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प्रशंसा

              कल तड़के सुबह सवेरे,आया जब नगर निगम से पानी। स्फूर्ति से उठाकर पाईप मैं चल दी नहलाने क्यारी धानी। बोल उठी खिली बेले की कलियां”देखो हुई मैं सयानी! मेरी खुशबू पाकर, तेजी से आ रही वह तितली रानी।” “अभी अभी मै खिल रही हूं,प्यास बुझा दो देकर पानी। दो क्षण पास ठहर जाओ,बातें बहुत तुम्हें है बतानी। कौन कौन है आशिक मेरे,और मैं हूं किस कि दीवानी! मैं सुंदर,मुझमें गुणअनेक ,कहती सहेलियां नई पुरानी!” लगा मुझे ,वह पूछ रही ” क्या तुम  सुनोगी मेरी कहानी?” सबके संग मग्न मिल कर जीने का नाम है जिन्दगानी! अपने को सबसे गुणी … Continue reading »प्रशंसा

“आशीर्वाद “

मन के सद्भावों पर आरूढ़ ,करता बल संचार , असमंजस में असमर्थ की करता है यह बेंड़ा पार! मात-पिता- गुरू- देव से अविरल होता यह संचार शिरोधार्य कर लेता जो शीश , वह जाता वैकुंठ पार! फल फूल रहा वह मानव,यह धन जिसके पास है निर्धन बन जाता बली,जिसके कर्मो में इसका वास है! लक्षमन चले भूल इसे जब,शक्ति बाण से हुये घायल वरण कर राम नाम शक्तिबाण, इन्द्रजीत को किया कायल! सीमा पर जाता सैनिक प्रथम रखता शीश पूज्य सम्मुख सफल राष्ट्रसेेवक वह बनता,अर्जुन सा लक्षयोनमुख ! जीवन का हो कोई अवसर, पर्व सदा इसका ही मनता, सुख सौभाग्य … Continue reading »“आशीर्वाद “

“नमस्कार”

मिलन भर जाता है इसकी विनम्रता के मिठास से, सुखमय बनती है सभा सभी,इसके ही सौगात से! डूबता है हृदय हमारा विनीत प्रेम के उद्गार में, झुक जाता है शीश सभी का स्वागत के आभार से! अग्रज -अनुज सभी , अति उमंंग आनंद- विभोर हैं होते, विलक्षण इसके अनुुराग सेअपना पक्ष भी सभी हैं भूलते! सुन्दर असीम यह है अभिवादन, स्नेह सदा है उपजाता, कितनी भी हो विकट समस्या शान्ति चहुंओर ओर है फैलाता! आयुष्य मिला पाण्डवों को,शीश झुका चरणो में जब, रुक सके ना भीष्म पितामह,दियाअखंड सौभाग्य आशीश तब! मात्र यह संकेत नही, एकीकृत करने वाला अभियान है, स्नेहमय … Continue reading »“नमस्कार”

“चांदनी रात”

पग पग मोती लुटाता देखो,आया बन कर सजीला बन्ना चांद गांठ जोड़ ठुमकती आई है दुल्हन नखरीली चांदनी साथ! रात्री ने नभ की नीली चुनरी पहनाई उसमें बुनकर तारों का साज, चार पहर रस्म निभाकर, बन्ना-बन्नी होंगे इक दूजे के आज ! लेकर शहनाई बैठा चकोर, दे रहा चेतावनी वह सोमदेव को, “रूप प्रिया का इतना ना निरखो, कि नजर तुम्हारी लग जाए उसको!” पपीहा रहा पुकार मीत को, नांच रही सुुनकर हवा सुरीली तान , मधुर मिलन की आस जगाये,थाम लिया है अनंग ने बाण! शीतलताअमृत वर्षा की, लेेकर आई शरद् पूर्णिमा बन सौगात, चांंदनी के आगोश में ही, … Continue reading »“चांदनी रात”

“आशीर्वाद “

महिमा नापी ना जा सकती,ऐसा अमोल है होता आशीर्वाद, असंभव को भी संभव करता,पाकर इसे सभी होते कृतार्थ ! देव,ॠषी ,नर और असुर, इससेे सभी बलशाली हैं बनते, जागृृत करती यह शक्ति अनूढी,अतुुल वीर हम बन शत्रु पछाड़ते! करती पूर्ण सबकी कामना ,शगुन भी इसमें है नित दर्शन देते, “इक्ष्वाकु-वंशज आशीष”जैसे विभीषण को लंका नृप हैं बनाते! आशीर्वचन श्री राम का पाकर लक्षमन ज्यों हुए सनाथ, रघुुवर नाम उच्चारित तीर अविलम्ब हर लिया प्राण मेघनाथ! काज सम्पन्न होते मंगलमय , देते जब अग्रज हृदयाशीष , शुभदायक अर्जन को आशीष,अनुज रखते चरणों में शीश! हनुमान बने बली, शिरोधार्य कर पवन अंजना … Continue reading »“आशीर्वाद “

मर्यादा

विनीत समाज में बनती जो व्यवहारिक सम्मान की सीमा! विचारों को लोकलाज से संयमित करने वाली वो शिक्षा ! दहलीज पर ही रोक दे जो आगे बढ़ते उत्श्रृंखल कदमों को! परिभाषित करे श्रीराम वनवास और सीता के तिनके को! परिवार की लज्जा का रक्षक, पहनाये कवच जो शील को ! प्रतिष्ठा का रखे देेश-मान,दिशानिर्देश दे हर योद्धा को! रंग गेरुआ दे कर,शोभित करे सामाजिक कर्तव्यों को! आदर्शो की माप प्रदान कर, शिकस्त दे हर लाचारी को! पुरुषत्व का आधार बने, स्त्रीत्व की जो लोक लाज हो! श्रेष्टता के रंगों रच डाले मााव-मन -वचन और कर्म को! विशवास सूत्रों से बांध … Continue reading »मर्यादा

MY FAIRY DOLL

My little honey child,you are so bright and beautiful, I know not why your grants are generously Bountiful! You stand,You turn you crawl you walk and tumble, You hum,you sing,you speak words as all in jumble! Language you speak is not native,rather to me unknown. Alike nature’s blooms in wildernesses from plants not sown! Each moment seems to transfer an inspiring dream I want to store all but lack large memory frame ! “Tell me, O fair lady,name your hometown of innocence Who is your music teacher that taught you musical cadence?” Your concepts are ethereal and tempo proves unique, … Continue reading »MY FAIRY DOLL

“मंगल सूत्र “

मंगलमय आशीष उपहार लेकरकरता सदा प्रवाहित प्रेम सागरहोता पूर्ण श्रृंगार इसे ही पाकरमनमीत पहनाता इसे पिरोकर! निभता साथ जीवन भर निरंंतर ,जोड़ता दोनों के मन का अन्तर।रहते सदा दोनों एक दूजे के होकर ,पनपता प्रिय-प्रिया स्नेह बंध कर! यज्ञसूत्र यह है पवित्र सम्बन्ध कारक्षा करता यह उसके प्राण नाथ का!मंगल करता सपरिवार यहआपका!अखंंड बनाता,सुहाग हर नारी का! बड़े प्रेम से इसे सब प्रतिदिन पूजतींसिंदूर रोली का प्रथम टीका लगातीनित इसके आगे हैं माथा टेकती,सुुहागचिन्ह को, प्रेम से वे जोगती! शमा सिन्हा6-12-23

“सादगी”

माथे पर सिंदूरी बिंदी ,होठों पर हल्की सी हंसी,बहुत कुछ बोल जाती है उसके श्रृंगार की सादगी! उदित भास्कर चमकताहै बन उसके सुहाग की बिंदी,लगा जाती है चार चांद उसकी, सादगी की खूबसूरती! खुशी के मौके पर जब व्यस्त खुद में सब हो जाते है,ध्यान अपनी ओर खींच लेती है,उसके रुप की सादगी! रखते हैं जब मचल मचल कर सब अपनी मांगें,बिन बोले ही बंया कर देती है उसकी मूक सादगी! कृष्ण की बांसुरी सी मोहक खिलखिलाती उसकी है हंसी!बिखरा जाती कोमलता हरश्रृंगार की, उसकी सादगी! रौशन करती है महफिल का हर कोना उसकी उपस्थिति ,बहुत चैन और सुकून से … Continue reading »“सादगी”

“यात्रा”

कहो सखी,करूं बात मैं किस किस यात्रा की? क्या गीता के सात सौ श्लोकों में अर्जित ज्ञान की? या मां के आंचल में दुनिया से छुपकर अमृतपान करने वाली? या बालपन की दौड़ती भागती,छिपा-छुपी का रास्ता ढूढ़ने वाली? अथवा विद्यार्जन पथ पर अनेक कोशिशों में जूझती जिन्दगी? क्या प्रेम के झूले पर मीत संग, बिताए अंतरंग पल की गिनती? या भोजन वस्त्र और आवास के बीच लुटाए समय से विनती? या घर परिवार और बच्चों में बटीं वह व्यस्तता की अर्जी ? करुं कैसे व्याख्या थके हुये कमजोर शरीर के हड्डियों क मर्जी ? या स्मृति पट से निकाल दिवंगत … Continue reading »“यात्रा”