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On Nishu ‘s Birthday, 5.12.23

A very happy birthday to our Nishu! May the Almighty bless you with health and satisfaction always 🙏 “Remembering you lovingly!” This day is so auspicious, it brings gifts ofmany loving memories ! Full of joy were your childhood pranks , your Papa and I eternally cherish ! Those days are gone but its remembrances are alike sweet cherries 🍒 Recollecting a few, I still see plates, heaped with Saraswati ji’s berries! We walked long distances collecting from “pandals” sweet puja savories! In weather hot,you returned from school ,in shirt wet perspiring. And waited for me to wipe with towel, … Continue reading »On Nishu ‘s Birthday, 5.12.23

“पिता”

“पिता” गोद लेने को उसे,देखा था मैंने सदा बहुत मचलते,जन्म-स्वास्थ्य-उपचार पश्चात मैं थी मातृ-तन सट के! जुटी नाल ने कर दिया था स्थापित रिश्ता जन्मदात्री से,समझ ना पाई, कैसे स्थापित हुआ सम्बन्ध उसका हमसे! सदा वह निहारता हमें, कभी दूर और कभी पास से!गूंजती हमारी ऊंची किलकारियां, उसके अंक समा के! सुबह और शाम ही होती थी उसकी मुलाकात हमसे,किंतु बहुत व्यग्रता से, इंतजार हर पल हम उसका करते! अक्सर उसे अपनी अर्जी आमदनी , मां को देते हमनें देखा,दूध-दही,अन्न लक्ष्मी से समृद्धी सदा घर में भरते पाया! विद्यालय दाखिला भी उसने बहुत उत्साहजनक दिलाया!“विद्यावती भव!आयुष्मान भव!”आशीष से हमें नहलाया! … Continue reading »“पिता”

“अहंकार “

सर्वशक्तिमान, जब स्वयं को समझ लेता है इंसान ,उत्पन्न होता है अहंकार और विकृत होता है स्वमान! होती नष्ट समझदारी,मिट जाता मानव सम्मान,प्रतिपल तब करता वह अपनी मूढ़ता पर अभिमान! वाचाल बन कर,करता सिद्ध नासमझी का सिद्धांत ,छोड़ गुरु से पाई सुशिक्षा, स्वरचित गड्ढे में गिरता कालान्त! गर्भित बुद्धिहीनता उसकी करती ना कभी किसी का सम्मान ,हीन दृष्टि से जग देखती,सबका करती घृष्टतापूर्ण अपमान ! अपने मनोभाव श्रेष्ठ समझता ,बोता सदा फसल नफरत की,छूटता समाज और साथी सब,जड़ रिश्तों की खोखली होती ! जैसे विशाल ताड़ का ऊंचा वृक्ष अकड़ता पाकर फल खजूर ,शोभा अपनों की घर ना होती, उससे … Continue reading »“अहंकार “

खिलौना”

देखते तो सभी हैं,खिलौने को खिलौने से खेलते,भूल जाते सच्चाई ,बीच का फर्क नही समझ पाते! बंधी होती है एक की डोर आकाश पार,दूजा निर्जीव किंतु लुभाता दिखा रंंगीनआकार! एक स्वत्: दिखाता भावों की प्रधानतादूसरे को कृत्रिम चाभी देकर चलाना है पड़ता! भूल कर सरताज परमपिता का साम्राज्य वह हंसता है,वह जड़ मूर्त कृत्रिम खिलौना पाकर मनाता त्योहार है! आदेश उसके विस्मृत कर रहता यह मौनअचेत,भली वह आकृति,उंगली के इशारे पर चलती सचेत! अतुलनीय है ईश्वरीय समृद्धि के पुरस्कृत गुण-विधान,भूूलकर जिन्हें मनुष्य कर नक सका विवेक पूर्ण पान! बना बौद्धिक विवेक विशेषज्ञ, प्रभू ने भेजा तुझे धरती पर,वाह रे मूढ़ … Continue reading »खिलौना”

“नया सवेरा”

गहराते आकाश पर छिटकने लगती है लाली!फूटने लगता है उजाला,चीरकर रात्री काली! समस्त नभ में गूंंजता है परिंदों का कलरव,नीलाभ हो जाता है गतिशील शीतल अरणव! धरा कर सर्वस्व समर्पित बन जाती मूूक दृष्टा,चल पड़ता मनुष्य सिद्ध करने अपनी श्रेष्ठता! इच्छा और अभिलाषा की मचती धराशायी प्रतियोगिता,बिदा होती सुख-शांति,देकर सिर्फ असीमित व्यथा! सम गतिमान, सप्त अश्व रथ आरूढ़ सूर्य पथ चलता ,सत्यार्थ भूले मनुष्य को माया में फंसा देख वह हंसता! बीत जाते यूंही तृष्णा लिप्त काल के आठों पहर,उचटती नींद,अतृप्त अभिलाषा न रोक पाती सहर! लिप्त रहता वह जरूरत से ज्यादा जमा करने में,चला जाता आकर नया सवेरा उसकी … Continue reading »“नया सवेरा”

“मेरी नई समझ”

देख कलआई, मैं एक साथदो अजूबे दृश्य।दोनों ने ही दर्शाया विस्मृत पुराना विलक्षण सत्य! समृद्ध जश्न का माहौल था,आयेअतिथि थेअनेक!दूजे मेंअगल-बगल के थे पड़ोसी, सब मस्त दिलफेंक! एक सभा उन अमीरों की थी, पग-पग पैसे फेंक,इनकी बात अलग थी,हंस मिल खाये रोटी सेंक! धनिक चेहरों पर छाया था अकारण हीआक्रोश !पर इनकी मस्ती अनंत बनी,सब थे आनंंदगोश ! उनके वर्ग अलग अलग थे,वृद्ध-युवा-बालक!ये मेहनतकश दिलवाले सभी थे खुशी के चालक ! महसूस करने को बस, नायाब एक तथ्य था मनोहर!बच्चों की टोली, दोनों वर्ग में अलग ना हुई क्षण भर! “हँसते खेलते,लड़कर- मनते”,व्यस्त थे पल पल!बिछड़ने का आदेश सुन,रोने लगतींआखें … Continue reading »“मेरी नई समझ”

“उम्मीद का जादू

पूरी होती दीखती जब आस,क्षण में आ जाती खुशी पास! अर्से से रुका अगर जटिल काम,उम्मीद लगाती शंका पर विराम! कभी ये क्षणिक ही देता है आराम ,फिर भी रौशन हो जाती है शाम! व्यथित चित हो जाता है तब शांत,सीमित होकर बहता सागर प्रशांत! अक्सर चलंत होती है यह शांती,किंतु इसके उजाले से मिटाती भ्रांति! एक ठंडक मन बुद्धी में है उभरती,जगा आस वह कटु वेदना है हरती! उम्मीद पर ही बढ़ाता कदम है,जग,हौसला देती,पूरे करने के सपने अचानक! शमा सिन्हा28-11-23

” प्यार का बंधन”

पुकारो प्रेम से ,कहो ना उसे,बंधन!वह तो बना है मेरे हृदय का स्पंदन !मासूमियत गर्भित वह महकता चंदन,करता मन जिसका प्रतिपल वंदन! वह पास रहे या हो कितना भी दूर ,गूंजती रहती उसकी तान सुरीली मधुर,धड़कती श्वास में बसे हैं उसके ही सुर,मेरा जीवन बना जैसे राधा का मधुपुर! क्या कह कर यह रिश्ता मैं समझाऊं?प्रतिपल साथ मग्न जिसका मैं निभाऊं,“खुशियां उसके चूमें चरण!”मै गीत यही गाऊं,और तुझ पर सर्वस्व न्योछावर कर जाऊं! ना इच्छा,ना अधिकार ,ना है कोई कामना!बस हम रहें जहां भी यह रिश्ता सदा रहे बना!है विश्ववास,यह साथ रहेगा सबसे अपना,तुम प्यार हो! बंंधन नही,मीत मेरे मनभावना! … Continue reading »” प्यार का बंधन”

I saw you,in green bushes, appear as tiny dots,

On apex of those stems in plants of pots! Enclosed soon,you became in spiky silk sepals, Then those little moons peeped as fair petals! A magic! as His strokes blessed you appear, Beyond were reasons of His artistic action’s gear! “How did you chose their color ,I wondered, Each hued sequentially ,and equally favoured! Your first appearance percieved as snowy pearl, Stably studded,in breeze, they did swirl! Now and then,every hour,impatiently I ran to see, As your speckless frock layers, opened in glee! Morning passed they gazed around wide sky, Many quizzez echoed in mind,for reasons selfishly sly! Sun strode … Continue reading »I saw you,in green bushes, appear as tiny dots,

Eyes are conveyors most true

express all feelings inwardly bru Accepting and returning in liu Opening vents when pain doth sue! None need to speak more words smash others with edged swords It holds experiences with records Empathizing sensitively it prods! It speaks without shredding part, leaves on cheeks,dews of untold thwart ! They smile expressing each bit of joy, And close when they avert or coy! Its iris plays mischief, a little boy. Chances cleverly, quits with tactic ploy! Holds no tools yet aptly on call,is laced, Tries tricks tactfully when hurdle faced! leaves no clue for observers to be traced, Closed are its … Continue reading »Eyes are conveyors most true