जो हो नही सकता वही तो करना है!

मन लगाता आकाश परे छलांग ले लेते हैं सपने रूप सांगोपांग ! लालच के जाल में जीव तैरता रहता, भोगी बना,योगी का स्वांग है रचता! धरा पर  वह स्वर्ग  उतारना चाहता मृग बना मरीचिका सदा है खोजता! समेटकर अथाह ,वह रहता है प्यासा! अपनी युक्ति से खुद को देता है झासा! इस शरीर  से वह रखता है अथाह  मोह। हराने को नियती, वह पथ पर रखता टोह! दृष्टि पाकर ,विहीनअन्तर्मन ज्योति डोलता सत्य परिचित होकर भी वर्चस्व मद लोटता! विवेक शून्य वह पृथ्वी को अपनी सम्पत्ती बना, लोक लाज  मर्यादित ध्वनित  को वह नकारता, वासना की श्वास संग वह आसमान … Continue reading »जो हो नही सकता वही तो करना है!

शिव

निर्विकार  चिरंतन सत्य हो तुम ही! निराकार  रुप का आकार तुम ही! जन्म मृत्यु परे शक्ति पुंज विराम हो! तुम्ही चेतना,अवकाश तुम ही हो! आरम्भ विहीन तुम अनन्त धाम हो! सती कैलाश रमें, कैसे सम्बन्ध विहीन हो? ओंकार स्वरूप, हो आधार सनातन ! सृष्टिकाल से भी तुम हो पुरातन ! दयावान तुम बने, जीव हृदय विराजते अनुभूत जगत तुम  क्यों नही सवांंरते? ना सुख दुख,ना पंचभूत ही व्याप्ते! ओंकार  बन नेपथ्य में हो सदा गूंजते! तुम ही सिद्ध चेतना की हो पुकार! ऋषी मुनिगण के बने वैराग्य साकार! ना तुम जड़ हो ना तुम  हो चेतन! अनन्त सनातन तुम!हो विचार मंथन ! … Continue reading »शिव

यादों के झरोखे से

कई एक चित्र सामने आ जाते हैं। जब जब झरोखों को खोलते हैं! तब कन्या जन्म ना था शकुन , पर रखा उन्होने बना प्रेम-प्रसून ! जन्म पर दिया डाक्टर को कंगण, त्योहार सा बना दिया वातावरण ! मैं गुड़िया छोटी सी ,फ्राक पहने , धारीदार स्वेटर, कलाई पर गहने! पापा बनाते मेरे लिए अनेक गाने। अपनी ही धुन मे लगते थे वे सुनाने! “छम-छम गुड़िया छम-छम चली” नाच उठती थी मैं बन खुशी की डली! चारो ओर पलंग के, मस्त मैं थिरकती परियों सी,बालों को फूूलों से मां संवारती ! गोल गोल नांच कर,फ्राक को मैं फैलाती! अचानक चकराकर,धम्म … Continue reading »यादों के झरोखे से

जिन्दगी जवाब दो!

पलट कर देखती हूं कभी जब भी तुझे तो देती मैं घबड़ा कर सोचना छोड़ दिमाग के पट बन्द करना हूं चाहती सोच से परे तू भयावह है दीखती अचरज है कैसे तेरे रास्ते मैं गुजरी! कितने पाप किए थे,कितनी गलतियां? पूूछती , क्याऔर कुछ है अब भी बाकी? हिम्मत का क्या यही लिखा होता है हश्र? क्योंकि सब्र का नतीजा होता इतना वक्र ? हां,अपने कर्मो क बोझ तो उठाना होगा और उनके साथ इन सांसों को ढोना होगा हां इतना ही सुकून कोई रोग नही व्यापा! मैं दवा नही खाती,शरीर काम कर रहा! किन्तु वक्त के खिलाफ बहुत … Continue reading »जिन्दगी जवाब दो!

जबसे मुस्कुराना

शिकायतें सारी हो गईं हैं अब पानी हुनर सीखा है जबसे होठो ने धानी दूूर हो जाती है इससे कई परेशानी बिना बोल, बोलती यह ऐसी वाणी ! पास रहता सबके,यह धन होता ऐसा ! फर्क इतना, हम रखते नही अपने जैसा तोलते सुकून से नही, बना बाट पैसा! फिर सख्त होठ दे ना सकेंगे बैन वैसा! आंख देखेंगी,दिमाग पहनेगा नया चोंगा सबसे मिल कर भी गैरियत ही पलेगा पैसे की हवस ने बदला है वह प्यारा जमाना अपनापन बिसराया,हम भूले जबसे मुस्कुराना! 6-2-24

कैक्टस

देख कांटे अनेक उसके सब कहते,”दूर रहो!” पर वह मस्त मौला गुंजारता”मुझसा जियो!” मैनें पूछ ही दिया,”ऐसी क्या बात है तुम में?” बताओ ,क्या है बल,क्यों इतना शोर मचा रहे?” “समझ जाओगी,बस कुछ ठहर जाओ मेरे पास!” मैं चकित थी,स्वर में भराथा उसके स्नेह सुबास। दिखाया उसने,निकट ही खिला उसके गुड़हुल पुष्प। एक पहर बीता,शाम के साथ मुर्झा,वह हुआ शुष्क। “अलविदा दोस्त!”कह, वह सुर्ख स्मित फूल हुआ सुप्त! पूछा कैैकटस ने”अरे, तुम्हारी सुंदरता क्यो हुई लुप्त ?” “काया कोमल थी मेरी! ना सह सकी कटु सूर्य प्रहार ! तुम बलवान हो मित्र!तुम सह सकते हो प्राकृतिक वार! फिर कभी होगी … Continue reading »कैक्टस

खुशियों की सरगम/

आजाने से तुम्हारे,मिजाज हवा का बदल जाता! मन गीत गाता उमंग भरा,माहौल सारा रंग जाता! शीतलता छाती अंबर पर, सूर्य संग झूमने लगता ! तुम जब आती हो मन मेरे, नशा सा है छा जाता! एक गुदगुदी होती चित में, चेहरा खिला चमकता! चंदन लिपट भावनाओं से,चिंतन सहज है करता। तुम आती पल भर ही,पर सब कुछ जैसे बदलता। बजती खुशियों की सरगम,मन नाचने है लगता!

मन परिंदा बन

देख कर उनका चहकना,झूम हूं उठती ! लगता है जैसे पैरों में उनके पायल है बंधी ! गूंजती है कानों में ऐसी चंचल नई सी धुन। जैसे पके मीठे दानों की माला रहा कोई बुन! झाड़ियों में कूद कूद कर हलचल हैं मचाती जाने कितनी बातें सखियों को हैं बताती! फिर जैसे जैसे सूर्य लगता अवसान में डूबने, अपने घोसलों को लगती ये सब भी खोजने! पत्ते भी साथ ही इनके स्थिर खामोश हो जाते। क्षितिज की लाली के साथ जब फिर सब उड़ते मेरा मन परिंदा बन, इनके साथ ही उड़ जाता! 4-2-24

मुझे शिकायत है!

ऐ मन ,तू रहता सदा साथ मेरे ! रहूं भीड़ में या होती हूं अकेले! मित्र मेरा, तू ही एक है अंतरंग! फिर क्यों करता है मेरा चैन भंग ? तुुझसे छुपी नही मेरी कोई बात। चलता रहता संंग चारो पहर साथ ! याद रखना किंतु मेरी एक बात, बांधले पल्लू में अपने तू यह गांठ ! अब जगाना छोड़ दें मुझे देर रात! तेरी यही आदत परेशान करती है! तुझसे इसीलिए ही ,मुझे शिकायत है! सीमा सिन्हा 5-2-24

My road to my right

The only weapon in Mother’s arms I had Were tears and howls to make all feel bad My parents were irritated and very sad To calm me down ,tactfully tricks they tried ! Milk and water was all they would offer, While I watched, their plate with pizza savour! This was enough for my anger to tower! Gradually some cereals rested on my platter. With less salt and sugar taste wasn’t “chater pater!” Annoying still when glasses of milk got fewer! My growth was good, I toddler with support. With smell,I could delicacies on table sort! Reached for bowls on … Continue reading »My road to my right