Recent Posts

शादी की रस्में(हास्य)

द्वार लगी बारात,गले पड़ी जयमाला जाने किसकी खोज में, आंख घुमाये लला! मनानुकूल पत्नि पाकर गठबंधन किया दूल्हा! कमरे में आना था दोनों को करना था पूजन । रोक रास्ता , सब सरहज ने घेर लिया आंगन, उधर खड़ी सालियां करने को द्वार छेकन! इतनी आवभगत में नौशा लगा दुलार लोटन! तंदरुस्त नौशा टिक ना सका, जैसे होत गोल बैंगन! देख साली को मंद मुसकाया, बोला मीठे बैन, “तुम दो हो रसगुल्ला,बाकी मीढा रबड़ी का कुल्ला रख दो तुम हाथ कमर पर, होगा ना कोई हल्ला! बिदा तुम्हे भी साथ करालूं,खुशी मनाये मुहल्ला!” स्वरचित और मौलिक रचना। शमा सिन्हा रांची।

हनुमान जन्मोत्सव

“जय श्री हनुमान!” जय जय जय श्री राम के प्यारे! रूप निरख रहे पवनदेव,तुम्हारे सबके रक्षक जनमानस दुलारे! नज़र उतार रही, मां अंजनि तुम्हारे! मची जन्मदिवस की धूम, द्वारे द्वारे , भक्ति कर तुम्हारी कोई कभी ना हारे! भागें भूत,कभी पिशाच ना डेरा डाले सबके संकट महावीर हनुमान टारे! अखंड- अजित -अंजनि कुमार हमारे,गूंज रहा यश अखंड,इनका जग में सारे! विद्यार्थी बन, सूरज देव पर पड़े भारी, कांधे मूंज ,कानन कुण्डल ,बल केसरी! अर्पित चरणों में तेरे आज प्रार्थना हमारी, तुम्हारे आवाहन का,यश गावे दुनिया सारी! स्वरचित एवं मौलिक रचना। शमा सिन्हारांची। तिथी:२३-४-२४

धरा

यह धरा नहीं ब्रम्ह तेजस्विता है अलौकिक इस की सहनशीलता है उपजती इसमें  बस एक ममता है धर्म इसका बस देते जाना है ! आकाश इसका है एक प्रिय  सखा सागर से लेकर है नीर-श्रृंगार आता तन मन पर इसके है बिखराता रंग बिरंगी चुनरी है पहनाता ! कली फूल और फल जब आते, खुशी से धरती का मन भर जाते, हर मौसम का नया उपहार बनाते अर्पण कर अपने को,कृतार्थ समझते स्वरचित एवं मौलिक रचना! शमा सिन्हा रांची।

किताबें करती हैं बातें

“ज्ञान का हूं मैं ऐसाभंडार, देने को आई ज्ञान अपार! पास हमारे है ऐसा भंडार , पाता नहीं कोई मेरा सार! चार वेद औरअठारह पुराण , अठारह स्मृतियां और रामायण ! आरण्यक और उपनिषद ब्राह्मण, अनंत है इनके सूत्र परिमाण ! रूची जग गई मुझमें जिनकी, मिल गईं अक्षय  उसको निधी! नाप सकता ना कोई मेरी परिधि, बन जाता है वह रचयिता विधि!”

दिल चाहता है

दिल चाहता है — जो भी चाहे मन,सब हो पूरा सपना कोई भी ना रहे अधूरा क्या कहूं,किसे ना गिनूं ख्वाहिशों में किसे मैं तजूं? दुनियां इतनी सुन्दर है कैसे! नभ में तारे चमकते हैं जैसे! चुनरी में जड़ कर श्रृंगार करूं ? या गूंथ कर अपनी पायल बनाऊं? ये सूरज जो मेरी बिन्दि बन जाता, रुप मेरा तब कितना चमकता! चन्दा की नाव अगर मुझे जो मिलती सारे गगन की मैं खूब सैर करती! पहाड़ों से फल,मीढा झरना नहाती, सांझ ढले बादलों के घर मैं जाती! ना पढ़ाई की चिन्ता ना दौड़ नौकरी की ज़िन्दगी सारी अपनी मैं मस्ती … Continue reading »दिल चाहता है

खाक मजा है जीने में

जीवन  की शर्तें हैं अनगिनत कठिन मानना जिन्हे शत प्रतिशत ! श्वासों की गिनती होती है यहां, और मालूम नही मंजिल है कहां! उसे ही पता हम जन्मे क्यों, पर दिशा खोज में हम खोये यूं मृग बौराए अपने इर्द-गिर्द ज्यों सदा खुशामद में दौड़  लगाते शैशवकाल पार हम वृद्ध  हो जाते! मील का पत्थर  ढूढ़ने रह जाते। निश्चिन्त कभी ना हम हंस पाते चिंता से घिरे हम रोते रह जाते छोड़ दे जैसे तृष्णा तड़पने को! जन्म लेते ही सब लगते नाचने, खाना-कपड़ा-मकान खोजते! एक बार पाकर खत्म ना होता चक्रधर चक्र मे चक्कर लगाता! खाक मजा मानव जीने का … Continue reading »खाक मजा है जीने में

जय श्रीराम!

पुत्र कामना पूर्ण कर ने को हुये उद्धत राजा दशरथ, ऋशष्यश्रृंंग की अगुआई में किया दो यज्ञ आयोजित! प्रथमअश्वमेध पूर्णाहुति पश्चात पुत्रेष्टी यज्ञ हुआ सम्पन्न, प्रगट हुआ शुुभलक्षण युक्त अग्नि पुरुष एक असाधारण ! “मैं भगवान विष्णु-दूत,लेकर आया दोंनों यज्ञ का फल, चिरस्थाई रखेंंगें प्रसिद्धी आपकी,आपके होंगें चार पुत्र सफल!” प्रसाद का आधा हिस्सा दिया राजा ने पटरानी कौशल्या को सुमित्रा को मिला अंंश चौथाई, आठवां हिस्सा केकैई  को! क्षीर का शेेष पुनः दिया,दशरथ ने सस्नेह मंझली रानी को! उचित  समय पर जन्मे चार पुत्र, दशरथ तीनों रानीयों को! चैत्र मास,शुक्ल पक्ष की मंंलमयी नौमी तिथी जब आई, पाकर पुत्र … Continue reading »जय श्रीराम!

नया सवेरा

आज जब सूरज आया, जगाने लेकर नया सवेरा, मुुग्ध देख ,उसकी छटा निराली देने लगी मैं पहरा! स्नेेह अंजलि मध्य समेट चाहा  उसे  घर लाना! वह नटखट छोड़ मुझे चाहा आकाश  चढ़ना! होकर  मैं लाचार, लगी देख ने उस की द्रुत चाल, सरसराता निकल गया वह,भिंगोकर  मेरी भाल! “तुुमही जीत  गये मुझसे!” कहा उससे मैनें पुकार । “अभ्यास कर्म है नित का!”बताया सूूर्य  ने सार ” कर्त्तव्य करो!तुलना करने से ही सब जाते हैं हार! चरैवेती!चरैवेती!कर्म-चेतना करेगी हर कठिनाई  पार!”