Recent Posts

“जरा बचके!”

हुआ समय मिलन सूर्य -संध्या का,तारों को बांंहों में समेट,छा रहा अंधेरा।“जरा बचके रखना कदम मेरे सजना!”दे रहा आवाज, दूूर से मल्लाह नांव का। पता नही है दूर कितना अपना वह किनाराभला यही,मध्यम धारा के संग बहते रहना!“जरा बचके दूर,नदी के भंवर से रहना!पतवार पकड़,दिवास्वप्न में तुम ना खोजाना!” यह सफर है,बस हिसाब लेन-देन का,“जरा बचके करना! है व्यापार कर्म का,यह रिश्ता है बस अधिक-शेष गणना का!बेखबर!फिसले ना यह अनमोल नगीना सस्ता!!!”

Where do I go?

Wherefore fruitlessly treading in speed toward? Which direction does destiny put my feet forward? Reasons I know not,unless your powers release! A confusion hails whether I will get peace Its long mind yearns for soothe,O lord! Woven with string in your vyjanti chord With the flute fondly touching your loving lips Empowering my master of all mastering skills! A realisation charming fills me with surprise Let on me, fall your blessed wide wisdom Grant just a tiny place in your kingdom ! Within your divine Palace garden door Happily I ‘ll sweep its vast flowery floor In conversation with those … Continue reading »Where do I go?

Forwarded/4.9.23

..┍──━────┙◆┕──━────┑✮ ~ स्टेट बैंक की कहानी ~ ✮┕──━────┑◆┍──━────┙ज़रूरी नहीं किपापों के प्रायश्चित के लिएदान पुण्य ही किया जाए. स्टेट बैंक में खाता खुलवा कर भीप्रायश्चित किया जा सकता है. छोटा-मोटा पाप हो, तो बैलेंस पता करने चले जाएँ. चार काउन्टर पर धक्के खाने के बादपता चलता है, किबैलेंस …. गुप्ता मैडम बताएगी. गुप्ता मैडम का काउन्टर कौन सा है ?ये पता करने के लिएफिर किसी काउन्टर पर जाना पड़ता है. ❗ लेवल वन कम्प्लीट हुआ, ❗यानी गुप्ता मैडम का काउन्टरपता चल गया है, लेकिनथोड़ा वेट करना पड़ेगा, क्योंकिमैडम अभी सीट पर नहीं हैं. आधे घंटे बाद चश्मा लगाए, पल्लू संभालती … Continue reading »Forwarded/4.9.23

ऋतुु-राज बसंत

ओऊम। प्रिय पाई,एक स्वरचित कविता भेज रही। शायद यह तुम्हारे काम आये। बसंत ऋतु फाल्गुन और चैत्र दो महीने रहता है।फाल्गुन, वर्ष का अंतिम माह है और चैत्र वर्ष का प्रथम माह।बसंत से हिंदू वर्ष आरंभ भी होता है और शुरू भी।इसीलिए बसंत ऋतु के वर्णन में दोनों को सम्मिलित किए हैं।मां “ऋतुओं का राजा बसंत “ ऋतुराज बसंत जब धरा पर आता ,मन सबका मयूर बनकर नाचता! धरती की चुनरिया नवरंगी हो जाती,बागों में फल-फूलों की कली चटकती! पत्तों में छुुपी कोयल पेड़ों से कुहुकती ,डालों को फल से भर जाने को कहती! खेतों से सोना तब सबके घर … Continue reading »ऋतुु-राज बसंत

करते क्यों हम प्रार्थना

नाम हम लेंगें जब लगातार कभी तो आयेंगें वो थक हार! कर ना सकेंगे वो कोई बहाना, ना देख सकेंगे भक्त का रोना! इसलिए ही हम पुकारते लगातार ! कुंती ने यही कृपा चाहा एक बार कृृष्णजा रहे, हस्तिनापुर के उस पार । क्फफ मेरे धीरज को तोड़ेंगे कितनी बार

जुनून

नशा सा उसपर हर पल छाया है रहता ,किनारा बहुत पास है उसे यूं लगता,हवा में वह अनेक लकीरें यूं डालता ,जैसेअपने सपनों के महल काआकार हो खींचता! कहते हैं सब, वह अब होश में नही रहता,कभी किताब कभी प्रयोगों की बांतें करता,आकांक्षी है वह नभ से भी ऊचें पर्वत का,उसकी सांसों में है जुनून नये किनारे का! परवाह नही उसे लोगों की बयानबाजी का,मंजूर है मिलनेवाला,उसे हर कांटा रास्ते का,जला चिराग,मिटाया अंधकार अपनी रात का,दिया नाम जुनून को अपने, जिन्दादिली का! शमा सिन्हा2-8-23

“गिले शिकवे”

मेरा छूट गया लम्बा उससे था साथ,जुड़ा था जीवन पल पल जिसके पात,छुड़ा कर चला गया अचानक वह हाथ,लेकर संग, गिले शिकवे की सौगात ! होती थी शिकायत जब कोई था सुनता,मेरे मन की आहट को वह पल पल पढता,आंचल मे चाहतों की खुशियां था भरता,हर पल इर्द-गिर्द था साया उसका रहता! दूरी उनसे बन गईअब है इतनी,लिपटी रहती जिन्दगी से सांझ है जितनी!रहती थी शिकायत उनसे मुझको बहुत,ना अब मिलेंगें वो मुझसे,ना उन तक मेरी पहुँच! ढूंढ ढूूंंढकर बहाना,करती थी शिकायत,रोज ही उन्हें देती थी मैं कड़ी हिदायत ,मुस्कुरा कर,करते थे जाहिर अपनी चाहत,शिकवे को लगी नजर,अब कहां वह … Continue reading »“गिले शिकवे”

मिलने से डरता हूं

दिन अनेक बीत गये मेरे वादे को रहा नही कोई कहाना कहने को ना है हिम्मत ही सच्चाई बंया करने को टूूट ना जाये शीशा,थमाया जो हांथों को। दू क्या साक्ष्‌य सच्चाई बताने को, उनके पास है वजह मुझसे रूठने को वो आये होसले से मिलने मुझसे मिलने को, पुरानी याद नहीं काफी सुलझाने को! है प्रश्न बहुत पास उनके पूछने को, शब्द बने मूक मेरे जवाब देने को, जानता ना था वो स्वीकारेंगे मुझको , देर हुई बहुत मिलने से डरता हूं उनको!

“मिलने से डरता हूं!”

कई दिन बीत गए निभाया नही वादे को,रहा नही कोई बहाना अब उनसे कहने को,उनके जुनून के आगे हिम्मत नही बयां करने को,डर है टूटे ना शीशा,थमाया उन्होने जो मुझको! दूं क्या साक्ष्य उन्हे सच्चाई समझाने को?पास है उनके वजह अनेक,मुझसे रुठने को,वो आये थे बहुत हौसले से ,मुझसे मिलने को,यादों का वास्ता है नही काफी सुलझाने को! होंगें प्रश्न बहुत पास उनके ,मुुझसे पूछने को,शब्द मेरे हुये रुसवा,जुंंबां चुप जवाब देने को,जानता ना था,वो स्वीकारेंगे,मेरे हर हालात को,देर हो चुकी इतनी,”मिलने से डरता हूं” उनको! शमा सिन्हा12-7-23

“मोक्ष और मुक्ति”

ना चाहिए मुझे तुमसे अब ,मोक्ष !और ना चाहिए तुमसे कोई मुक्ति!देना ही है तुम्हे तो दे दो ऐसी भक्ति,अपने चरणों की कृष्ण तुम आसक्ति! किसी और को अब नही है पाना,सारी चेतना तुम में समाहृत जाना!बिनती एक,जब भी बुुलाऊआना,तुमसे ना है मुझे कुछ और मांगना! हर उपलब्धी है तुम में ही समाई,गवांयां है मैने जन्म निर्रथक कई,माया ने फांसा मुझे,दिखा स्वप्न कई!मैं मूढ़,अब जीवन-लक्षय समझ गई । शमा सिन्हा6-7-23