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“आंख चुरा कर!”

मन को भाता तेरा, गोप बालकों संग खेलना मोहन! आंख चुरा कर,मार कंकरी टूटी मटकी से लुटाना माखन ! बड़ा मनोहर लगता जब मैया लाठी ले दौड़ाती तुझको! छुप करआंचल में, कथा नई सुनाकर ठगता तू उसको! तेरा खेल निराला, पशुधन का मालिक होकर चोरी कर खाता! देेख छवि अपनी मणी खंभें में,झट नई कहानी तू गढ़ लेता! आंख चुराकर तू सबको , तर्क से अपने विवश कर लेता! बछड़े को खूंटे से खोल,पूंछ पकड़ आंंगन में दौड़ाता! घबड़ाई गईया रम्भाती,तब झट उनको दूध पिलाता! देख माधव का श्रृंगार मनोरम,वृन्दावन मस्त हो जाता! नित नये तरकीब लगाकर,उलझाता भोली राधा को! … Continue reading »“आंख चुरा कर!”

” Tryst with the Sun”

Fast, I saw him,spreading his mighty traces. And called him aloud as he smeared pastel red rays. “Don’t you ever feel lonely in that big wide space? I see no company treading with you at your pace! Your schedule is strange, peculiar is Your way! You move not with planets, they dance on your play! “ “Is it so?”He gaped at me blinking in surprise . But I never felt like what you today surmise ! O,my friend, I never was alone, nor will I ever be! Perhaps you see not that power stably holding me! All my shine, the … Continue reading »” Tryst with the Sun”

“Pearls of compassion “

Why is there always a complaint,”I am hurt!” When except you and me,there’s no third? We are the closest yet we forget to see! Your perceptions are as true,as my thoughts and me!” Let’s start once again anew, moredetermined ! Leaving behind old obstacles that thwarted! Let past no more remain in our pleasant present ! Let’s both accept and console what we lament! “Breathe compassion forcefully into clouded sky! Get drenched in their soothing rains as we fly!”

“ओ अश्रृंखल बादल!”

मकर रेखा से उत्तर दिशा में कर रही थी अविका गमन, तभी बादलों के बीच पहुंच, करने लगा रवि रमण ? बसंत आया ही था कि नभ पर हुई शयामला रोहण! “हितकर नही होता इस वक्त मेघों का जल समर्पण !” कह उठी धरा उठा हाथ,अपनी हालत श्यामल मेघ से। पर वह उच्चश्रृंखल करने लगा मनमर्जी बड़े वेग से! तेेज हवा कहीं,द्रुत पवन बवंडर,पड़ने लगे तुफान संग ओले! “अरी,ओ हवा क्यों आई तू बन सयानी सबसे पहले? तेरे कारण ढका मेघ ने,आदित्य को,ओढ़ा कर दुशाले! बरबस बिजली को चपल चमकना पड़ा सबके अहले! आ रही थी खेलने सरसों , नन्ही … Continue reading »“ओ अश्रृंखल बादल!”

होली की अनेक बधाई और शुभ कामनाये!

अब मैं बच्ची नही रही। समय ने अनेक परिवर्तन किए पर फिर भी यह मन बचपन की यादों के साथ होली की हुड़दंग भी अभी तक समेटे हुए है,जिन्हे वह उपयुक्त मौकों पर चलचित्र की भांति समक्ष प्रस्तुत करतारहता है।मुझे आज भी याद है वो सब तैयारियाँ जिन्हें हम होली के बहुत दिन पहले से करते थे।पक्के रंग की अच्छी ब्रांड की पुड़िया अलग रखी जाती थी।जले कगज और तेल मिलाकर पोटीन बनाया जाता।कौन क्या काम करेगा ,सबकी ताकत और उम्र के अनुसार सुपुर्द किया जाता था।किसने कितनी डांट खिलवाई, इसी आधार पर पोताई और रंगाई का हिस्सा तय होता … Continue reading »होली की अनेक बधाई और शुभ कामनाये!

Children are the soul of the world.Their intellectual ,social and psycological interaction creats the true weave of our future .Generally it is marked that the treatment they receive builds their personality.If they are treated with love and honor they develop the same response for people and their surrounding too.Observing a child will make this obvious. Rich or poor a child has no understanding of the difference between himself and other animals, birds or other humans;he has no idea of restrictions that are introduced to him,as that of cast,color ,creed ,region religion ,gender,age,status ,income…..He is a perfect humanbeing then.He holds only one relation which is of pure love and honor for everyone and everything .Then what happens to that child as he grows ?Why does he become extremely prejudiced ?why does his mindset suddenly change?There is tremendoes change in his thoughts, behavior ,opinion ,action. ..

OkWho,Why ,When ,where and what factor influences their innocent behavior?How is their response and opinion so drastically changed?It is utterly important to find out and redeem them because they are the secrets of peace and prosperity of our society and surrounding.Today there are several concerns that are disturbing the social -psycological weave of the whole human race.They need a strong consolidated mature effort of every adult.Time is short. Are we adults responsible for it?Perhaps……We need to seriously ponder over it and without delay step forward to restore the same love and honor for each other as that of a child!

लेकर श्वास साथ ,संग मिट्टी की सुगंध ,निर्मल जल धारा पोषित ,एक डाल पर खिलना ,एक हवामें पेंग मारना ,हर अनुभव साझा करना,फिर सबको समेट करयादों की गठरी बनाकरभविष्य खुशियों से भर देना,यही है मित्रता की सौगात। (स्वरचित एवं मौलिक)शमा सिन्हा4.8.24 Happy Friendship Day !

मंच को नमनमान सरोवर काव्य मंच।शीर्षक -यह कलियुग है जनाबतारीख -१२.१२.२४विधा-कविता          “यह कलियुग है!” यह कलियुग है जनाब, चलता जहां अनियमितता की शक्ति।, लूट-पाट चोरी का है बोलबाला और गुंडों की दबंगई। धन के रंग से फर्क नहीं पड़ता,धन वाले पाते इज्जत। लिबास पहन कर सोफीयाना, सीधे लोगों को करते बेइज्जत! गरीब की होती एक जाति, उसे मिलती छूट खाली पेट सोने की। चारित्रिक उत्सर्ग का मापक है गाड़ी,गहना और हवेली । बेटी बहू और पत्नि में अब रहा ना कोई फर्क। गलबईयां डाले सब घूमें साथ,आवे ना किसी को शर्म! मात पिता के धन पर,बच्चे जमाते अपना गद्दारी … Continue reading »

लेखनी का संसारभाव प्रतिबिम्ब चित्र आधार शब्द:बेबसी की जंजीरदिनांक -११.१२.२४ ये कैसा दिया है पंख मुझे ,कैची धार बीच जो है सजे?बंधन छोर मुख बीच फंसे,दोनों का घातक खेल चले! भूख अपनी मिटा नहीं सकती,बातें अपनी कह नहीं सकती।खुली ज़बान तो होऊंगी परकटी,आप ही दो बबूल बीच अटकी! लाचारी भरी है  मेरी मनोदशा,काल-कलुषित कर नारी की दशा।पद-पेट,तन-मन , चारों को फंसा,व्यक्त कर रही दुराचारियों की कुंठा! क्या न्यायिक है यह आचार समाज काबांधना था यूं अस्त्र बीच जीवन सपनालवण चटा,लिया ना क्यों प्राण उसकाउठता ना कभी प्रश्न उसकी स्वतंत्रता का! स्वरचित एवं मौलिक रचना। शमा सिन्हारांची, झारखंड। दिनांक -११.१२.२४

     “उम्मीद का हश्र “

क्यों बार बार इस उधेड़-बुन में रहती हूं। नई उम्मीद के साथ मैं राह निहारती हूं । इस बार शायद मेरा हाल तुम पूछोगे। दुखती मेरी रगों को तुम सहलाओगे। हाथों में लेकर हाथ हृदय से लगाओगे! मेरी शिकायत तुम आज दूर कर पाओगे । हर बार अपनी ज़िद पर तुम अड़े रहते हो! हर बार यूंही मेरी आरज़ू को मात दे जाते हो! मेरी तकलीफ़ तुम पर बेअसर हो गई है ! क्यों वो,अपने वादे तुम्हें अब याद नहीं है? मेरी पुकार तुम पर अब असर नहीं करती? ऐसे ही मिटा गये तुमने सारी हस्ती हमारी ! इतनी जुदाई, फिर … Continue reading »     “उम्मीद का हश्र “