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अच्छा लगता है

अच्छा लगता है सुबह शाम की तफरी। जबरदस्ती,पैर तलाशते हैं अपनी हस्ती।। छुप कर बगल से जब चंचल हवा है गुजरती। छूकर तन मन को, वो व्याकुल सा कर जाती।। लगता है वे मुझे अपने संग उड़ा ले जायेंगी। मुस्कुराते चेहरों से कभी भेंट करायेंगी।। कभी करूणा भरी तस्वीरें मुझे दिखायेंगीं। मेरी ज़िन्दगी कैसी हो सकती, बतायेगी।। मुझ जैसे अनेक राहगीरों से मुझे मिलायेगी। चेहरों तले छिपी उन गहरी बातों को बतायेगी।। हवा के साथ जो बगल से मेरी निकल गये। उड़ते बालों ने जिन्हें उलझा रखा था कैद में।। अच्छा लगता है जब तफरी में होता है परिचय । … Continue reading »अच्छा लगता है

मंच को नमन।

लेखनी रचना का संसार दो दिवसीय आयोजन दिनांक -९.८.२४विषय -काव्यविषय -घर की चौखट ‌घर की चौखट हमारे लोक- लाज और सुरक्षा को समायेउठते हर कदम को सबके, दिशा जो दिखाये।। अआशा और निराशा में रौशनी जगमगाये।लौटते पथिक को अपने आगोश में बसाये।। जोड़ कर सारे रिश्ते घर की ज्योति जलाये।इस पार से उस पार तक की दूरी जो मिटाये।। मायके और ससुराल के बीच का फर्क समझाये।थाम कर धड़कन, विह्वलता पर जो रोक लगाये।। एक निराकार, सशक्त निश्चिंत अमिट निशान।आंखों से परे,चौखट है सम्मान का अटूट प्रमाण।। स्वरचित एवं मौलिक रचना। शमा सिन्हारांची।

नमन वीर जवानों को

[11/01, 03:37] Shama Sinha: ॐSAHIARRA. my native village has always quizzed by its name. Its sandhi vichched(sahi +arrah) made me think why it is named so and if it is correct it should have been more developed than the Arrah townAnyway it stands with the same status as before with innumerable memories making it SAHI +ARRAH(REAL ARRAH for my late father ,NPSinha who was born and brought up in its beautiful natural rich surroundings a long time till our grand father late Uma kant Sinha moved to Patna to be employed as secretary to the governor then.However my father continued … Continue reading »नमन वीर जवानों को

Reminiscing Sahiarra

[11/01, 03:37] Shama Sinha: ॐSAHIARRA. my native village has always quizzed by its name. Its sandhi vichched(sahi +arrah) made me think why it is named so and if it is correct it should have been more developed than the Arrah townAnyway it stands with the same status as before with innumerable memories making it SAHI +ARRAH(REAL ARRAH for my late father ,NPSinha who was born and brought up in its beautiful natural rich surroundings a long time till our grand father late Uma kant Sinha moved to Patna to be employed as secretary to the governor then.However my father continued … Continue reading »Reminiscing Sahiarra

सीता का प्रश्न

3 ” “ दीपक की प्रज्वलित शिखा संग सगुण मुखरित यौवन ।मधुर कर रहा था दीपावली काअयोध्या में पुनरागमन।। लव -कुश को समर्पित प्रजा-पोषण राज सुरक्षा पालन।पूर्ण धरा धर्म स्थापन कर,शेष शैया विराजे थे नारायण ।। अनुकूल न थी श्वास, सिसक रहा जैसे नेपथ्य आवरण।क्षुब्ध करुण बना था शेष शैया, क्षीरसागर का शान्त वातावरण।। अप्रसन्न,अश्रुरंजित क्षीण ,मुदित न था अष्टलक्ष्मी मन।गम्भीर उदास था,चंचला का विलक्षण मृदुल सौंदर्य चितवन।। लक्ष्मी के पलकों मे ठहरे हुए धे असीमित अश्रु कण।स्थिर बनी वह बैठी थी,पर धीर हीन सी ध्यान मग्न ।। आज अचानक एक आक्रामक निश्चय उठा उनके मन।प्रश्न पूछने का प्रानप्रिय से,था … Continue reading »सीता का प्रश्न

काव्यांजलि

[11/07, 16:24] Shama Sinha: About the authorBook titleBook descriptionPrefaceAcknowledgementDedication ………………….. कवियित्री परिचयनाम – शमा सिन्हाजन्म – ३-६-५४स्थान – पटना, बिहार।शिक्षा – एम.ए(अर्थ-शास्त्र)एम. ए(अंग्रेजी)एम.एड कोमल और संवेदनशील मन की धनी,शमा सिन्हा की शाब्दिक अभिव्यक्ति बचपन से ही कविताओं के रुप में परिणत होने लगी थी ।समय के साथ भाषा की परिपक्वता ने अपना प्रभाव बनाए रखा। इनकी रचनाएं, प्रकृति एवं समाज के विभिन्न परिपेक्ष से प्रभावित होती दीखती हैं ।प्राकृतिक तत्वों को मानवीय गुणों से साकार रूप देकर, वृक्ष और पु्ष्प से मित्रवत वार्तालाप करना,इनकी विशेषता है।इनकी रचनाएं सहज और सरल भाषा में गहरे भावनात्मक एवं अध्यात्मिक जनसंदेशो से ओतप्रोत हैं। … Continue reading »काव्यांजलि

” समय का सपना “

सब लौट रहे हैं अपने निज घर , थका मन पर उत्साह भरा है स्वर! मंजिल पहुँचने के हैं जल्दी में । बच्चों संग, कुछ वक्त गुजारने! समय ,पंछी सा नजर है आता , सूरज नित नये सपने है दीखाता ! शाम,लेकर खुशी पल भर आती साथ। पतंग बन लम्हे उड़ा ले जाती रात! घोसलें डाल पर रह जाते , खाली, होती शुरू सफर की नई पाली! नया सहर सारा कुछ बदल देता । व्यस्त वह,पुनः रथ अपना है हांकता! शमा सिन्हा10-6-’20

” करवाचौथ “

स्नेह रंजित अनुपम है यह सुहाग त्योहार । भरा जिस में त्याग- समर्पण-निर्मल प्यार ।। दीर्घ काल का साथ, दो आत्मा होतीं समर्पित। जैसे यह धरती और चंद्रमा इकदूजे को हैं अर्पित।। कार्तिक माह के चौथे दिवस को चांदनी जब आती। पैरों में बांध पैंजनी,तारो जड़ी चुनरी चमकाती ।। भर कर अंंजली पुष्प-पत्र-जल करती अर्पण। हो जाता तृप्त नारी-मन,पाकर प्रेम सजन! सफल होता पूर्ण दिवसीय निराजल व्रत त्योहार । बांधता दोनों को करवाचौथ,अखंड संबंध अपार ।।

“ऐसा क्यों होता है?”

क्यों, कभी कभी दुआ भी गलत मांग लेतें हैं हम! खुद को ही बस, जीत का हुनरबाज मान लेते हैं हम! सामनेवाले को हराने में, खुद ही हार जाते हैं हम, और गम को छुपाने में, सबकुछ बता जाते हैं हम!…………… वो क्या कहेंगें, हम पर हसेंगें, यही विचारते रह जाते हैं हम! वो भी सोच सकते हैं, यह क्यों भूल जाते हैं हरदम! उन्हें भी, वह सब दीखता है,जिसे नजरअनंदाज कर देते हैं हम! खुद को समझदार, उनको ही नासमझ लेते हैं हम।…………..सबके साथ यही होता है या सबसे होशियार हैं हम? वक्त का यह तकाजा है या उम्र … Continue reading »“ऐसा क्यों होता है?”

“प्रभु, सुन लो बिनति!”.बना दिया है अपना अंश मुझे,दिया वह सब अभिलाषित गुण,फिर क्यों नहीं सम्भव वह सब ,जो चाहता प्रति पल मन अब?

सशक्त शरीर क्षीणकाय रहा बन,स्मृतिह्रास अब हो रहा क्षण क्षण,आस सुहास समेटती दुर्बलता कण,मूक दृष्टा बन, निहार रही मैं सब। रुदन से ही होता है यह कथा प्रारंभननवजीवन पर्व बनता,शिशु का मंगल क्रदंनहर्षित मात पिता,होता है गुंजित कुल -कुंजनअवतरित मानव बनता,पूर्ण परमात्म स्पंदन! श्री सशक्त रहे अब भी,सत-आत्माऔर तन,निर्मल सहज रहे,पुरस्कृत यह यात्रा जीवन,मालिक, रख लो बस इतना सा मेरा मन ,प्रार्थना स्वीकारो ,अरज रहा यही कण कण! शमा सिन्हा7.12.18