“ओ अश्रृंखल बादल!”

मकर रेखा से उत्तर दिशा में कर रही था अविका गमन, तभी बादलों के  बीच क्योंकर करने लगा रवि रमण ? बसंत आया ही था कि नभ पर हुई शयामला रोहण! “हितकर नही होता इस वक्त मेघों का जल समर्पण !” कह उठी धरा उठा हाथ,अपनी हालत श्यामल मेघ से। पर वह उच्चश्रृंखल करने लगा मनमर्जी बड़े वेग से! तेेज हवा कहीं,द्रुत बवंडर,पड़ने लगे तुफान संग ओले! “अरी,ओ हवा क्यों आई तू बन सयानी  सबसे पहले? तेरे कारण  ढका मेघ ने,आदित्य को,ओढ़ा कर दुशाले! बरबस बिजली को चपल चमकना पड़ा सबके अहले! आ रही थी खेलने सरसों , नन्ही धनिया के … Continue reading »“ओ अश्रृंखल बादल!”