रे मन

रे मन,तू ही तो है इक मेरा है अपनातुझमें बसे कान्हा, अनमोल जीवन का सपना! सुनता है इक तू ही तो,अनबोले मेरे बैन,रक्षित तुझमें, मेरे हर भाव, विलक्षण तेरे नयन! बन कर मीत अनन्य, करता है नित नूतन बात,सहलाते सद्भाव जैसे तेरे मीठे हाथ! रिक्त मेरे हर पल को मधु-कल्पना से है भरता,नव पथ पर सम्भल कर,चलना तू सिखाता। नश्तर जब करते आहत तो बन साथी सहलाता,दुखते हृदय तारों को,कोमल राग सुनाता । रिसते कितने घावों को तूने है सम्भाला,मोहन की बंसी बन, जीवन में अमृत है घोला। उमड़ती बेचैनी को,धैर्य सेतूने ही तो है धो डाला,लिख नई कलम से … Continue reading »रे मन