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कोई समझा नही

चाहती थी मैं अपने मन की बात उसे ही बताना! मन कसक उठता ,जजबाती बन जाता अफसाना! खोल नही पाती गांठ उफन कर रह जाता पैमाना! मिल कर अपनों से,मन रहता है वैसा ही अंजाना! प्याले में खोजती हूं मेराअपना वह पुराना आशियाना! लेकिन तय हो गया है, जल्द मेरा भी इस घर से जाना! क्या कह कर समझाऊं?कैसे अपने मन को ढाढ़स दूं? ढल रही शामअब,आशा का सूर्योदय कहां से लाऊं? विभ्रान्तियां अनेक पल रहीं, सबके विचलित मन में। रख कर खुद को अलग ,ढूढ़ रहे सब प्रभू को वन में! चल रहा तन-मन,अचम्भित हूं,उस शक्ति को कैसे पहचानू? … Continue reading »कोई समझा नही

इंसान में इंसानियत

अरे, यह क्या हुआ बिखर गया है क्यों समाज धन की लोलुपता छोड़ कुछ नजर ना आता आज! नदी किनारे संयुक्त हुआ था करने को नेक काज टुकड़ों मे है बिखर गया कहलाया था जो समाज ! कहां बह गई वह टोली,गढित वह स्वर्णिम सभ्यता, लुप्त हुई मिठास दोस्ती की, अदृश्य हुई मानवता ! वह परिवार, हमारा आस-पड़ोस में फैला संसार ! देखो हुआ छिन्न-भिन्न ,पड़ा स्वार्थ का कटुकुठार! अर्थ ने बोया बीच हमारे क्यों इतना वैचारिक मतभेद ? थाली से हमारी जाने कहां चला गया परमार्थ समवेत! “हम हैं बीज इसके!”हुआ निर्जीव यह वैचारिक मत! ज्यों कस्तूरी की खोज … Continue reading »इंसान में इंसानियत

रामायण काव्य महत्व

“रामायण की महत्ता” रामायण काव्य नही अपितु आदर्श संहिता हैं।समाज के प्रत्येक क्षेत्र के वर्णन के साथ, गुरु, माता ,पिता,स्त्री-पुरुष, भाई,मित्र,सेेवक यहा तक की दुश्मन की महत्ता का नाम रामायण है। नीतीपूर्ण जीवन के संदर्भ में समसामयिक घटनाओं का किस प्रकार आदर्श सामाजिक संयोजन होना चाहिए, इसी का वर्णन बालमीकी मुनी और तुलसीदास ने किया है।कर्तव्य और धैर्य के पथ पर चलकर जैसे श्रीराम ने ना सिर्फ अपने जन्म के उद्देश्य को पूर्ण किया बल्कि सन्तुष्ट जीवन जीने की आधारशिला भी रख दी जो स्वतंत्र भारत के संवैधानिक अधिनियम का भी आधार बना ।हनुमान का पुत्र स्वरूप ;केवट का सेवा … Continue reading »रामायण काव्य महत्व

हमारे गांधी

हिला दिया उसने,प्रवासीय प्रशासन विधी! लूट लिया तर्कों से अपने ब्रिटिश सरकार की गद्दी! वह क्रमचंद-पुतली बाई का था अनोखा सपूत! दो अक्टूबर 1869का दैवीय आनंदकोष अटूट! वह विलक्षण बालक बना हमारा महात्मा गांधी! अहिंसा के साथ चलाई जिस ने हिन्द राष्ट्रवाद की आंधी! पाकर संदेश मांगा जगत ने अपना नागरिक अधिकार ! नेतृत्व में, गांधी के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम चढ़ा पारावार! बन कर दीप अनोखा ,छेड़ा राग आन्दोलन का! सम्पूूर्ण भारत को, उन्नीस सौ सैतालिस में,दिया उपहार स्वतंत्रता का! शमा सिन्हारांची।तिथि: 30-1-24

रामायण

“रामायण की महत्ता” रामायण काव्य नही अपितु आदर्श संहिता हैं।समाज के प्रत्येक क्षेत्र के वर्णन के साथ, गुरु, माता ,पिता,स्त्री-पुरुष, भाई,मित्र,सेेवक यहा तक की दुश्मन की महत्ता का नाम रामायण है। नीतीपूर्ण जीवन के संदर्भ में समसामयिक घटनाओं का किस प्रकार आदर्श सामाजिक संयोजन होना चाहिए, इसी का वर्णन बालमीकी मुनी और तुलसीदास ने किया है।कर्तव्य और धैर्य के पथ पर चलकर जैसे श्रीराम ने ना सिर्फ अपने जन्म के उद्देश्य को पूर्ण किया बल्कि सन्तुष्ट जीवन जीने की आधारशिला भी रख दी जो स्वतंत्र भारत के संवैधानिक अधिनियम का भी आधार बना ।हनुमान का पुत्र स्वरूप ;केवट का सेवा … Continue reading »रामायण

“ऐ मन!”

रखना ऐ मन,पास अपने बस कुछ ही यादें! ठहरी हैं जिनमें खुशी की वो कोमल सम्वादें! बाकी सब कर देना विस्मृति के अंक सुपुर्द ! मिटाकर उनकी आकृति,उनका सारा वजूद! बस एक बात गांंठ बांध कर रख लेना तुम ! चुभ गया हो नश्तर अगर, मिटाना उनका वहम! खोल चिलमन,उड़ा देना हवा में सारे रंजो-गम! छोड़ गलियां पुरानी,नये रास्ते पर रखना कदम! समझा देना खुद को,जानता नही अब उनको कोई ! कट चुकी है डालियां,बेजान जड़ें,मिट्टी सूखी सोई! फिर खोज कर नई मुरादें,सींचना प्यारे नये सपने, सुकून की बारिश में फूटेंगी कलियां,आंगन अपने! उड़ जाना आकाश!,बन तितली उनकी खुश्बू में! … Continue reading »“ऐ मन!”

Bihar ke veer Putra

हौसला वीरों का मुरझाता नही शरीर की कमजोरी से थक कर वीर कभी रुुकता नही, दुश्मन कीललकार से सन सन्तावन के योद्धा,बन,वीर कुंवर सिंह हुये खङे ! अस्सी साल की उम्र में,उठा तलवार अंग्रेजों से भिड़े! बन कर मां का रक्षक,उतरा जब कुंवर जगदीशपुुर में हारीअंग्रेजों की फौज ,1857सिपाही विद्रोह रोकने में! गोलियां बरस रही थीं ,नदी में नौका पर थेकुंवर सवार! लगी जब दुुशमन की गोली, बांह से निकला रक्त धार! घायल थे पर हार ना माने, उठाया कुंवर सिंह ने तलवार! ईस्ट इंडिया कम्पनी थर्रायी,घबड़ाई उसकी हारी सेना! देख कुवर की असीम वीरता आया दुश्मन को पसीना! काट … Continue reading »Bihar ke veer Putra

करवाचौथ

स्नेहमय रंजित अनुपम यह है त्योहारभरा जिस में त्याग- समर्पण- प्यार । पंच तत्व विकसित, दो आत्मा हैं समर्पित,जैसे यह धरती और चंद्रमा इकदूजे को अर्पित! कार्तिक माह के चौथे दिवस को चांदनी बिखेरताआता चांद लेकर तारो जड़ी चमकती चुनरी! अंंजली से पुष्प, पत्र, और जल कर अर्पणहो जाती तृप्त नारी पाकर प्रेम सजन! सफल हो जाता उसका पूर्ण दिवसीय व्रत त्योहार ,करवाचौथ दे जाता स्नेहमय अटूट संबंध अपार ! शमा सिन्हारांची 1-11-23