“मन को पत्र “

तुझको समझाऊ कैसे रे मन ,तू मेरा कैसा मीत, परिंदों की उड़ान,श्रावण समीर या है गौरैया गीत ? उड़ा कर साथ कभी ले चलते मुझको, इंद्रधनुष को छूने, घर के छत से बहुत ऊपर खुलते झरोखे जिसके झीने। बिना रोक टोक के चलतीं जहां, चारों दिशाओं से हवाएं, चमकती है चांदनी जहां से, और टपकती ओस की बूंदें। बिजली की धड़कन में छुपा स्वाति का घर है जहां पर। भींच कर बाहों में, सीने से लगा,भर लेता,अंक  अपने समाकर! लड़ियां जुगनू की लटकी है जहां बहार के मण्डप पर। तू उमंगित करता मुझको आस-सुवासित जयमाल पहनाकर । मनमौजी तू,,चल देता … Continue reading »           “मन को पत्र “