स्मित मिलन
दिन ढल रहा है अब,फैल रहा रगं नारंगी सिमट रहा कोने मेआदित्य ले किरणे सतरंगी। लगा गोरी राधा समा रही थी कृष्ण आगोश नाच रहा थे नीले श्याम ,मनोहर नटवर नागेश। मुख कमलिनी का ,लज्जा ने मलिन किया सुकुमारी का तन गहराया,नभ श्यामल हुआ। पूछा बजती वेणू ने रुक कर, होअति असहज “पाती हो राधे क्या तुम, दिन रात,नंद को यू भज? सावले के रंग से देख कैसी ,तु बनी कमलनी मुरझाई ढूढती फिर क्यो जादूगर को,मधुवन ,कुंज ,गली अमराई?” रुक गई इक पल को कुछ ,फिर छिटका मधुर छटा लगी गाने गीत अप्सरा सी,बादलों सेआकाश बटा। वृन्दावन सहसा उतर …