प्रशंसा
कल तड़के सुबह सवेरे,आया जब नगर निगम से पानी। स्फूर्ति से उठाकर पाईप मैं चल दी नहलाने क्यारी धानी। बोल उठी खिली बेले की कलियां”देखो हुई मैं सयानी! मेरी खुशबू पाकर, तेजी से आ रही वह तितली रानी।” “अभी अभी मै खिल रही हूं,प्यास बुझा दो देकर पानी। दो क्षण पास ठहर जाओ,बातें बहुत तुम्हें है बतानी। कौन कौन है आशिक मेरे,और मैं हूं किस कि दीवानी! मैं सुंदर,मुझमें गुणअनेक ,कहती सहेलियां नई पुरानी!” लगा मुझे ,वह पूछ रही ” क्या तुम सुनोगी मेरी कहानी?” सबके संग मग्न मिल कर जीने का नाम है जिन्दगानी! अपने को सबसे गुणी …