शादी की रस्में(हास्य)
द्वार लगी बारात,गले पड़ी जयमाला जाने किसकी खोज में, आंख घुमाये लला! मनानुकूल पत्नि पाकर गठबंधन किया दूल्हा! कमरे में आना था दोनों को करना था पूजन । रोक रास्ता , सब सरहज ने घेर लिया आंगन, उधर खड़ी सालियां करने को द्वार छेकन! इतनी आवभगत में नौशा लगा दुलार लोटन! तंदरुस्त नौशा टिक ना सका, जैसे होत गोल बैंगन! देख साली को मंद मुसकाया, बोला मीठे बैन, “तुम दो हो रसगुल्ला,बाकी मीढा रबड़ी का कुल्ला रख दो तुम हाथ कमर पर, होगा ना कोई हल्ला! बिदा तुम्हे भी साथ करालूं,खुशी मनाये मुहल्ला!” स्वरचित और मौलिक रचना। शमा सिन्हा रांची।