चरित्रवान
रखें जो सम्मान मानवता का, रक्षक जीवों का एक समान सा! वर्ण-भेद छोड़ रक्षक है सबका, उमंगित हो विशाल सागर सा! हो सम्पूर्णता करुणा बूंदों का, विशाल सोच हो नभ नील का! रथी बना जो कर्तव्य रथ का, प्रहरी वह आचार-संहिता का! निर्मलजीत सहज विजयी सा, पथ प्रदर्शन करे सहजता का! वीर-पथिक वह सजीव राम सा, प्रेम पगा हो,वह नंद नंदन सा! सम्पूर्णता हो गीता वाचक का, चरित्र-बली केवट वह समाज का!