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“”शुभ होगा मंगल -मय वर्ष 2021 सबका!”

शुभ-सूर्य ,का आशीर्वचन,होगा शुभ वर्ष 2021सबका! शुभकामना प्रभारित करेगा, चहु ओर शुभता सागर का। शुभ रंग -रूप धारण कर यह सबका सपना पूर्ण करेगा। शुभ- शुभ्र होगा प्रतिबिंब, सबकी अपेक्षित आकाशंओ का । शुभ- सौभाग्य से शीघ्र ही, विश्व प्रारब्ध आच्छादित होगा। शुभ स्वस्थ-मधुर स्वर कलरव ध्वनित, सबका घर आगंन होगा शुभदायक शुभाशीष लिए, मंगल मय2021फलदायक होगा। शुभकामना प्रभारित करेगा, चहु ओर शुभता सागर का। शुभ रंग -रूप आशा धारण कर यह सबका सपना पूर्ण करेगा, शुभ- नवरंग प्रतिबिंब होगा, सबकी अपेक्षित आकाशंओ का । शुभ- स्वर्ण किरणो से शीघ्र, विश्व प्रारब्ध आच्छादित होगा। शुभ स्वस्थ-मधुर स्वर ध्वनित, सबका निज … Continue reading »“”शुभ होगा मंगल -मय वर्ष 2021 सबका!”

Daughter ‘s day

Happy Daughter ‘s Day अपनी सब बेटी को हम सबका प्रेम भेंट , “सहचरी अभिन्न बन गई, आज वह हमारी है,ममता की छाँव पसारे,वह विशाल घनेरी है ,जन्मा हमने, पर सहसा बन गई माता हमारी है ,कहूँ किन शब्दों में,मन उसका कितना आभारी है।बहुतेरे आकांक्षाओं की वह बनती सदा सहभागी है।ईश का असीम स्नेह बन, बेटी घर सबका भरती है ।” शमा सिन्हा29-9-’20

बादल का आना

रंग छाया नभ पर श्यामल। जैसे उड़ा अंगवस्त्रं  मलमल।। काला हुआ सावन का अचकन । आंखों से उसके रंगा पसरा अंजन।। पंख फैलाकर आए उडते  बादल । बिजली ने कौंधाया चांदनी चपल।। परिंदे,खोज रहे घोंसले की दिशा। जाग रही चहुंओर जीवन जिजीविषा।। स्वरचित एवं मौलिक शमा सिन्हा रांची।

गांधी

हिला दिया उसने,प्रवासीय प्रशासन विधी! लूट लिया तर्कों से अपने ब्रिटिश सरकार की गद्दी! वह क्रमचंद-पुतली बाई का था अनोखा सपूत! दो अक्टूबर 1869का दैवीय आनंदकोष अटूट! वह विलक्षण बालक बना हमारा महात्मा गांधी! अहिंसा के साथ चलाई जिस ने हिन्द राष्ट्रवाद की आंधी! पाकर संदेश मांगा जगत ने अपना नागरिक अधिकार ! नेतृत्व में, गांधी के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम चढ़ा पारावार! बन कर दीप अनोखा ,छेड़ा राग आन्दोलन का! सम्पूूर्ण भारत को, उन्नीस सौ सैतालिस में,दिया उपहार स्वतंत्रता का! शमा सिन्हारांची।तिथि: 30-1-24

मंच को नमन

                            “अटूट सम्बन्ध “ जाने कैसे जुड़ जाते हैं दो मीत।बनते सहगामी,लेकरअक्षय रीत।। इस जीवन के भी वो पार निभाते। रंजिशों को अपनी छोड़ हंसते गाते।। कसमों के बंधन में दोनो बंध कर। लोकलाज में रहते साथी बन कर।। गृहस्थी की गाड़ी चलाते मिल कर। रक्षित होता धर्म मर्यादा में रहकर।। कई बार ऐसा भी वक्त आ जाता। नींव का कोई पत्थर हिल जाता।। फिर चिंता की अग्नि जलाने लगती। भावि कीस्मत की दिशा सताने लगती।। जब सूझता ना आंखों को रास्ता कोई । अदृश्य होती नियति, विश्वास लेकर कोई।। धैर्य थाम, दोनों खुशी का किनारा तब ढूंढते। कुछ देर … Continue reading »मंच को नमन

“याद तुम्हारी “

          “याद तुम्हारी ” आयेगी जब याद तुम्हारी पुनः इस बार ।दोहराने फिर साथ बिताए पलों का सार।। मनाही है मेरी उनको ,रुलायें ना जार जार।करने दें चैन से मुझे इस जीवन नैया को पार ।। है ग़र पास कोई याद मीठी, होने दो स्वर गुंजार।वर्ना रहे दूर मुझसे,बार बार करें ना कांटों का वार।। पिछली बार जब वह आई थी,भिंगा गई थी पलकें।हो गया था बोझिल मन मेरा अति, रह बीच सबके।। अबकी जब आओ,संग उन्हीं पलों को बस लाओ।भर कर गीत खुशी के,मेरे मन सरल को बहलाओ।। स्वरचित एवं मौलिक। शमा सिन्हारांची।

वर्षा

“वर्षा ” ऐ वर्षा रानी,हम सब हैं रसिक तुम्हारेढंडक तेरी ऐसा लुभाती,सब होते दिवाने!बादल संग उतरती तुम जब सबको नहलाने ,बीच बीच में परिंदे भी लगते हैं चहचहाने!चोंच मार कर तोता आता,पके आम को खाने,देख मेंढक को कूद लगाते, झिंगुर लगते गाने!बड़े बेबाकी से पानी के गड्ढोंपर युवक गाड़ी चलाते,किनारे के पथिक दौड़ते अपने कपड़े बचाने!रही कसर पूरा करने को आते बोलेरो वाले,सादे स्वच्छ लिबास पर बनतीं,ब्लाक प्रिंट डिजाइने!शरारतें परेशान करती फिर भी बादल बहुत अच्छे हैं लगते! स्वरचित एवं मौलिक रचना। शमा सिन्हारांची।

चरित्रवान

रखें जो सम्मान मानवता का, रक्षक जीवों का एक समान सा! वर्ण-भेद छोड़ रक्षक है सबका, उमंगित हो विशाल सागर सा! हो सम्पूर्णता करुणा बूंदों का, विशाल सोच हो नभ नील का! रथी बना जो कर्तव्य रथ का, प्रहरी वह आचार-संहिता का! निर्मलजीत सहज विजयी सा, पथ प्रदर्शन करे सहजता का! वीर-पथिक वह सजीव राम सा, प्रेम पगा हो,वह नंद नंदन सा! सम्पूर्णता हो गीता वाचक का, चरित्र-बली केवट वह समाज का!

कुछ बातें ना कहूं तो अच्छा

चेहरे के भाव कह जाते हैं वह सब छुपा लेते हैं जिसे चतुर शब्दों से लब! जताई थी शायद उसने मुझसे सहानुभूति, चेहरे ने कर दी कुछ और अभिव्यक्ति! भारी था सिर मेरा,तप रहा था शरीर, पर समझी, उसके आंखों के इशारे गम्भीर! “आप अड़ कर उधर बैठ क्यों नहीं जाती? सारा समय लेटे रहना ठीक नहीं!” लगा जैसे विधी ने चुभाया हो कांटा, आवाज़ आई”घर से अबअपना आसन हटा!” जीवन के अंतिम पड़ाव का  बचा रास्ता, छोटी तकलीफ करती जहां हालत खस्ता! घर था उसका मैं कह क्या सकती थी? रजामंदी उसकी, मेरी उपस्थिति तोलती! रोटी ही नहीं, हर … Continue reading »कुछ बातें ना कहूं तो अच्छा

हे नारी !

बन गई जो तुम दुर्वा जैसी, पैरों तले दबा दी जाओगी! कोमल लता जो अगर हुई , श्वास तुम्हारी सहारा खोजोगी! अगर झाड़ की एक डाल बनी, आड़ी तिरछी ही बढ़ पाओगी! अगर तुम वट वृक्ष विशाल बनी, सशक्त हो, सबकी पूज्य बनोगी! करो अपनी आत्म चेतना जागृत, पान करो बस स्वंय शक्ति अमृत! सिद्धी तुम खुद अपनी बन जाओ ! त्याग अपेक्षा, बनो सत्य समर्पित , तब ही संतुष्ट जीवन जी पाओगी!