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शबरी के राम

मंच को नमन। मानसरोवर साहित्य अकादमिदैनिक प्रतियोगिताविषय- “शबरी के राम “विधा-कवितादिनांक- 18-1-24 शबरी के राम रघुुवर की भक्ति करती,श्रमणा बन गई शबरी!भीलकुंवर की बनी पत्नि!भील सरपंच की बेटी! साथी मन ना पहचाना,भायी नही उसे,ऐसी भक्ति! स्वीकार भीलनी ने किया नियती की थी यही मति! छोड़ शबरी को बीहड़ वन में,वह गया देने जीव बली ! मतंग ऋषि ने दिया शरण,मिली शबरी को राम-मणी! “त्रेतायुगमेंआयेंगें प्रभु राम,देेकर दर्शन कृतार्थ करेंगे! वन के इसी मार्ग,भ्राता संग एक दिन वो प्रस्थान करेंगे उनकी सेवा में पुु्त्री समय ना गिनना ना करनातोल !”स्वर्गारोहण किया मुनी ने,देकर संदेश अनमोल। गुरुवर संदेश बना शबरी का नित … Continue reading »शबरी के राम

“मुझे भी नही आता!”

बेटे बहू के घर से बहुुत हड़बड़ाहट हम में चले थे! तैयारी लौटने की विदेश से,पूरी थी पहुंचने केपहले ! किन्तु बहु की इच्छा थी कुछ विशेेष शगुन उठाने की कोई बड़ा ना था,मौका भी था और उसकी मर्जी थी! बेटे ने हवाई जहाज में यात्रा के नियम समझाये। पोते-पोती से हमने भी प्रेेम-भाव बहुत थे जताए ! फिर बैठे चार पहिया वाहन में,सुरक्षा बेल्ट लगाकर । खुश थे हम बहुत,छः महीने की बिदेशी यात्रा पूरी कर! बुनने लगे सपने ,हम क्या क्या करेंगें अपने घर जाकर। “बैैगेे चेक-इन,सिक्युरिटीचेक”पार कर बैठे”जहाज” पर मिले आईंस्टाईन उसी कतार में खिड़की वाली सीट … Continue reading »“मुझे भी नही आता!”

गुरू गोविंद सिंह

“गुरू गोविंद सिंह” सिक्खों के हुये नायक ,मां भारती के गोविंंद बने वीर सुपुत्र ।यशस्वी बन गये पाकर,नौवें वर्ष ही में राज पाठ कासूत्र! पिता इनके नौवें गुरू तेग बहादुर !जिनसे स्थापित हुआ सिख धर्म!समाज की देकर जिम्मेदारी,नेतृत्व दिखाए उन्होंने सुकर्म ! यौवन के पूर्व ही बन गये गोविंद रक्षक नव भारत सीमा के!मुगलों से ले लिया टक्कर,होनहार ने दिखाई वीरता सिद्ध कर के! पगड़ी की लाज बचाई,अपनी मां के दूध का मोल चुकाया,झुकाया ना सिर मुगलों के आगे,पाया शौर्य वीर गति का! अपने चारों पुत्रों को भी मातृभूमि पर किया न्योछावर!पिता गोविंद के कदमों पर चल कर वीरगति पाये … Continue reading »गुरू गोविंद सिंह

“रामु सिया सोभा”

प्रकट भये त्रैलोकपति श्री विष्णु और नारायणी! आसीन हुये सबके हृदय,बने धर्मयुक्त नर-नारी! वाटिका में जानकी ने सहसा देखा रघुवर श्रीराम। मन वही रह गया जानकी का ,चरणों में मिला धाम ! स्वयंवर आये अनेक राजा और लंंकापति नृप-श्रेष्ठ। शिव धनुष “पिनाक” हिला नही,प्रयास हुआ निश्चेष्ट ! ब्रम्हा-विष्णु-महेश रचित विधान,संकट से घिरा रावण हरि हाथों मुक्ति के लिए,सबके लिए रचा रामायण! अखंड सौभाग्य जगाने, सिया ने पूजा शक्ति को! पलक भर देख सिया हार गयीं वहीं अपने मन को! पूर्ण हुई इच्छा पृथ्वी की,पाप के भार से वह उबरी। अखंंड सौभाग्य मिला सीया को,रामदर्शन पाई शबरी! हनुमान सेवक बने,सजाये “रामु- … Continue reading »“रामु सिया सोभा”

आओ चलें अयोध्या

मंच को नमन! मानसरोवर साहित्य अकादमी “आओ चलें अयोध्या नगरी” आओ चलें अयोध्या,चले सिया राम की नगरी!मन रहा रघुुवर त्योहार,”अगर” सुवासित सगरी!आओ चले अयोध्या…..हवन-कुंड सहस्त्र बने,होम करें विशवामित्र-बशिष्ट !प्रसाद सभी पायेगें हवन का “राम हलवा”अवशिष्ट !आओ चलें अयोध्या……दशक पचास ,मिला था इक्ष्वाकु-वंशको अन्याय !वीर भक्तों नें दी जान,पश्चात मिला न्यायालय न्याय!आओ चलें अयोध्या…..हाथ जोड़ हनुमान खड़े,कर रहे शुभ घड़ी अगुआई !पाकर चावल का निमन्त्रण, घर घर गूंज रही बधाई!आओ चलें अयोध्या……आनंदित है दशरथ-कौशल्या-सुमित्रा-केकैई मन!सिता-रघुुवर दरबार सजा रहे लक्षमन-भरत-शत्रुघ्न!आओ चलें अयोध्या…..

जाड़े की धूप

“जाड़े की धूप” मिलती जाड़े कीधूप हमें,काश अपने ही बाजार में! होता इससे सबका श्रृंगार घर के सुुनहरेआंगन में! फिर सबके नयन नही, जोहते बेसब्री से उसकी बाट! कपड़े भी झट सूखते,नही लगती इतनी देर दिन सात! पर शायद!ऐसा सपना कभी नही हो सकता है पूरा! विज्ञान का,प्रकृतीरहस्य में हस्तक्षेप होगा बहुत बड़ा! आज धूप छुु़ड़वाता काम,तब होती है मुुन्ना-मुन्नी की मालिश ! बच्चों को भी करनी होती सोच विचार कर बहुुत साजिश ! तब जाकर बाहर खेलने की,उनकी पूरी होती ख्वाहिश ! अम्मा भी तब कहतीं”सूूर्य ही देगा विटामिन डी पौलिश! यहीं हमारे कपड़े धुलेंगे,तह होंगें सब और सब … Continue reading »जाड़े की धूप

जाड़े की धूप

मिलती जाड़े कीधूप हमें,काश शहरी बाजार में! होता इससे सबका श्रृंगार घर के सुुनहरेआंगन में! फिर सबके नयन नही, जोहते बेसब्री से उसकी बाट! कपड़े भी झट सूखते,नही लगती इतनी देर दिन सात! पर शायद!ऐसा सपना कभी नही हो सकता है पूरा! विज्ञान का,प्रकृतीरहस्य में हस्तक्षेप होगा बहुत बड़ा! आज धूप छुु़ड़वाता काम,तब होती है मुुन्ना-मुन्नी की मालिश ! बच्चों को भी करनी होती सोच विचार कर बहुुत साजिश ! तब जाकर बाहर खेलने की,उनकी पूरी होती ख्वाहिश ! अम्मा भी तब कहतीं”सूूर्य ही देगा विटामिन डी पौलिश! यहीं हमारे कपड़े धुलेंगे,तह होंगें सब और सब सूखेंगे! आज हम सब … Continue reading »जाड़े की धूप

मातृ भाषा को नमन

नमन मंच को। मुुखरित होते हैं जिससे,सबके मन के भाव।मां सा प्यारा रिश्ता उससे ,फैलाता जग पर अपना प्रभाव ! शब्द उसी के, आवाज उसी की,कोई नही है उससे दुलारा! जीवन के सारे अनुभवों की अभिव्यक्ति, नमन उसे है अनेक हमारा! शुभकामनायें।🙏

मचल मचल कर वह बांवरी, यूं बरसने आई है ढक गया नीलनभ भी, धुंध श्याम छवि लाई है। खो गई डालियां, कलियां कोमलांगी झड गई हैं। प्रीत अनोखी, धरा-गगन की, रास रंग की छाई है। कतारों मे चल रहीं,रंगीली जुगनुओं सी गाडिय़ां । सरसराती, कभी सरकती, झुनझुनाती पैजनियां । देखो कैसी रुनकझुनक, मस्ती संग ले आई है । सब पूछ रहे रसरजिंत हो, यह क्यों ऐसे मदमायी है? नांच रहा कोई, ऐसा कौन रंग बरसाई है छुप रहा कोई-पत्तियों तले ना ये जा पाई है गा रहा कोई- यूं राग तरिंगिनी बन यह आई ह रोको न इसके कदम-ले जाने इसे आई पुरवाई है। कडकती बदली से चुरा, श्यामल चुनरी लाई है!

नये घर के आंगन से

क्या किसी ने पुकारा? घर किसे कहते है,मैं सोचती हैैरतअंदाज सजी कोठरिया या गूंजती हसी का साज वह तिल तिल जोड़ता, नये सपने बुनता “हर ईट को मैंनें इन हाथों से है अरजा कल के कष्ट भरे पलों को कफन उढाता गर्व से उठा कर सिर वह अक्सर कहता, बनाया यह महल सबके महल से ऊंचा! कह दे कोई किसी ने धागे से मदद है किया। एक उसके सिवा मेरा हाथ किसी ने नही पकड़ा ईश्वर ने ही सम्भाला,सबने तो मूंह है मोड़ा। देखेंंगे,मैं कैसे शान से हूं अपने महल में रहता ऊपर वाले के सिवा कौन है जो किसी … Continue reading »नये घर के आंगन से