी सेवा में वह सब, कृपा से तुम्हारी मेरे पास है अब। हां, ध्यान नहीं लगा पाती मैं ज्यादा भूख पीछे से पकड़ लेती मन सादा। तुम से हटकर, भोजन में मन है बसता शायद तू भी प्रेम-कृपा नहीं है करता! चाहती हर पल मैं,तेरा ही दर्शन करना,   … Continue reading »रहे गई है कुछ कमी

“मुझे चाहिए!”

एक सखा  सौहार्दपूर्ण चाहिए जो सुन ले। मेरी हर बात अपने पास सुरक्षित रख लें।। गलतियों को मेरी ढक कर दफन जो कर दे। दुखते जिगर के तार को स्पर्श कर सुकून दे ।। गम्भीर उसके बोल यूं हृदय में मेरे पैठ जायें। सुनकर जिसे मिट जायेअपेक्षा-मनोव्यथायें।। हो उसके पास ऐसा वह धन, सन्तोष की ताबीर। रंग दे सहज मन को खुश्बू में जैसे गुलाल-अबीर।। जरूरी नही,रहे वह गिरफ्त में मेरे पास सदा। लेकिन करले स्वीकार मेरी अच्छी-बुरी अदा।। तटस्थ वह रहे सदा जैसे सूर्य का नया सवेरा। भरा हो जिसमें चहचहाहट , मुस्कुराता चेहरा।। मेरे हर अनुभव को कर … Continue reading »“मुझे चाहिए!”

सीता का प्रश्न

3 ” “ दीपक की प्रज्वलित शिखा संग सगुण मुखरित यौवन ।मधुर कर रहा था दीपावली काअयोध्या में पुनरागमन।। लव -कुश को समर्पित प्रजा-पोषण राज सुरक्षा पालन।पूर्ण धरा धर्म स्थापन कर,शेष शैया विराजे थे नारायण ।। अनुकूल न थी श्वास, सिसक रहा जैसे नेपथ्य आवरण।क्षुब्ध करुण बना था शेष शैया, क्षीरसागर का शान्त वातावरण।। अप्रसन्न,अश्रुरंजित क्षीण ,मुदित न था अष्टलक्ष्मी मन।गम्भीर उदास था,चंचला का विलक्षण मृदुल सौंदर्य चितवन।। लक्ष्मी के पलकों मे ठहरे हुए धे असीमित अश्रु कण।स्थिर बनी वह बैठी थी,पर धीर हीन सी ध्यान मग्न ।। आज अचानक एक आक्रामक निश्चय उठा उनके मन।प्रश्न पूछने का प्रानप्रिय से,था … Continue reading »सीता का प्रश्न

“भैया दूज”

बचपन की कुछ प्यारी यादें,आज आप से करती हूं साझा। जीवन होता था सरल बहुत तब,पारदर्शी थी व्यव्हारिकता ! परिवार हमारा साथ मनाता त्योहार ,एक ही आँगन में जुट, सबको यही चिंता रहती,कोई भाई बहन ना जाए इस खुशी से छूट! भाई दूज पर मिलता पीठा – चटनी,और फुआ बताती बासी खाने की रीती। चना दाल की पूड़ी, खीर, आलू-टमाटर-बैगन-बड़ी की सब्जी! गोबर से उकेर कर चौक,कोने में सजाते पान-मिठाई- बूंट । दीर्घायु होवें सब भैया हमारे,हम बहनें पूजती शुभ “बजरी” कूट! चुभाकर “रेंगनी” का कांटा,सभी जोगतीं काली नजर का जोग टोना। फिर जोड़ती आयु लम्बी,मनाती भौजी का रहे सुहाग … Continue reading »“भैया दूज”

Daughter ‘s day

Happy Daughter ‘s Day अपनी सब बेटी को हम सबका प्रेम भेंट , “सहचरी अभिन्न बन गई, आज वह हमारी है,ममता की छाँव पसारे,वह विशाल घनेरी है ,जन्मा हमने, पर सहसा बन गई माता हमारी है ,कहूँ किन शब्दों में,मन उसका कितना आभारी है।बहुतेरे आकांक्षाओं की वह बनती सदा सहभागी है।ईश का असीम स्नेह बन, बेटी घर सबका भरती है ।” शमा सिन्हा29-9-’20

बादल का आना

रंग छाया नभ पर श्यामल। जैसे उड़ा अंगवस्त्रं  मलमल।। काला हुआ सावन का अचकन । आंखों से उसके रंगा पसरा अंजन।। पंख फैलाकर आए उडते  बादल । बिजली ने कौंधाया चांदनी चपल।। परिंदे,खोज रहे घोंसले की दिशा। जाग रही चहुंओर जीवन जिजीविषा।। स्वरचित एवं मौलिक शमा सिन्हा रांची।

कहूं किससे?

इस हाल को करूं बयां किससे ? इस उम्र में सुकून मिले जिससे।। जोड़ कर तिनका बनता घोंसला। बारिश में  रखने को हौसला ।। अगर परिंदा सदा उड़ता ही रहे। भींगीं पलकें कभी खुल ना पायें ।। लोगों कहते,”रात बितालो मेरे यहां!” पर रात भर में कटेंगी न सारी सांसें वहां? और ग़र पंख उसके सदा भींगते ही रहें। चौखटों पर, औरों के फुदकता फिरे।। ऐसे घोंसले का क्या उसे  है फायदा । जिसके रहते भी वंह रहे सुकून से जुदा? शमा सिन्हा मुंबई ८-७-२४

कुछ बातें ना कहूं तो अच्छा

चेहरे के भाव कह जाते हैं वह सब छुपा लेते हैं जिसे चतुर शब्दों से लब! जताई थी शायद उसने मुझसे सहानुभूति, चेहरे ने कर दी कुछ और अभिव्यक्ति! भारी था सिर मेरा,तप रहा था शरीर, पर समझी, उसके आंखों के इशारे गम्भीर! “आप अड़ कर उधर बैठ क्यों नहीं जाती? सारा समय लेटे रहना ठीक नहीं!” लगा जैसे विधी ने चुभाया हो कांटा, आवाज़ आई”घर से अबअपना आसन हटा!” जीवन के अंतिम पड़ाव का  बचा रास्ता, छोटी तकलीफ करती जहां हालत खस्ता! घर था उसका मैं कह क्या सकती थी? रजामंदी उसकी, मेरी उपस्थिति तोलती! रोटी ही नहीं, हर … Continue reading »कुछ बातें ना कहूं तो अच्छा

हे नारी !

बन गई जो तुम दुर्वा जैसी, पैरों तले दबा दी जाओगी! कोमल लता जो अगर हुई , श्वास तुम्हारी सहारा खोजोगी! अगर झाड़ की एक डाल बनी, आड़ी तिरछी ही बढ़ पाओगी! अगर तुम वट वृक्ष विशाल बनी, सशक्त हो, सबकी पूज्य बनोगी! करो अपनी आत्म चेतना जागृत, पान करो बस स्वंय शक्ति अमृत! सिद्धी तुम खुद अपनी बन जाओ ! त्याग अपेक्षा, बनो सत्य समर्पित , तब ही संतुष्ट जीवन जी पाओगी!