जय जय देवी खिचड़ी अन्नपूर्णा की!
ओम जय जय देवी खिचड़ीअन्नपूर्णा की! जय जय देवी खिचडी अन्नपूर्णा की! इनकी अकाट्य महिमा है विस्तृत बहुत बड़ी। संतोषी सदाचरण रखतीं,कहने को हैं बड़ी सादी, भाप तापती,बैंगन-भरता,चमका कर आखें,हैं परोसती ! घृत बघार,घृत-सुगन्ध, घृत -श्रृंगार का जादू लहराती! डोल जाते,सप्त ऋषी भी,पाते इनकी महिमा लक्ष्मी सी! सखा सहेली इनकेअनगिनत ,कर न पाता कोई गिनती, पापड़ ,अचार ,दही,तिलौरी,अरे रे छोड़ न देना टमाटर चटनी! और गर्मी में हरा पुदीना,जाड़े मेंधनिया पिसे सिलबट्टी ! प्याज मे डालें पिसी कच्ची दाल,हराधनिया,मरीच हरा! गरम, गर्म नन्हे पकौड़े -स्वाद का सागर अपार दें बढ़ा ! रंगीली खिचड़ी सपने में भी थिरकती,लाल हरी नगीने जड़ी! …