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The Whistling bird

A sweet long shrill whistle followed me Every time I peeped out of the window to see! Surprised I was to find none there to be In search, I strayed through lanes, in hours wee. Lazy air, camly enclosed me wherever I be, I knew not opening this secret lock with key! Confused I was, wondered who could it be! My efforts didn’t reward, betrayal smiled in glee! One over the other thoughts,surmounted in number, innumerable and strange sounded this stranger, As I strode to the road in fog once again it nearer, A fear gripped,I jogged fast in fog … Continue reading »The Whistling bird

तमन्ना

बर्बाद करती है रौनक इसकी,जिन्दगी को नही देती चैन इसकी शख्सियत एक पल को! सुबह-शाम घड़ी से तेज चलते है इसके कदम, आप ना चाहें फिर भी रहती है साथ हरदम! इसका नशा बि

विडम्बना

विडम्बना बांधा था मां यशोदा ने कृष्ण चंद्र लाल कोगोपियों की शिकायत. माखन की लूट को ब्रम्हांड कौ जो बांधे,रस्सी कौन बांधे उसको?विधीका विधान देखो,कुपूत ने बांध मा बाप को! आंख लाचार,पैरों से हुआ मुश्किल चलना!जतन करें कैसे,कठिन है दो वक्त का खाना! उम्मीद रही टूट ,किया शुरू अंधेरे ने घेरना!सब धन लुटाया जिनपर वही करें अवहेलना! बाट रहे ताक,सीखा नही जिसने वादाह निभाना!अच्छा नही किस्मत का,लाचारी की हसीं उड़ाना! (स्वरचित मौलिक कविता) शमा सिन्हाता: 07/01/2024

सौंदर्य

“सौंदर्य” कल तड़के सुबह सवेरे,आया जब नगर निगम से पानी, स्फूर्ति से उठाकर पाईप मैं चल दी नहलाने क्यारी धानी। बोल उठी खिली बेला की कलि”देखो हुई मैं सयानी! मेरी खुशबू पाकर, तेजी से आ रही वह तितली रानी।” “अभी अभी मै खिल रही हूं,प्यास बुझा दो देकर पानी। दो क्षण पास ठहर जाओ,बातें बहुत तुम्हें है बतानी। कौन कौन हैं आशिक मेरे,और मैं हूं किस की दीवानी! मैं सुंदर,मुझमें गुणअनेक ,कहती सहेलियां नई पुरानी!” लगा मुझे ,वह पूछ रही ” क्या तुम सुनोगी मेरी कहानी?” सबके संग मग्न मिल कर जीने का नाम है जिन्दगानी! अपने को सबसे गुणी … Continue reading »सौंदर्य

आंख चुराना

मन को भाता तेरा, गोप बालकों संग खेलना मोहन! आंख चुरा कर,मार कंकरी टूटी मटकी से लुटाना माखन ! बड़ा मनोहर लगता जब मैया लाठी ले दौड़ाती तुझको! छुप करआंचल में, कथा नई सुनाकर ठगता तू उसको! तेरा खेल बड़ा निराला,विशाल पशुधन का मालिक होकर चोरी कर खाता! देेख छवि अपनी मणी खंभें में,झट नई कहानी तू गढ़ लेता! आंख चुराकर तू सबको , तर्क से अपने विवश कर लेता! बछड़े को खूंटे से खोल,पूंछ पकड़ आंंगन में दौड़ाता! घबड़ाई गईया रम्भाती,तब झट उनको दूध पिलाता! देख माधव का श्रृंगार मनोरम,वृन्दावन मस्त हो जाता! नित नये तरकीब लगाकर,उलझाता भोली राधा … Continue reading »आंख चुराना

“प्रगट हुए कौशल्या के राम “

मंच को नमनR V N महिला काव्य-मंच,झारखंडता: 8-1-24विधी- कविता “प्रगट हुए कौशल्या के राम” सहसा उपस्थित हुए ,राम भक्त शिरोमणी वीर हनुमान। उच्च स्वर शंखनाद कर जगाया सबका कुुल स्वमान ! सेवा में रहते सदा समर्पित, हृदयासीन सीताराम काज! उतरा स्वर्ग जमी जैसे,आये काक भुशुंडि और गरुड़ महाराज! लहराई लााल विजय ध्वजा ऊँची,चमका कौशलेंद्र का ताज! गली चौबारे सब महक रहे,लगा जैसे इन्द्रजीत का है साज। पचास दशक उपरांत आया पवित्र,स्मित त्योहार सुहाना, पवित्र अनुपम संयोग बना,चाहते सब दर्शन पाना! सज धज खड़ी अयोध्या, बाट देख रही लल्ला का! अधीरता से पूछ रही”कब दरबार रघुवर का सजेगा?” व्याकुुल शहर निवासी … Continue reading »“प्रगट हुए कौशल्या के राम “

बिडम्बना

विश्व हिंदी सृजन सागरविषय_ चित्र लेखनविधा_ कवितादिनांक_07/01/2024 विडम्बना बांधा था मां यशोदा ने कृष्ण चंद्र लाल कोगोपियों की शिकायत. माखन की लूट को ब्रम्हांड कौ जो बांधे,रस्सी कौन बांधे उसको?विधीका विधान देखो,कुपूत ने बांध मा बाप को! आंख लाचार,पैरों से हुआ मुश्किल चलना!जतन करें कैसे,कठिन है दो वक्त का खाना! उम्मीद रही टूट ,किया शुरू अंधेरे ने घेरना!सब धन लुटाया जिनपर वही करें अवहेलना! लगीआस जिसकी,सीखा नही उसने वादा निभाना! किस्मत को आता बस,लाचारी की हसीं उड़ाना! (स्वरचित मौलिक कविता) शमा सिन्हाता: 07/01/2024

मन का पंछी

मंच को नमन।मान सरोवर साहित्य अकादमीआज की पंक्ति – मन का परिंदाविधा-कवितातारीख-5/1/24 “मन का परिंदा” बड़ा दुलारा है वह मनमौजी, अपनी ही चाल से है वह चलता। इच्छाओं की तह से निकल कर, अचानक ही वह है उड़ने लगता! रहता नित नूतन परिहास में डूबा! भंग शांति कर,वह व्यंंग सुनाता। सिर-चढ़ा वह, कभी बात ना मानता! मन–आँगन में नित नये नांच दिखाता! मुश्किल बहुत है समझाना उसे। उसकी हलचल से दुनिया मचले! पुष्पक वाहन लेकर सर्वत्र वह डोले! कदम बढ़ाये बिना समय को तोले! जीवन भर क्यों ना मानव करे प्रयास, मन का परिंदा कर ना सके अपने बस! सफलता … Continue reading »मन का पंछी

“खामोशी”

रेतीले कैक्टस के पौधे पर एक पुष्प था खिला। अगल बगल के फूलों ने उसे बड़े गौर से देखा! सब अपने साथीयों को दे रहे थे ढेरों शुभकामनायें; छेड़ रही थी”नव वर्ष”रागिनी पेेड़ से झूूलती लतायें! अनदेखा उसको कर, वे लगे झूमने दूसरी दिशा में! “वक्त ना था साथ उसकेअभी!”उसे बतायाअंतर्मन ने! पुकारा खिली पंखुड़ियों को उसने,देख उन्हें प्यार से! छोड़ उसेअकेला, मस्त थे साथ पंख फैलाये हंसनें में। कहा किसी ने,”तू है कांटों पर खिलने वाला रेती पुष्प! हमें देेख!हम रूपहले !सुंदर !तू तो है पत्र- विहीन शुष्क! आंखों में भर पानी,मुस्कान रोक,सिमट गया वह चुपचाप। फिर ना वह बोला … Continue reading »“खामोशी”

अन्तर्मन से आखों की बात !

मिली आज चेतना को मेरी, बड़ी अनोखी एक सौगात! अंतर्मन नेेत्रों को हुई , विश्व देख रही आखों से बात ! बांटने में थे दोंनों तत्पर अपनी अपनी उलझी गांठ! बताया एक ने तभी,”बिछी बाहर चौपड़ की बिसात !” मझधार से दूजा खींंच रहा था नौका ,बीच समुंदर सात! दोनों ही धे उलझे बहुत, खड़ी थी समस्या पात पात! कहा एक ने, “आओ हम ले लें,प्रभू-रचना काआनंद !”, दूसरे ने चेताया”धैर्य से बढ़ना आगे,रख इच्छा को बांध! विशाल आसमान के तारे गिनते, फंस ना जाये तुम्हारे पाद! खो जाता है विवेक जब , बहती बसी-बसाई बस्ती! भांती नही भलाई की … Continue reading »अन्तर्मन से आखों की बात !